16.4.08

जनता को बेवकूफ बनानेवेले नेताओं के दिन अब जल्दी ही पूरे होनेवाले हैं।

मौसम की मुद्रा में परिवर्तन है

भ्रष्ट राजनेताओं ने जिस तरह से देश को तबाह किया है,उसने एक बार फिर से पूरे देश को सोचने को मजबूर कर दिया है कि आखिर क्या इसी लिए देश को आजाद कराने के लिए हमारे शहीदों ने कुर्बानी दी थी?
१८५७ के स्वतंत्रता संग्राम में नानाजी पेशवा, महारानी लक्ष्मीबाई, नवाब बांदा,वीर कुंअर सिंह,बेगम हजरत महल,रानी जिंदा, राजा मर्दन सिंह, शाहजादा फिरोज और बहादुरशाह जफर के परिवार में कौन बचा है? जबकि उस दौर के वे राजा जिन्होंने कि अंग्रेजों का साथ दिया चाहे वह ग्वालियर के हों या कश्मीर के या पटियाला के.या नाभा के सब-के-सब आज भी राजनीति पर हावी हैं। तात्याटोपे के वंशजों को बड़ी धूम-धाम से लालूजी ने रेल्वे में अदना-सी नौकरी दे दी,रामप्रसाद बिसमिल की मां भीख मांगते हुए मरी,बहन चाय का ढाबा चलातीं रहीं.चंद्रशेखर आजाद की मां को भगवान दास माहौर ने ता-उम्र अपने यहां रखा। मैनपुरी षड्यंत्र के गैंदालाल दीक्षित दिल्ली के सरकारी अस्पताल में एक लावारिस की तरह मर गये। सुखदेव,राजगुरु या बटकेश्वर दत्त के परिवार का कोई सदस्य नहीं बचा। लोक मान्य तिलक, लाला लाजपत राय,लाला हरदयाल,श्यामजी कृष्ण वर्मा,मदन लाल ढींगरा,ऊधम सिंह वीर सावरकर किसके परिवार का सदस्य आज देश की राजनीति में है? शहीदे आजम भगत सिंह के पिता और दो चाचा स्वतंत्ता संग्रामी थे,कौन है उनके परिवार का जो राजनीति में है? आजादी के बाद जो अंग्रेजों के मुखबिर थे, अंग्रेजों के पिट्ठू थे वे महात्मा गांधी की जय कहते ह्ए सत्ता पर काविज होते चले गये। देशनायक सुभाष चंद्र बोस को वो जिंदा हैं या नहीं इस पहेली में उलझाकर कभी न खत्म होनेवाला रहस्य बना दिया। कुल मिलाकर देश के अमर शहीदों का इस व्यवस्था ने कभी सम्मान नहीं किया। उनको,उनके नाम को अपने हित में मनचाहा यूज किया और कर रहे हैं। हर राजनीतिक दल अपनी संतान को तख्ते-ताउस पर बैठानेवाली एक एजेंसी बनकर रह गई है। जाति,धर्म,क्षेत्रियता ने हालत यह कर डाली है कि महाराष्ट्र में अब उत्तर भारतीय का रहना मुहाल किया जा रहा है।प्रगति के तमाम आंकड़ों के बावजूद किसान आत्म हत्याएं कर रहे हैं,मंहगाई से हारकर लोग खुदकुशी कर रहे हैं। इन सब हालातों में देश का युवावर्ग जागा है। इसका प्रमाण है अभी हाल में लोकप्रियता के सर्वेक्षण के नतीजे जिसमें हिंदुस्तान की जनता ने अपने आदर्श के रूप में शहीदे आजम भगत सिंह को सबसे ज्यादा मत देकर अपना निर्णय सुना दिया है। दूसरे नंबर पर उन्होंने नेताजी सुभाष को रखा है। गांधीजी और नेहरूजी तो काफी पीछे हैं। क्या देश का यह मोहभंग का फैसला है? अगर हां तो मैं देश के आज के राजनेताओं से यही कहूंगा कि जरा सोचिए...कल तेरा क्या होगा कालिया? जो वक्त की आवाज नहीं सुनते वे इतिहास के कचरेदान में फेंक दिये जाते हैं। याफि इतिहास के सलीब पर लटकाए जाते हैं। मौसम की मुद्रा में परिवर्तन है,उसकी आहट को सुनने का शऊर अपने आप में पैदा करो कुर्सी के खटमलो...। अभी हाल में इंडिया टुडे के सर्वेक्षण ने जो आंकड़े दिए हैं उसके मुताबिक आज देश में सर्वाधिक पसंद किये जानेवाले नेता सरदार भगत सिंह हैं जिन्हें जनता ने ३७प्रतिशत मत दिये हैं। दूसरे नंबर पर नेताजी सुभाष चंद्र बोस रहे जिन्हें जनता ने २७प्रतिशत मत दिये हैं।गाधीजी को जहां १३प्रतिशत मत मिले वहीं आयरन लेडी के रूप में मशहूर इंदिरा गांधी को ३प्रतिशत और जवाहर लाल नेहरू को २प्रतिशत तथा जयप्रकाश नारायण को सिर्फ १ प्रतिशत ही मत मिले हैं।और-तो-और अटल बिहारी वाजपेयी को तथा उस नस्ल के नेताओं को०प्रतिशत मत मिले हैं। यह रुझान यह बताता है कि अब देश का नागरिक टुच्चे नेताओं को पूरी तरह नकारने के मूड में आ चुका है। ओर जनता को बेवकूफ बनानेवेले नेताओं के दिन अब जल्दी ही पूरे होनेवाले हैं।

पं. सुरेश नीरव

7 comments:

  1. पंडित जी,जिन लोगों ने भगत सिंह को मत देकर आगे के स्थान पर लाया है वे बस मत देकर पीछे हट जाते हैं अगर उस सोच को जिन्दा रख कर चले होते तो देश की ये स्थिति होती ही नहीं......
    कितने युवक हैं जो राजनीति में आना चाहते हैं,आने वाले किसी भी चुनाव में भाग लेने को तैयार हैं ये साले बस भटियारिनों की तरह कोसने वाले लोग हैं वरना सचमुच में समय बदलने वाला है....

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  2. रूपेशजी, आप ओशो से प्रभावित होते हुए भी ऐसी बात कहते हैं! इसे तो आपको संकेत मानना चाहिए की आज का युवा कम से कम लिजलिजे और अव्यवहारिक गांधीवाद से हटकर भी सोच रहा है. आज सोच बदलती दिख रही है, यह कल क्रांति में भी बदल जायेगी. विचारों की बेडियों का टूटना ही क्या कम है?

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  3. नीरव जी ,
    आप की बात सोलहो आने सच है. जनता इन टुच्चे ( टुच्चा शब्द भी शायद छोटा पड़े ) नेताओं से बेजार हो चुकी है पर विकल्प कहाँ है ? जैसा की रूपेश भाई ने कहा - कितने लोग जिन्हें दर्श की फिक्र है, राजनीति में आने को उत्सुक हैं. व्यवस्था बदलने के लिए जिस हिंसक विरोध का सामना करना पर सकता है, उसके लिए कितने 'अच्छे' लोग तैयार हैं? हम भी तो सिर्फ़ कलम घसीटी ही कर रहे हैं. सड़कों पर उतरने की हिम्मत कहाँ जुटा पा रहे है हमलोग. हाँ, भड़ास और उससे जुड़े तमाम भड़ासी देश के लिए मिसाल बन सकते हैं, यदि इस सोच के ऊपर एक वैचारिक बहस शुरू हो तो. क्या ख़याल है ?
    वरुण राय

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  4. bhai logon,
    bada takkar ka likha pandit jee ne,

    magar main kahna chahonga ki jis desh ke bahusankhyak ko hamara rastrageet nahi aata hai wahan ke logon ka itihaas pe mat mayne nahi rakhta hai.

    mujhe to is so called sarvekshan pe hi sandeh hai waisai bhi kuch salon se ye sarvey karne ka acha dhandha nikal pada hai jise media cash karti fir rahi hai,

    main jaanta hoon ki itihaas hamare vartmaan ke saath mel nahi kha raha hai magar mitron vartmaan yuvaoun ka hai or yuva ko apne adarah or sidant ke liye kisi ka mohtaaj hona darshata hai ki abhi bhi unmain gulami ke kide badkaraar hain.

    Main to in sarvekshano ko ek sire se nakar raha hoon kyoun ki mujhe ise cash nahi karna.

    JAi JAi Bhadaas

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  5. BILKUL SAHI FARMAAYA HAI NIRAV DA AAPNE.BAAKI KE LOG SE BHI PURI TARAH SAHMAT HUN.

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  6. बडे भाई प्रणाम स्वीकार करे। बहुत खूब। छा गए आप तो इतनी बेबाकी से लिखा है कि जवाब नहीं। आपके लेखन इतनी प्रेरणा देते हैं कि बता नहीं सकता। भाई साहब लिखते रहिए क्योंकि इस युवा पीढी को आपकी जरूरत है। काश देश के नेता भी इस लेख को पढें ताकि उन्हें कुछ सीखने को मिल सके।

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  7. बडे भाई प्रणाम स्वीकार करे। बहुत खूब। छा गए आप तो इतनी बेबाकी से लिखा है कि जवाब नहीं। आपके लेखन इतनी प्रेरणा देते हैं कि बता नहीं सकता। भाई साहब लिखते रहिए क्योंकि इस युवा पीढी को आपकी जरूरत है। काश देश के नेता भी इस लेख को पढें ताकि उन्हें कुछ सीखने को मिल सके।

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