5.4.08

ये कैसा लोकतंत्र है ?

हमारा देश भारत ,विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र कहलाता है। पर क्या हमारे यहाँ सचमुच लोकतंत्र है? लोकतंत्र में जनता के द्वारा चुने गए नुमाईन्दे सरकार चलाते हैं । टू क्या देश की वर्तमान सरकार लोकतंत्र के पैमाने पर खड़ा उतरती है?आइये देखते हैं। केन्द्र में मौजूदा यू पी ए सरकार की बागडोर जिस व्यक्ति के हाथ में है वो राज्य सभा के सदस्य हैं । जी हाँ मैं मनमोहन सिंह की बात कर रहा हूँ । अब राज्य सभा का सदस्य क्या जनता का सच्चा प्रतिनिधि माना जा सकता है? ये बहस का विषय हो सकता है। और अगर बहस का नतीजा हाँ में निकलता है फ़िर तो कोई बात ही नहीं । लेकिन अगर राज्य सभा सदस्य को जनता का कम से कम ,सीधा प्रतिनिधि नहीं माना जा सकता है तो एक बेहद अहम् सवाल उभर कर सामने आता है कि जिस सरकार में १५-२० मंत्री (इनकी संख्या ज्यादा भी हो सकती है ) राज्य सभा के सदस्य हों उसे क्या जनता द्वारा चुनी हुई सरकार माना जा सकता है । केन्द्र सरकार के तकरीबन सभी ख़ास मंत्रालय राज्य सभा सदस्यों द्वारा संभाले जा रहे हैं । या इसे यूँ कहिये कि ऐसे लोगों द्वारा संभाले जा रहे हैं जिनमें लोकसभा चुनाव जीतने कि क्षमता नहीं है। या जनता उन्हें अपने प्रतिनिधि के रूप में नहीं देखना चाहती है । कुछ बानगी देखिये । देश का प्रधानमंत्री -मनमोहन सिंह,रक्षा मंत्री- ए के एंटनी ,क़ानून मंत्री-हंसराज भारद्वाज ,पेट्रोलियम मंत्री-मुरली देवड़ा,विद्युत मंत्री -सुशील कुमार शिंदे ,श्रम मंत्री-ऑस्कर फर्नांडिस , स्वास्थ्य मंत्री-श्री रामोदास जी ,मानव संसाधन मंत्री-अर्जुन सिंह ,सिविल एविएशन मंत्री -प्रफुल्ल पटेल,पर्यटन मंत्री -अम्ब्ल्का सोनी ,खेल मंत्री-मणिशंकर ऐय्यर ,गृह मंत्री-शिवराज पाटिल ,गृह राज्य मंत्री-जय प्रकाश अग्रवाल , विदेश राज्य मंत्री-आनंद शर्मा -सब के सब राज्य सभा सदस्य । मौकापरस्त क्षेत्रीय पार्टियों के साथ साझा कार्यक्रम पर चलने वाली जम्बो सरकार में और भी कई छोटे बड़े मंत्री होंगे जो राज्य सभा के सहारे अपनी राजनीति की दुकान चला रहे हैं। प्रश्न ये खड़ा होता है कि जिन राजनेताओं को जनता ने अपना प्रतिनिधि मानने से इनकार कर दिया ,उनके हाथ में देश का प्रतिनिधितित्व देना जनता के साथ धोखा नहीं है? क्या ये लोकतंत्र की भावनाओं के साथ खिलवाड़ नहीं है? हालांकि ये तर्क दिया जा सकता है कि संविधान में राज्य सभा सदस्यों को केंद्रीय मंत्री का प्रावधान है। मैं संविधान का विशेषज्ञ तो नहीं हूँ परन्तु मेरी साधारण सी अक्ल कहती है कि संविधान निर्माताओं ने उक्त प्रावधान विशेष परिस्थितियों में उपयोग करने के लिए रख्खा होगा न कि राज्य सभा सदस्यों के सहारे सरकार चलाने के लिए। कम से कम देश का प्रधानमंत्री,गृह मंत्री ,रक्षा मंत्री,स्वास्थ्य मंत्री ,विदेश मंत्री आदि को इतना लोकप्रिय तो होना ही चाहिए कि वह देश की किसी भी लोकसभा सीट से चुनाव जीत सके। कम से कम एक लोकसभा सीट से तो चुनाव जीतने का माद्दा उसमे होना ही चाहिए । इसके विपरीत अगर वह किसी भी लोकसभा सीट से माद्दा नहीं रखता तो इसका मतलब है कि उसे देश की जनता का विश्वास हासिल नहीं है। और ऐसे लोगों के हाथ में देश की बागडोर थमाने का मतलब लोकतंत्र की मूल भावना के साथ खिलवाड़ और जनता के साथ धोखा नहीं तो और क्या है?

4 comments:

  1. विचारणीय प्रश्न है कि आखिर इन परिस्थितियों के लिये जिम्मेदार कौन है और निराकरण कैसे होगा?

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  2. dosh jee,

    is khilwaar ke jimmedaar bhi to hamin hain,
    kya karen esi halat ho gayee hai ki sabhi ke taat paibandon se bhade hain.

    or hum nire murakh in peechware ke darwaaje walon ko vidvajan maan kar fakhra bhi kar rahen hain.

    Jai Bhadaas
    Jai Jai Bhadaas

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  3. वरुण जी, जबर्दस्त टिप्पणी है आपकी.

    जब तक इस तरह की सोच और जज़्बा ज़रूरत देश के बाक़ी लोगों तक नहीं पहुंचता, जनता के ठुकराए लोग ही उसके कर्णधार बने रहेंगे.

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