17.4.08

मालिक-संपादकों के पिछवाड़े पर लात मारकर पेशे से ही बाहर हो गया, आजकल चाय बेचता हूं....

from bihari dass
bambam.bihari@gmail.com
hide details 16 Apr (15 hours ago)
to yashwantdelhi@gmail.com
date 16 Apr 2008 20:33
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भाई साहब,
मैं भी आपके ब्लाग पर अपनी भड़ास निकालना चाहता हूं। परिचय देने लायक बहुत कुछ नहीं है फिर भी नियमानुसार देने की कोशिश करता हूं। मैं साहित्य के चस्के से दिल्ली आया और पेट चलाने के लिए पत्रकार बन गया।

नौकरी का संकट था इसलिए फ्रीलांसिंग करने लगा। बाद में कुछ चिरकुट टाइप अखबारों में काम किया। यहां काम तो ...... फाड़कर लिया जाता था पर पैसे देने में फटने लगती थी। हर जगह अलग-अलग गलीजखाने थे। लिखने बैठो तो पूरा रंडीरोना हो जाएगा। ऐसे में दो ही विकल्प थे कि काम करने के बाद भी उनका भारोत्तोलन करते या फिर नौकरी छोड़ते। कई जगह ऐसा ही हुआ। मालिक-संपादकों के पिछवाड़े पर लात मारकर पेशे से ही बाहर हो गया। आजकल दिल्ली यमुनापार के शकरपुर के एक मोहल्ले में चाय की दुकान चलाता हूं और जहां-तहां अपनी भड़ास निकालता रहता हूं। वहां कोई मुझे नहीं जानता। न झूठी विद्वता का रौब है और न ही अहंकार। गरीब लेकिन बड़े दिलवाले लोगों की नई दुनिया भी देख रहा हूं। इतनी कमाई हो जा रही है कि मजे से अपने दायित्व का निर्वाह हो रहा है।

पत्रकारिता के नाम पर दोगले लोगों को तेल लगाने से अच्छा रिक्शेवालों का जूठा ग्लास धोना लग रहा है। अभी मोबाइल फोन चालू नहीं करवाया है पर पास के एक ग्राहक के साइबर कैफे में अपनी भड़ास निकालने का जुगाड़ फिलहाल कर लिया है।

फिलहाल यही मेरी रामकहानी। शेष मौका मिलने पर भड़ास पर आती रहेगी।

बिहारी दास उर्फ बमबम बिहारी

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Reply
from Yashwant Singh
yashwantdelhi@gmail.com
hide details 16 Apr (12 hours ago)
to bihari dass
bambam.bihari@gmail.com
date 16 Apr 2008 23:22
subject Re: membership
mailed-by gmail.com

bhayi, aap se zarur milne aaunga kisi din. aap shandar aadmi hain. ham logo ke liye asali Bhadasi hain aap. aap pls zarur Bhadas pe likhiye. jo jo huwa uska khul kar lekhan kariye taki un kutton ka pardaphash ho sake jo aap aur ham jaise logo ka khoon peete hain. mai aapko ek alag se mail bhej kar bhadas ki membarship ke liye invitation bhejunga.

thanks
yashwant


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बमबम बिहारी जी ने जो निजी पत्र मुझे भेजा है और मैंने जो उसका जवाब दिया है, उसे सार्वजनिक करके मैं जरूर अपराध कर रहा हूं और इसके लिए हो सके तो बमबम बिहारी जी मुझे माफ करेंगे लेकिन ऐसा करने के पीछे मेरा मकसद सिर्फ एक है। सैकड़ों हजारों पत्रकार नौकरी को ही अंतिम सत्य मानकर जिस हद तक पतित हो जाते हैं, अपनी आत्मा को बेच खाते हैं, अपने जमीर को गिरवी रख देते हैं, अपने स्वाभिमान को भुला देते हैं....उनके लिए बमबम बिहारी जी एक सबक हैं। ये आदमी चाय की दुकान चलाता है और दबंगई से अपनी ज़िंदगी जीता है। पैसे इसमें भी गुजर बसर लायक मिल जाते हैं और पैसे उसमें भी गुजर बसर लायक ही मिलते हैं पर चाय की दुकान चलाने के दौरान जो आजादी, जो उन्मुक्तता, जो शांति मिलती है, वो पत्रकारिता करते हुए कहां।

कहने का आशय ये है कि पत्रकारों बंधुओं, अंदर से मजबूत बनिए वरना अगर समझौते शुरू कर देंगे तो कुत्ते टाइप के लोग आप पर भोंकते रहेंगे, आप पर राज करते रहेंगे, आपको ज़िंदगी व पत्रकारिता के दर्शन पिलाते रहेंगे और आप यूं ही कुछ पैसों के लिए सब कुछ जानते जीते हुए भी टुकुर टुकुर देखकर चुप रहेंगे। जहर पीते रहेंगे। आप ना कहना सीखिए, अपनी बात रखना सीखिए, पत्रकारिता में चीजें आपके बहुत अनुकूल नहीं दिख रही हैं तो पत्रकारिता के बाहर की दुनिया में गुजर बसर करने लायक काम करने के बारे में सोचिए। भड़ास इस नेक काम में आपके साथ हैं।

उम्मीद है मुझे यह पत्र सार्वजनिक करने के लिए माफ किया जाएगा और सभी भड़ासी गैर भड़ासी साथी बमबम बिहारी जी को दाद देंगे कि वो एक मर्द की माफिक दिल्ली मे ज़िंदगी जी रहे हैं, किसी चूहे के माफिक नहीं।

आजकल बड़े बड़े मी़डिया हाउसों में पत्रकारों की स्थिति चूहे जैसी हो गई है, बस केवल चूं चूं चां चां कर सकते हैं, वो भी इतना धीरे धीरे कि पड़ोसी की कान तक आवाज न पहुंच जाए वरना ये चूं चूं चां चां भी उपर तक पहुंचा दी जाएगी और अफसर लोग तलब कर लेंगे कि भाई सुना है तुम चूं चूं चां चां कर रहे थे और आप जवाब में हें हें पें पें कें कें करते रहेंगे लेकिन अफसर पर कोई असर नहीं होगा और आपको संदिग्ध मानते हुए वो आपका तबादला कर देगा, या फिर आपका इनक्रीमेंट रोक देगा या फिर आपको इस्तीफा देने के लिए कह देगा या फिर आपको ब्लैक लिस्टेड करके छोड़ देगा या फिर आपको आगे से ध्यान रखने की हिदायत देकर माफ कर देगा....

कुछ भी हो सकता है लेकिन जो कुछ होगा.....


... उससे दो चीजें होंगी ......

या तो आप डर जाएंगे या आप नहीं डरेंगे।
नहीं डरेंगे, ऐसा संभव ही नहीं है क्योंकि आपको पत्रकार बने रहना है।
डर जाएंगे तो दो बात होगी।
या तो आपका आत्मविश्वास और कमजोर होगा या फिर नहीं होगा।
आत्मविश्वास नहीं कमजोर होगा, ऐसा संभव ही नहीं है।
आत्मविश्वास कमजोर होगा तो दो बातें होगीं।
या तो आप चूहा से चींटी हो जाएंगे या नहीं होंगे।
नहीं होंगे, ये हो ही नहीं सकता।
चूहा से चींटी होंगे तो दो बातें होंगी।
आप या तो चूं चूं चां चां करेंगे या नहीं करेंगे।
नहीं करेंगे ये हो ही नहीं सकता।
चूं चूं चां चां करेंगे तो दो बातें होंगी।
आपकी बात उपर पहुंचेंगी या नहीं पहुंचेगी।
नहीं पहुंचेगी ये संभव नहीं क्योंकि आजकल हर आदमी मुखबिर बन चुका है।
पहुंचेगी तो दो बातें होंगी।
या तो आपको अफसर तलब करेगा या नहीं तलब करेगा।
नही तलब करेगा, ये संभव नहीं।
तलब करेगा तो दो बातें होंगी। या तो आप डर जाएंगे या आप नहीं डरेंगे......
................
................

हरि अनंत हरि कथा अनंता......

फिलहाल तो यही बोलिए....


जय बमबम बिहारी जी
जय भड़ास
यशवंत

4 comments:

  1. दादा,बिहारी भाईसाहब तो भड़ास शब्द का साक्षात मूर्त रूप हैं, अनुकरणीय़ हैं उनके लिये जिनकी आत्मा का अभी सौदा नहीं हुआ है। बिहारी भाई डटे रहिये आत्मसम्मान के मैदान में...
    बोलो बम बम बिहारी की जय
    जय जय भड़ास

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  2. sorry, मैं अपनी भड़ास निकालने के च कर में यह भी नहीं देख पाया कि यशवंत जी ने पोस्ट डाल दी है। उन्होंने मेरा पत्र सार्वजनिक करके कोई गलती नहीं की है योंकि यही मैं करनेवाला था। ब्लाग पर आने की मंशा ही अपने को (कई बार दूसरों को भी)सार्वजनिक करने की होती है।

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  3. भड़ास रंग दिखाने लगा है भाईसाहब . बस ये मशाल जलती रहे और देसाई जैसे कीट-पतंगे इसमें जलते रहें यही तम्मना है.
    वरुण राय

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  4. बम बम भोले,
    दादा अब लग रहा है की सार्थक हो गया भडास , जीवन की सच्ची वास्तविकता कटु अनुभव से ही सामने आती है, और पुरी उम्मीद है की बिहारी भाई कटु से कटु अनुभवों से काले पन्ने को सामने लायेंगे।

    जय जय भडास

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