कल प्रेस क्लब ऑफ़ इंडिया जाने का मौका मिला। पत्रकारिता की दुनिया के कई नामचीन दिग्गजों का दर्शल लाभ हुआ. वहीं पर जुगरान जी से परिचय हुआ. हिन्दी दैनिक, हिन्दुस्तान में किसी उच्च पद पर कार्यरत हैं. मदिरा का हल्का-हल्का शुरूर और हाथ में जाम. पूरा माहौल क्रिकेट के रंग में रंग हुआ. रह रह कर गूंजती तालियों की आवाज. अचानक जुगरानजी बोले- जानते हैं राय साहब, क्रिकेट के हर शॉट और हर विकेट पर गूंजती तालियों की आवाज की कीमत बुंदेलखंड का किसान आत्महत्या कर चुका रहा है. मैं हतप्रभ सा उनका मुंह देखता रह गया . उनकी आवाज अभी तक मेरे कानों में गूँज रही है. मैं सोचने पर मजबूर हो गया कि जब हमारा कोई भाई भूख से हार मान कर आत्महत्या पर उतारू हो तो पैसे का यह वीभत्स प्रदर्शन वो भी मनोरंजन के नाम पर कहाँ तक उचित है. एक ही देश में एक तरफ़ लोग भूख से जान दे रहे हों और दूसरी तरफ़ लड़कियों का नंगा नाच हो रहा हो तो आत्मा में एक कचोट सी तो उठती ही है. मैं नहीं जानता जुगरान साहब अपने उक्त कथन के प्रति कितने ईमानदार थे परन्तु उन्होंने हमें इस विषय पर सोचने पर मजबूर तो कर ही दिया . अपने ही भाइयों के प्रति हम इतने संवेदनहीन कैसे हो सकते हैं. वैसे भी आई पी एल के तमाशे को क्रिकेट तो नहीं कहा जा सकता है.
वरुण राय
वरुण भाई,संवेदनाओं से शून्य हो जाना ही आजकल लोग पत्रकारिता की सफलता की पहली पायदान मानते हैं आपका कहना कि अपने ही भाइयों के प्रति हम इतने संवेदनहीन कैसे हो सकते हैं बस आपकी नजर से सही है वर्तमान पत्रकारिता के लिये इस बात में दम नहीं है....
ReplyDeletebhai ganda hai par dhandha hai ye, sab chalta hai yahan, samvedna ka koi mulya nahi hai,
ReplyDeletemedea apne cerculation or redership ke liye servey bhi karvati hai or bade joor shoor se kahti hai ki ye bharat ki janta ki awaaz hai, so bas hammam ki gandgi mat dekho kyoun ki yahan sabhi nange hai.
Jai Jai Bhadaas