आज मेरा देश सारा जल रहा है हर दिशा में
आग की लपटें भयंकर सर्पिणी-सी आज डसती है मेरे आकाश को
धुंध चारों ओर जो छाया हुआ विष का धुआं है मिटाता-सा मेरी हर आस को
जवानी जोश में आकर जहां को भूलती है
कहानी जख्म पाकर भी हवा में झूलती है
कहा किसने कि आकर संभालो इस वतन को जिस वतन की जिंदगी अपने खुदा को भूलती है
भूख से बेचैन कितने नैन रोते हैं धरा पर एक रोटी के लिए
अरे पाषाण कितने गीद अपना चैन खोते हैं यहां पर एक बोटी के लिए
यहां मानव कहाने के लिए तैयार भी मानव नहीं है
जिंदगी संघर्ष में अब बन गयी दानव कहीं है
और वो दानव लहू पर देश के यूं पल रहा है
आदमी का पाप ही आदमी को छल रहा है
गर तुझे अब ना रहा इन हड्डियों से प्यार है
तू देश का शासक नहीं गद्दार है-गद्दार है।
पं. सुरेश नीरव९८१०२४३९६६जय भड़ास।। जय यशवंत
आदमी का पाप ही आदमी को छल रहा है....
ReplyDeleteनीरव भाई, दिल के भाव को ठीक ठीक शब्द दे पाने में आपका कोई सानी नहीं है। हर रोज इतने करीने से कविताएं पिरो ले जाने और भिन्न भिन्न टापिक पर लिख लेना, ये आप ही संभव कर सकते हैं। शुभकामनाओं के साथ...
सुन्दर है,डा.यशवंत की बात से पूर्णतया सहमति है...
ReplyDeleteभावपूर्ण एक सुंदर रचना। बडे भईया प्रणाम। यशवंत भाई ने बिल्कुल ठीक कहा। आपका कोई जवाब नहीं। आशीर्वाद दें।
ReplyDeleteपंडित जी के चरण कमल में सदर वंदन,
ReplyDeleteपंडित जी अद्भुत है, आपके बेहतरीन रचना से उर्जा का श्रोत मिलता है,
साधुवाद