कामरेड माडरेटर डॉ रुपेश की आपत्ति सर आंखों पर। बंदा इतना गुस्ताख नहीं जो अपने से बड़ों का कहना यूं ही टाल जाए। अब क्रिकेट की जगह मैं भी क्रिटिक बनूंगा। सोनिया की जुबान से लेकर सानिया के छोटे स्कर्ट से गिरती मर्यादा, टेबल में लात रखने से होते तिरंगे के अपमान, मुह खोलने से तार तार होती तहजीब पर अपना टाईटराइटर चलाऊंगा।
वैसे डॉक्टर साहब से माफी एक और वजह बनती है। रविवार को 9 बजे मिलने का वादा किया फिर कन्नी काट गया।
आदरणीय सर, शुक्रवार को जब आपसे बात हुई उसके बाद "दैनिक हिंदुस्तान" के स्थानीय संपादक अक्कू जी का फोन आ गया। नौकरी चाहिए तो फौरन शनिवार को दिल्ली हाजिर हो। उनके मेल आईडी भड़ास से ही मिली थी।
फौरन मैंने "तथाकथित इकनामी क्लॉस" की सारी फ्लाइटें खंगाल डाली। मेरी इकनामी के अनुसार कहीं भी टिकट नहीं मिली। कुछ एयरलाइन में मिली भी तो मेरा क्रेडिट कार्ड की स्वीकार नहीं हुआ(शायद उन्हें पता चल गया होगा किसी पत्रकार का कार्ड है)। देर रात की फ्लाइट का किराया कहते हैं कम होता है। लेकिन किसी में भी 8,000 से कम का टिकट नहीं था। नतीजतन मैं दिल्ली नहीं पहुंच पाया।
फोन कर अक्कू जी को हाल बताकर कहा, सर अगली मीटिंग का समय दे दो। उन्होंने कहा मैं बताउंगा तुम्हें। मैं समझ गया कि अपने नसीब में हिंदुस्तानी होना नहीं लिखा है। इस गम को दूर करने के लिए मैं अपनी बीवी बच्चों के साथ रविवार को मांडवा चला गया। अभी भी यह सफाई काफी नहीं है। कम से कम एक फोन तो कर ही सकता था। इसलिए कसूरवार तो हूं।
गुरू भईया,दुखी कर डाला आपने तो बड़े ही दुष्ट किस्म के प्राणी निकले यार,भाई भी बोलते हो और इतनी सी बात के लिये इतना बड़ा माफ़ीनामा लिखकर जूते भी बजा रहे हो। ध्यान रहे कि जो होता है वो अच्छे के लिये ही होता है हिन्दुस्तानी होना नसीब में नहीं था तो हो सकता है कि कोई बड़ी उपलब्धि आपकी प्रतीक्षा कर रही हो। हमारे पास अंग्रेजी का एक शब्दकोश है उसमें क्रिकेट का अर्थ लिखा है "झींगुर",इसलिये मैं समझ ही न पाया आज तक कि लोग इस नन्हे से किरकिर करने वाले कीड़े को इतना महत्त्व क्यों देते हैं। जब वक्त मिले तब आ जाना बालक हम वहीं मिलेंगे,वैसे शनिवार को अनिल रघुराज दादा आने वाले हैं।
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