15.4.08

जो रहे काशी, उसको कहां उदासी, जय भोले!

दुबे जी को वही जाने, जिसने कभी उनका जीवट देखा हो। नौकरी और रोजगार के एक-से-एक दमदार नुस्खे, जोरदार आइडियाज। जो सुने, कायल हो जाए। वाह-वाह कर उठे। वाकई दुबे जी जो बताते हैं, आज के रोजगार उस पर अमल करने लगें तो किसी के आगे हाथ फैलाने, दांत चियारने की नौबत न आए। कुछ इसी तरह की तरकीबों और दांव-पेंच से सत्तू नरायन हो गए श्रीसत्यनारायाण दुबे जी!

दुबे जी कहते हैं, आज के जमाने में भी नौकरियां उन्हें नहीं मिल रही हैं, जो नौकरियां खोज रहे हैं। उल्टे हजार-हजार नौकरियां उन्हें खोज रही हैं, और वे हैं कि बड़ी मुश्किल से मिल रहे हैं। लाखो-करोड़ों रुपये हवा में उड़ रहे हैं। बस पकड़ने का हुनर चाहिए। जिनके पास अक्ल है, उन्हें नौकरियां खोज रही हैं, उनके ही हाथों में उड़ते नोट सट्ट-सट्ट आ रहे हैं। उनके लिए दुनिया स्वर्ग है, हरी-भरी है, खूब भरी-पूरी है। जो अक्ल के पैदल और आंख के अंधे हैं, उनके लिए दुनिया नर्क है, मुश्किलों का अखाड़ा है, न नोट उनकी पकड़ में आ पाता है, न नौकरी। बात 1980 की है।

दुबे जी बताते कि....हजारों युवा लखैरों की तरह घूम रहे हैं। उन्हें देखकर तरस आता है और गुस्सा भी। तुम भी तो बेरोजगार हो। तुम क्या, तुम्हारे साथ दस और बेरोजगारों को बैठे-ठाले काम मिल जाएगा। बस, मैं जैसा बताता हूं, वह कर डालो। बगल में बनारस है। गंगा मैया वहां से गुजरती हैं। अपने दस बेरोजगार साथियों में से पांच को दिन की ड्यूटी पर लगाओ, पांच को रात की ड्यूटी पर। करना ये है कि बनारस से मुगल सराय जाने वाले रोड के गंगा-पुल पर नदी-तल में एक बड़ा-सा जाल बिछा दो। जो भी वाहन-ट्रेनें आदि पुल से जब गुजरते हैं तो सवारियां गंगा मैया के नाम पर पुल के नीचे पैसा फेंकती हैं। रोजाना हजारों रुपये। सारा पैसा जाल में इकट्ठा होता जाएगा। सुबह-शाम जाल समटे कर पैसे बटोर लिया करो दोनों हाथों से। लगे हर्र-न-फिटकरी, कमाई लाखों की। जो रहे काशी, उसको कहां उदासी। जय भोले! दुबे जी की महिमा अपरंपार।

एक दिन बोले कि तुम्हे ऐसा काम बताता हूं, करोड़ों की कमाई हो जाएगा, लागत बस हजार-पांच सौ की। तुम्हारे कवि-गुरू श्याम नारायण पांडेय, अरे वही हल्दीघाटी वाले, यहीं बगल के गांव डुमरांव में रहते हैं। हल्दीघाटी महाकाव्य को कौन नहीं जानता। पांडेय जी के रोम-रोम में पैसा है। उनके रोम-रोम को बेंच डालो। कैसे कि......एक हजार पर्ची छपवाओ, उस पर स्लोगन होगा...हल्दीघाटी द्वार का निर्माण। कहां बनेगा हल्दी घाटी द्वार.... पंडित जी के गांव में। तुम बताओगे कि लागत आएगी पांच-दस करोड़। द्वार के लिए पंडित जी से एक पत्र लिखवा लो। उसकी एक हजार फोटो स्टेट करा लो। पर्ची और पत्रों का गट्ठर लेकर राजस्थान निकल जाओ। वहां के रजवाड़े-रईस महाराणा प्रताप के नाम पर कुछ भी खर्च कर सकते हैं। उन्हें एक-एक पर्ची और पत्र की फोटो स्टेट थमाते जाओ, अपनी थैली भरते जाओ। एकाध महीने बाद इधर हल्दीघाटी द्वार के लिए डुमरांव रोड पर दो-चार हजार ईंटे गिरवा दो। फिर तो बेटा पर्ची काटते रहो, काटते रहो, थैली भरते रहो, भरते रहो। वैसे भी पंडित जी के पांव कब्र में लटके हैं, जाने कब टपक जाएं, फिर कौन पूछने वाला कि हल्दीघाटी द्वार के चंदे का क्या हुआ, अपना ठाट से गंगाघाट पर घर-मकान बनाकर काशी के हो जाओ। सात पुश्तें मजा करेंगी। जो रहे काशी, उसको कहां उदासी। जय भोले!वाकई दुबे जी कमाल के। पांच साल में उन्होंने पांच कारखाने खोले। एक-एक कर पांचों का दीवाला। दस परसेंट अफसरों को थमा कर बाकी करोड़ों का लोन गया दुबे जी के बैंक खाते में।

एक दिन दुबे जी ने कहा। भाई लोग हट्टे-कट्टे हैं। नौकरी के लिए दांत चियारे दर-दर भटक रहे हैं। और नौकरी पांव में पड़ी है। एक काम और। हजारों को रोजगार मिल जाएगा घर बैठे। क्या कि..... ज्यादातर बेरोजगार किसानों के बेटे हैं। सबके यहां खूब गेंहूं होता है। सौ-पचास दुकानदारों से एडवांस में आर्डर लो। गेहूं का दलिया पिसवाओ, गांव की मजदूरिनों से पैकेटिंग करवाओ, दनादन सप्लाई करो। हर किसान सरसों उगाता है। इसी तरह सरसो के तेल की सप्लाई करो। हमारे इलाके में तो चावल भी खूब होता है, इसके भी तरह-तरह के आइटम तैयार करो, बेंचो। दस तरह के आइटम गुड़ से बनते हैं। भैंस पालो, दूध बेंचो। देखो न, दूध के लिए कितनी मारामारी मची है। अरे कुछ नहीं, तो पत्ते से कितने तरह के सामान बनते हैं। उनकी बगल के बनारस में ही खूब खपत है। पत्ते बीनो, बेंचो। मालदार बन जाओ। कौन रोकता है तुम्हें ऐं! जो रहे काशी, उसको कहां उदासी। जय भोले!
((उपरोक्त लेख जेपी नारायण के ब्लाग बेहया से साभार लिया गया है))

2 comments:

  1. दादा,सुन्दर बेहयाई है। मैंने एक कहावत सुनी है "चौबे गये छब्बे बनने तो दुबे बन कर लौटे" क्या ये वही वाले दुबे जी हैं जो पहले चौबे थे या कोई दूसरे वाले हैं.....ढिठाई क्षमा किए चलैं...
    जय जय भड़ास

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  2. behayahi ki dastan rochak hai. or dube ji ki bhi.

    Jai ho dada ki,

    JAi JAi Bhadaas

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