30.4.08
welcome to India,the brave president of Iran
अखबार के किसी कोने में भूली भटकी एक ख़बर पढी कि २९ अप्रैल को ईरानी प्रेसिडेंट महमूद अहमदीनेजाद भारत आरहे हैं.भारत का ईरान से काफी गहरा और एतिहासिक रिश्ता रहा है.ये शायद सभी को मालूम है. जून २००५ में भारत और ईरान के दरमियान गैस पाइप लाइन पर सहमति हुयी थी, जिसके तहत ईरान को २२ अरब डॉलर की कीमत पर २५ साल तक ५० लाख टन गैस की सप्लाई भारत को करनी थी. यह पाइप लाइन पाकिस्तान से होते हुए भारत आनी है.गौर किया जाए तो यह एक बहुत बड़ा प्रोजेक्ट है,दोनों नही बल्कि तीनों देशों के लिए,प्रोजेक्ट से ज़्यादा अगर इसे एक नए रिश्ते की शुरुआत कहा जाए तो ग़लत नही होगा. ये सौदा तीनों देशों के लिए फायदे का सौदा है.फायदा सिर्फ़ एक दूसरे की सहूलत और तरक्की का ही नही है,बल्कि ये सौदा तीनों देशों को एक मज़बूत धागे में पिरोने का काम करेगा,बशर्त-येकि तीनों देश एक दूसरे के लिए ईमानदार रह सकें.
इस रिश्ते में ईरान की तरफ़ से तो कोई खतरा नही है,सब से ज़्यादा खतरा पाकिस्तान की तरफ़ से है जो अपनी ज़मीन से पाईप लाइन के गुजरने की मुंह मांगी कीमत चाह रहा है.लेकिन उम्मीद यही है कि पाकिस्तान की नई सरकार इस प्रोजेक्ट की क़द्र-ओ-कीमत को समझेगी और अपना पूरा सहयोग देगी क्योंकि इस से उसका भी कम फायदा नही है.
सब कुछ ठीक हो सकता है,लेकिन असली खतरा उस दुनिया के सब से बड़े दहशत गर्द देश से है जिसे इस प्रोजेक्ट से बनने वाले मज़बूत रिश्ते से अपने लिए खतरे की बू महसूस हो रही होगी.वो भला कैसे चाहेगा कि उसके इशारे पर नाचने वाले देश उसके अज़्ली (पुराने)दुश्मन ईरान से हाथ मिलाएँ.
इस बात का सबूत वो अपने घटिया बयानों से कई बार दे चुका है.
दिलों को बांटने वाला,नफरत का ज़हर फैला कर खून की नदियाँ बहने वाला और इस नफरत और खून से अपने हथियारों के लिए बाज़ार तय्यार करने वाला अमेरिका तीन देशों को एक मज़बूत रिश्ते में बंधते हुएऔर ,तरक्की करते हुए कैसे देख सकता है?
फिर भी उम्मीद है कि तीनों देश इतने समझदार हैं कि अपने हितों को समझेंगे और इस प्रोजेक्ट को सफलता पूर्वक पूरा होने देंगे.
बहरहाल बात हो रही थी ईरानी प्रेसिडेंट के इसी प्रोजेक्ट के सिलसिले में भारत आने की.
मुझे याद है जब अमेरिकी प्रेसिडेंटस बिल क्लिंटन और बुश भारत आए थे.पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ की भारत यात्रा भी अभी भूली नही है.जब हमारा सारा मीडिया ,चाहे वो अखाबारात रहे हों या टी.वी के सारे चैनल्स, उनकी एक एक हरकत पर यूँ नज़र रखे हुए थे कि लगता था कोई होड़ लगी हो कि अगर उन्हें एक छींक भी आजाये तो वो ख़बर सब से पहले उनके अख़बार या चैनल पर आनी चाहिए.
कल यही सोच कर टी.वी पर घंटों न्यूज़ चैनल्स खंगालती रही लेकिन ख़ास ख़बरों की तो बात छोडिये,एक छोटी सी ख़बर भी नही दिखी कि ईरानी सदर भारत आरहे हैं या आ चुके हैं.वहाँ तो हर चैनल्स पर हरभजन सिंह के तमाचे की गूँज थी,दुनिया के पाँच सब से चर्चित तमाचों का बखान हो रहा था.वहां तो पैसों के बल पर चलने वाले तमाशे पर चर्चा हो रही थी.
सोचा कहीं मैंने ग़लत तो नही पढ़ लिया ,ऐसा तो नही कि वो मई २९ को भारत आ रहे हैं? यही सोचते हुए टी.वी बंद कर दिया.
आज सुबह टाइम्स ऑफ़ इंडिया और अमर उजाला देखते हुए पहले तो मायूसी हुई फिर आखिरकार अमर उजाला के सेकंड पेज पर एक छोटी सी तस्वीर और मुख्तसर सी ख़बर पर निगाह पड़ी कि ईरानी प्रेसिडेंट भारत आ चुके हैं और प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह से मुलाक़ात कर चुके हैं.
बड़ी हैरत हुयी,कितने दुःख की बात है कि हमारा मीडिया उन लोगों को तो हाई लाईट करता है जिन के हाथ अनगिनत इंसानों के खून से रंगे हैं,जो इंसानियत के दुश्मन हैं लेकिन ऐसे लोगों को जो दुनिया के हर खतरे से बे खौफ हो कर दुश्मनों की हर धमकी से बे परवाह बिना अपने ज़मीर को गिरवी रखे खामोशी अपने देश और लोगों की तरक्की में लगे हुए हैं,कितनी आसानी से और किस बुरी तरह से दरकिनार कर देता है.
आज अहमदीनेजाद ,जो इस दुनिया में इरादों की मजबूती, बहादुरी और बेखौफी की जीती जागती मिसाल हैं,काश हमारा पश्चिमी मानसिकता से ग्रस्त मीडिया समझ पाता कि ऐसा शख्स ही हाई लाईट होने का असली हक़दार है क्योंकि आने वाले वक़्त में अमेरिका जैसे दहशत गर्द देशों की चौधराहट को ख़त्म करने के लिए दुनिया को ऐसे ही लोगों की ज़रूरत होगी.
बहरहाल मीडिया करे ना करे , हम एक बहादुर इंसान का अपने देश में स्वागत करते हैं.
मैं आपकी बात से सहमत हूँ रक्षंदा जी. अखबार वालों की नजर में शायद ये ख़बर बिकाऊ न हो. मीडिया को सिर्फ़ बिकाऊ ख़बर चाहिए.
ReplyDeleteख़बर वही है जो बिकती है
कम से कम चौबीस घंटे
जरूर टिकती है
वरुण राय
अच्छी पोस्ट....
ReplyDeleteरक्षंदा जी,
ReplyDeleteआपने सोलह आने सही लिखा है, क्या करें हमारे मीडिया के जो आका हैं; लाला जी.... इनके लिए धंधा ज्यादा महत्वपूर्ण है, और बेचारे पत्रकार, वरिस्ट पत्रकार , पता नही क्या क्या , राजनैतिक विश्लेषक , फलाना ढीमकाना सब लाला जी के तलुवे चाटने वाले देश की ख़बर नही अपितु चवन्नी छाप बजारू ख़बर देने मैं ही बहादुरी समझते हैं आख़िर इन्हें लाला जी की शाबाशी जो लेनी है।
इन्ही तलवे चटोरों के कारण तो मेरे जैसी कई भडासी बन गए हैं।
जय जय भडास.