मक्कारों के मोहल्ले में कई लोगों ने गीत के लिए विरुदावली गाई। हृद्येंद्र को, भड़ास को एकतरफा दुर्जन करार दे दिया गया। मुझसे रहा नहीं गया और उस पोस्ट पर ये टिपण्णी डाल दी। ठीक किया या ग़लत ये तो आप लोग ही बताएँगे। टिपण्णी-
आप सबने मिलकर एकतरफा गीत को सज्जन और हृद्येंद्र को दुर्जन करार दे दिया। शायद इसलिए क्योंकि आप गीत को जानते हैं. लेकिन यह एक ही पक्ष है. सबसे पहली बात यह है कि अगर कोई अच्छे लेखक हैं तो जरूरी नहीं कि वह अच्छे आदमी भी हों. यह गीत के ऊपर भी लागू होता है.गीत के जहां तक अच्छे लेखक होने बात है, मैंं यह आरोप नहींं लगाता कि वे दूसरी भाषाआें की कहानियां टीपते हैं। उनकी कहानियां आरिजनल होंगी। मैं ये भी नहीं कहता कि इस वजह से मध्यप्रदेश से प्रकाशि एक साहित्यिक पत्रिका में उनका छपना फिलहाल रोक दिया गया है। ये अलग बात है। हृदयेंद्र ने जो महसूस किया वह इन सबसे अलग है। वह एक नए पत्रकार के मन में बैठे एक मूर्ति का भंजन है। हृदयेंद्र की गीत से कोई खेत की लड़ाई नहीं थी कि लट्ठ लेकर पीछे दौड़ गया। यह स्वीकार करने में आप जैसे खाए अघाए लोगों को या दि कत है कि सारी खूबियों के बावजूद भास्कर जैसे व्यावसायिक संस्थानों व्यि त कैसे आगे बढ़ता है? किस तरह के समझौते करते है? इसीलिए जो लोग साथ काम करते हैं, ज्यादा समय गुजारते हैं वे जानते हैं कि व्यि त का असली चरित्र या है और वह कितना लिजलिजा और मतलबी है? आप ने हृदयेंद्र को कुंठा की काली कोठरी में बैठा करार दे दिया लेकिन क्या उसके बारे में जानते हैं? शायद नहीं? क्या किसी ने उससे जानने की कोशिश की ? नहीं। फिर कैसे फैसला ले लिया कौन सही है और कौन गलत। जालंधर में ही गीत केकई पुराने जाननेवाले हैं, उनका कहना है कि गीत पुराने परिचितों से मिलना नहीं चाहते। फोन करने पर भी ठीक से बात नहीं करते। एक सज्जन जो मुंबई से उसे जानते हैं वे मिलने गए तो कहलवा दिया कि मीटिंग में है। मुझे तो लगता है कि गीत कृतित्व और व्यि तव में कितना बड़ा अंतर हो सकता है उसका बड़ा उदाहरण है।
dada is pure mamley se main wakai aahat hua.kitna sahi visleshan kiya. kisi se meri koi dusmani nahi rahi.mere un sajjan sey bhi do mulakaat huyi, behad acchi. lekin meri aankhon ke saamney ek aisi ghatna huyi jisne na sirf mere bharosey ko thoda balki muje lagta hai jeevan me wo ghatna shayad hi kabhi ghatey.( ek mahila mukti ki baat kahne waley aadmi ki patni chappal lekar office aati hai, jeebhar roti hai aur poore office ke samney apne hi pati ke kaarnamon ka khulasa ro-rokar karti hai..wahin dusri mahila usi vyakti sey ro rokar khud ko apnaney ki appeal karti hai..ye sab mere saamney ghata..insaan hone ke naatey dukh hua) kisi ka niji maamla ho sakta hai par ek saath itney aanso aur do mahilaon ki trasdi dekhkar man bada aahat hua...shayad hi kabhi kisi ka dil dukhaya ho..haan mere likhey se ek sajjan ka man aahat hua..ussey bhi main behad dukhi hun..maine galti ki ek sahi cheej ko shayat acchi chaasni me nahi ghol paaya...dada is beech sach kahney, sach ka saath deney aur sach likhney ki duhaai dene walon ka bhi haal dekha....kul milakar faisla kiya jab sach likhna itna bura hai..sach ki duhaai dene waley hi haath keech letey hain...to muje kya padi hai sach likhne ki....aapne meri peeda samjhi accha laga..baaki blog sey bhi aagey ki cheejon me buisy hoon...main to haar gaya in blogs me likhne ke maamley mein...bhadas par bhi ye aakhiri baar hi kuch likh raha hun..sabkey apney agendey hain, sabko apna swarth saadhna hai, sabkey apney math hain...to hum chutiye bewajah in chakkaron me padey hain....hum bhi apna kaam dekhen...mere saath bhi is beech kai khel huye...unko bhi samjha aur jaana...cheejon ki asliyat...jeewan raha to bhavisya me jaroor mulakaat hogi..kyunki aap ummid bandhgatey hain ki koi to sach bol sakta hai...main bhi galti sey patrakar hun..jald hi ye chola utaar fenkunga....sala badi gandt hai...duniya ke sabsey badey harami to yahi saale patrakaar hain
ReplyDeleteaap kush,rahen mast rahen....baki sab kush aur mast rahen yahi prarthna hai
aapka
hridayendra
हृदयेंद्र भाई,आपको भड़ास पर लिखने के लिये बाध्य तो नहीं कर सकता लेकिन ये जरूर बताना चाहता हूं कि मैं और बिहारी के साथ-साथ आपने भी पत्रकारिता का कलुष देखा लेकिन आप ऐसा क्यों सोचते हैं कि इस गंदगी को छोड़ कर भाग जाने से ये साफ़ हो जाएगी? मैंने इसी लिये आय का एक वैकल्पिक स्रोत बना लिया था इस लिये मैं अब भड़ास पर इस गंदगी को सबके सामने ला पा रहा हूं। इसे अगर प्यार भरे शब्दों मे कहूं तो बस इतना ही कहूंगा " क्या भिड़ू बस इत्ते में इच टैं बोल गया"....
ReplyDeleteहृदयेंद्र, आपकी पीड़ा समझाता हूँ गीत की चरित्र हीनता को लोग उसके कवि होने या संबधों से ढकना चाहते हैं. आप mujhe ईमेल कर सकते हैं. bambam.bihari@gmail.com
ReplyDeleteबम बम भाई,
ReplyDeleteमैं व्यक्तिगत तौर पर ना ही गीत जी को जानता हूँ और ना ही हृदयेंद्र जी को मगर लेखन से मैने जिस हृदयेंद्र को जाना है, मुझे तो बस इतना कहता है की भाई आप के साथ कोई हो ना हो मैं तो हूँ ही, और वैसी भी पत्रकारिता के कीचड को बिना पत्रकार रहते मैने जितने करीब से देखा है मैं अपने भाई से जरा भी गैर इत्तेफाक नहीं रखता. बस भडास निकालो. और जरूर निकालो.
जय जय भडास.
बमबम जी ,
ReplyDeleteमैं भी कमोबेश रजनीश भाई जैसा ही सोचता हूँ इस मसले पर. हृदयेंद्र जी को तब तक भड़ास पर लिखते रहना चहिये था जबतक जबतक उन्हें भड़ास की तरफ़ से मना नहीं किया जाता. भड़ास को छोड़ देना या पत्रकारिता को छोड़ देना समस्या का हल नहीं है. आप अगर पत्रकारिता के कीचड़ से आहत हैं तो आप इसी में रहकर इसमें बदलाव लाने की कोशिश कर सकते हैं.
दुनिया से घबड़ा के कहते हैं कि मर जायेंगे
मर कर भी जो न चैन पाया तो किधर जायेंगे.
वरुण राय
बमबम जी ,
ReplyDeleteमैं भी कमोबेश रजनीश भाई जैसा ही सोचता हूँ इस मसले पर. हृदयेंद्र जी को तब तक भड़ास पर लिखते रहना चहिये था जबतक जबतक उन्हें भड़ास की तरफ़ से मना नहीं किया जाता. भड़ास को छोड़ देना या पत्रकारिता को छोड़ देना समस्या का हल नहीं है. आप अगर पत्रकारिता के कीचड़ से आहत हैं तो आप इसी में रहकर इसमें बदलाव लाने की कोशिश कर सकते हैं.
दुनिया से घबड़ा के कहते हैं कि मर जायेंगे
मर कर भी जो न चैन पाया तो किधर जायेंगे.
वरुण राय
बमबम जी ,
ReplyDeleteमैं भी कमोबेश रजनीश भाई जैसा ही सोचता हूँ इस मसले पर. हृदयेंद्र जी को तब तक भड़ास पर लिखते रहना चहिये था जबतक जबतक उन्हें भड़ास की तरफ़ से मना नहीं किया जाता. भड़ास को छोड़ देना या पत्रकारिता को छोड़ देना समस्या का हल नहीं है. आप अगर पत्रकारिता के कीचड़ से आहत हैं तो आप इसी में रहकर इसमें बदलाव लाने की कोशिश कर सकते हैं.
दुनिया से घबड़ा के कहते हैं कि मर जायेंगे
मर कर भी जो न चैन पाया तो किधर जायेंगे.
वरुण राय