पहली पोस्ट कर रहा हूँ यहाँ...उम्मीद है कुछ ग़लत ना लिख दिया हो
आसमान में फैले
कूड़े से लेकर
उंगलियों के बीच की
जगह तक
सब कुछ बिकता है...
बरसों बाद
हम अपने दोस्त से
मिलने जाते हैं
और चकित हो जाते हैं
घर की जगह
दुकान पाते हैं!!
क्या सचमुच
इतना कुछ है
बेचने के लिए??!!
सुन्दर है भाई बहुत ही सुन्दर....
ReplyDeleteपीयूष भाई,क्या आप ही हैं जो मोहल्ले में भटक रहे हैं या आप से मिलता जुलता कोई दूसरा प्राणी है? अगर आप ही हैं तो बता दूं कि कुछ ही दिनों में आप मोहल्ले के काटने-चाटने वाले कुत्तों से वाकिफ़ हो जाएंगे...
ReplyDeleteउत्तम . और खरीदने वाले भी मौजूद हैं मिश्रा जी .
ReplyDeleteवरुण राय
भाई पीयूष,
ReplyDeleteस्वागत है और गलत सही की फिकर ना करो क्योँ की अब आप उस से ऊपर आ गए हो.
बेहतरीन है.
बधाई.
जय जय भडास
गजब है गुरु...गबज....बस, पहली पोस्ट को अंतिम न कर दीजिएगा...डरते डरते....। यहां डरने की नहीं, हुंकार भरने की जरूरत है।
ReplyDeleteस्वागत है आपका।
यशवंत