9.5.08

आएगी शर्म अपने होने पर!

राकेश रंजन की कविताएँ

तब भी तो

तुम मेरी हो भी जाओ
तब भी तो
होंगे ये दुख और ये जुल्मोसितम
ठह-ठह हँसेगा असत्य
नाचेगी नंगी दरिन्दगी
होगी ज़माने की भूख
दर्द से फटेगा कलेजा
रात भर न आएगी नींद
आएगी शर्म अपने सोने पर
तुम मेरी हो भी जाओ
तब भी तो
आएगी शर्म अपने होने पर!


कैटवाक

फ़ैशन शो के
जगमग मंच से उतरकर
दबे पाँव
इच्छाओं के अन्धेरों में
टहलती हुई
बिल्लियाँ
खरहे की खाल-सी मुलायम
बाघिन के पंजों-सी क्रूर
खंजर-सी नंगी
चमकीली
हर तरफ़ अन्धेरा
हर तरफ़ बिल्लियों की
नीली-भयानक
आँखों की चमक
प्रकाश-पथ के पथिक
ठमके हुए सरेराह
उनकी राहें
काटती हुई बिल्लियाँ
महान सिंहों की नस्लें
कुत्तों के झुंड में
तब्दील होती हुईं...

हल्लो राजा
हल्लो राजा!
कभी-कभी तो कठिन धूप में
चल्लो राजा!
कभी-कभी तो चिन्ता-भय से
गल्लो राजा!
कभी-कभी तो जठरागिन में
जल्लो राजा!
जब तिनके-भर सुख की ख़ातिर
स्याह जंगलों-जैसे दुक्खों से जुज्झोगे
तब बुज्झोगे
परजा होना खेल नहीं है
किसी जनम में
इसका सुख से मेल नहीं है!
मैंने पूछा :
राजा, कैसी है तुकबन्दी?
राजा बोले :
बेहद गन्दी!

कवि
निकलता है
पानी की चिन्ता में
लौटता है लेकर समुन्दर अछोर
ठौर की तलाश में
निकलता है
लौटता है हाथों पर धारे वसुन्धरा
सब्जियाँ खरीदने
निकलता है
लौटता है लेकर भरा-पूरा चांद
अंडे लाने को
निकलता है
लौटता है कंधों पर लादे ब्रह्मांड
हत्यारी नगरी में
निकलेगा इसी तरह किसी रोज़
तो लौट नहीं पाएगा!


राकेश रंजन, जन्म: 1973
जन्म स्थान: हाजीपुर,वैशाली,बिहार
कुछ प्रमुखकृतियाँ : अंधेरे में ध्वनियों के बुलबुले , अभी -अभी जन्मा है कवि

मोबाइल : 09934841876

2 comments:

  1. हरे भाई...हल्लो राजा तो शानदार है, मजा आ गया। राकेश रंजन जी तो बिलकुल हम लोगों की बातें लिखते हैं, भड़ासी टाइफ। जीते रहें वो। आज सोच रहा हूं उन्हें फोन कर ही दूं....

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  2. 'तब भी तो' कुछ समझ में नहीं आया हरे दादा. बाकी राकेश जी की हल्लो राजा , कैटवाक और कवि तीनों रचनाएँ बेहतरीन थी
    वरुण राय

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