10.5.08

ऐ इश्क कहीं ले चल

उन चांद सितारों के बिखरे हुए शहरों में
उन नूर की किरनों की ठहरी हुई लहरों में
ठहरी हुई नहरों में, सोई हुई लहरों में
ऐ ख़िज़र-ए-हसीं ले चल, ऐ इश्क कहीं ले चल
आंखों में समाई है इक ख्वाब नुमा दुनिया
तारों की तरह रौशन महताब नुमा दुनिया
जन्नत की तरह रंगीं शादाब नुमा दुनिया
लिल्लाह वहीं ले चल, ऐ इश्क कहीं ले चल


ये दर्द भरी दुनिया, बस्ती है गुनाहों की
दिल चाक उम्मीदों की, सफ्फाक निगाहों की
ज़ुल्मों की, जफाओं की, आहों की, कराहों की
हैं ग़म से हज़ीं ले चल, ऐ इश्क कहीं ले चल
क़ुदरत हो हिमायत पर, हमदर्द हो किस्मत भी
नेकी भी हों पहलू में, नेकी से मुहब्बत भी
हर शै में फ़राग़त हो, और तेरी इनायत भी
ऐ तिफ्ल-ए-हसीं ले चल, ऐ इश्क कहीं ले चल
हम प्रेम पुजारी हैं, तू प्रेम कन्हैया है
हम प्रेम कन्हैया हैं, ये प्रेम की नैया है
ये प्रेम की नैया है, तू इसका खिवैया है
कुछ फिक्र नहीं ले चल, ऐ इश्क कहीं ले चल
.................................................रियाज़


(भड़ासी दोस्तों, एक मुद्दत के बाद भड़ास पर लौटा हूं। ये पौधा आज वटवृक्ष बन चुका है। निजी व्यस्तताओं ने मौका नहीं दिया। पहली फुर्सत में हाजिर हूं। एक ग़ज़ल पोस्ट कर रहा हूं। उम्मीद है कि पसंद आयेगी और आपकी प्रतिक्रिया भी आयेगी।)

4 comments:

  1. अरे रिया़ज़ भाई धन्य हैं!!! काफ़ी अर्से बाद अपनी
    आमद दर्ज कराई लेकिन बडी अच्छी गज़ल के साथ।
    उम्मीद है आप पहले की तरह भडास को अपना बहुमूल्य योगदान देते रहेंगे।
    धन्यवाद...
    अंकित माथुर...

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  2. अस्सलाम अलैकुम रियाज़ भाई,ग़ज़ल तो बस जादू भरी है क्या-क्या कह डाला इन चंद लाइनों में...
    आज वाकई भड़ास एक सहस्त्रबाहुवट बन चुका है आपका आशीर्वाद और सहयोग बना रहे...
    सप्रेम
    डा.रूपेश श्रीवास्तव

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  3. डा. रुपेश श्रीवास्तव और अंकित माथुर का शुक्रिया। साथियों के इसी उत्साहवर्द्धन का ही नतीजा है कि आज भड़ास सर्वश्रेष्ठ और सबसे चर्चित ब्लाग है।

    धन्यवाद
    रियाज़

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  4. रियाज़ भाई,
    इसी तरह दे दना दन मारते रहिये, बेहतरीन लिखा है मजा आ गया. उम्मीद है आपका ये सिलसिला चलत रहेगा ;-).
    आपको बधाई.

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