सोचता हूं तो डर लगता है।
और नहीं सोचता हूं तो डरता हूं।।
कभी खुद के बारे में।
कभी दूसरों के बारे में।
उस सिग्नल पर बेसुध पडा वह आदमी ही था।
स्टेशन पर चिथडों में घूमने वाला भी आदमी ही था।
भूख से बिलखता हुआ वह बच्चा भी आदमी ही था।
उसी सिग्नल पर लंबी गाडी में एसी की हवा खा रहा वह आदमी ही था।
उसी स्टेशन पर लंबे कोट में सिगरेट के धुंए उडा रहा आदमी ही था।
उस होटल में कई लोगों का खाना बर्बाद करने वाला आदमी ही था।
सोचता हूं तो डर लगता है।
और नहीं सोचता हूं तो डरता हूं।।
कभी खुद के बारे में।
कभी दूसरों के बारे में।
सोचता हूं तो डर लगता है।
ReplyDeleteऔर नहीं सोचता हूं तो डरता हूं।।
अबरार भाईजान,क्या हम जैसे लोगों की यही नियति बन गयी है कि डर डर कर सोचो और सोच सोच कर डरो फिर सोच और डर कर मरो.....
अबरार भाई,
ReplyDeleteबहुत हो गया अब सोचना बंद कर दो नहीं तो बस सोचते ही रह जाओगे. निकल जायेगी दुनिया बीत जायेगा जमाना छुट जायेगा सब कुछ.
सोचना बंद करो सोचना बंद करो.
जय जय भडास