1.5.08

श्लोक अधर मंत्र-सी आंखें देवालय-सा तन

श्लोक अधर मंत्र-सी आंखें देवालय-सा तन
रामायण-सा रूप तुम्हारा सांसें वृंदावन
मौलश्री की छांव के नीचे तुम ऐसी दिखती हो
भोजपत्र पर-जैसे कोई वेद-ऋचा लिख दी हो
जब से दरस तुम्हारा पाया हुआ तथागत मन
श्लोक अधर मंत्र-सी आंखें देवालय-सा तन
रामायण-सा रूप तुम्हारा सांसें वृंदावन
भेज दिया है गीत टांककर तुम्हें आज पाती में
अलगोजे की धुन गूंजे ज्यों चंदन की घाटी में
याद तुम्हारी महकी ऐसे ज्यों मंदिर में हवन
श्लोक अधर मंत्र-सी आंखें देवालय-सा तन
रामायण-सा रूप तुम्हारा सांसें वृंदावन
पं. सुरेश नीरव
मो.९८१०२४३९६६
(डा.रूपेशजी, रजनीश के.झा और वरुण राय का प्रतिक्रया हेतु आभार)

6 comments:

  1. भाई नीरव जी
    मंत्रमुग्ध कर देने वाली रचना है।

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  2. भाई नीरव जी
    मंत्रमुग्ध कर देने वाली रचना है।

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  3. वाह वाह,
    पंडित जी, मुग्ध कर दिया आपने, सच कहूं तो बड़ी उर्जा मिलती है आपके रचना से।
    साधुवाद।

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  4. डॉक्टर साहेब,
    पंडित जी की पिछली रचना अगर आपको गुलगुली,मखमली आदि लग रही थी तो इस रचना के बारे में क्या ख्याल है? क्या करना चाहेंगे इसके साथ आप. ये तो दो कदम आगे की चीज है.
    नीरव जी ,
    मैं तो आपका मुरीद हो गया हूँ.
    वरुण राय

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  5. बडे भईया प्रणाम। बहुत सुंदर रचना है।

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  6. भाऊ,अपुन को सब एकदम मऊ इच लग रएला है ऊऊऊऊऊऊऊ........

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