महफिल में आ गये हैं तेरी रजा से हम
जाएंगे तेरी नूर की दौलत कमा के हम
तनहाइयों के रेशमी लम्हात के तले
बैठे हैं तेरी याद के सपने सजा के हम
गर साथ हो तुम्हारा तो मानिए यकीन
कर सकते हैं बगावत सारे जहां से हम
जज्बा शमा से कमतर हरगिज न आंकिए
रौशन करेंगे महफिल खुद को जलाके हम
मकबूल गर्दिशों ने ऐसे हौसले दिए
नजरें लड़ा रहे हैं हँसकर कजा से हम।
मृगेन्द्र मकबूल
मियां मक़बूल, धांसू है इसी तरह से पेले रहिये...
ReplyDeleteमकबूल भाई,
ReplyDeleteहम तो आप पर फ़िदा हो गए, बेहतरीन है दोस्त. लगे रहिये.