आतंकवाद ,
है बहुत बडा विवाद
घिन करते है इससे सब
फिर जाने क्यों, कब
आतंकवादी बन जाते है
खून , कत्ल , तमंचा , हतियार
लूट-पाट और बलात्कार
करते है इससे जुड़ने से इनकार
फिर एक दिन अचानक
जाने क्यों इनके हो जाते है
जो रोते थे कभी
खून देखकर,
आज दूसरो के साथ
खूनी होली खेल मुस्कुराते है
थे ये भी कभी इंसान
जो आज आतंकवादी कहलाते है
कई शौक मै तो कई मजबूरी मै
इसे अपनाते है
किसी ने छीना इनका घर
इनकी दौलत, इनका गुरूर , इनका परिवार
उसी की खातिर अब
ये औरो का घर उजाड़ते है
वैसे कौन ऐसा होगा जो
सब चुपचाप सहता जायेगा
अपने सामने बहन की इज्जत लुटते देख
क्या भाई का खून नही khaul जायेगा
और उसी का बदला लेने की खातिर
वह भी आतंकवादी बन जायेगा
फिर किसी बहन की इज्जत लूट
वह अपनी कसम निभाएगा
और फिर बहन की इज्जत लुटते देख
कोई भाई आंतकवादी बन जायेगा
इसी तरह यह क्रम यू चलता ही जायेगा
बदले की आग मै निर्दोष भी
मौत के घाट उतरता जायेगा ।
पर क्या , इस तरह निर्दोष की जाने लेकर
सही मायने मै कोई
अपना बदला ले पायेगा और क्या हमपर हरदम
इसी तरह ,
आतंकवाद का साया लहरायेगा
अपना- अपना बदला लेने की खातिर या ,
जल्दी पैसे कमाने की खातिर,
क्या हर आदमी यू ही
आतंकवादी बनता जायेगा ?
बात विचारणीय है क्योंकि ऐसी स्थिति क्यों बनती है कि लोगों को न्याय के लिये आतंक का मार्ग चुनना पड़ता है? हम सबको चेतना जगानी होगी आम जनता में और साथ ही लोकतंत्र में यकीन के साथ ही संविधान में आस्था......
ReplyDeletegambhir sawal hai ye....sabko ab jagna hoga.....tabhi kuchh badal sakega.
ReplyDeletelikhte rahiye. aapka andaz sabse alag aur dhardhaar hai.
कमला जी,
ReplyDeleteये प्रश्न है एक ज्वलंत मुद्दा, सच में हमें इस विकराल समस्या के जड़ को हटाना है ना की समस्या को. जिन लोगों का संवैधानिक व्यवस्था से भरोसा उठ गया है उन्हें मुख्यधारा में जगह देनी होगी.
अच्छा लिखा है.
बहुत अच्छा कमला बहन. पर इतना हतास होने की जरूरत नहीं है. हालत जरूर बदलेंगे अगर हम अपने आप को बदल सके और सरकार को वो करने पर मजबूर कर सके जो देश और आम लोगों के हित में है, बिना लिंग जाती धर्म संप्रदाय का भेदभाव किए.
ReplyDeleteवरुण राय