30.5.08

चार दिन से रेल की पटरियां जाम है!

प्रतिभा कुशवाहा
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चार दिन से रेल की पटरियां जाम है! कूड़े के ढेर से नहीं बल्कि लाशों से। लाशें किसी गैरों की नहीं अपनों की। मरूभूमि की तपिश ही इन लाशों का दाह-संस्कार कर रही है क्योकिं पुलिस इन्हें अपनों को नहीं सौंप रही है। उनकी मां, बहनें, पत्नियां रो-रोकर छाती पीट रही है, इस समय उनके दिमाग में कही भी कोई मांग नहीं है। बस एक गुजारिश है कि यह खेल बंद किया जाए। उनके गालों पर सूखे हुए आंसू एवं रूंधा गला खुदा से अपने प्रिय के प्राण वापस चाहती है।

रेल की पटरियों के समान कभी भी मानवता एवं राजनीति नहीं मिलती है। बस साथ-साथ चलती है, दोनों एकदूसरे के सहयोग नहीं कर पाते क्योकिं कुछ लोग ऐसा नहीं चाहते। वह नहीं चाहते कि राजनीति का ‘मुखड़ा’ सुंदर हो। उन्होंने राजनीति को सभी प्रकार की विकृतियों का अखाड़ा बना दिया है। बड़े गर्व से कहते है कि आओ, ‘इस अखाड़े में अपने-अपने करतब दिखाओ। और देखना कि मूर्ख, अनपढ़ लोग कैसे हमारे तमाशों पर ताली पीटते ...। किलविसी मुस्कान के साथ उनके दिमाग के किसी कोने पर यह विकृति आती है कि ‘इस तरह बारी-बारी से अपने करतब दिखा कर हम अपना पेट पालते रहेगे और साथ ही कई पीढीयों तक का जुगाड़ भी कर लेगे।’

चार दिन से रेल की पटरियां जाम है! कुछ फालतू के लोग आने-जाने के लिए मरे जा रहे है। यह नहीं कि इतनी गर्मी में यात्रा करना सेहत के लिए हानिकारक है। अरे! रोजी-रोटी के लिए हमें जाना है। ‘क्यों, घास की रोटियां खतम हो गई, जो हमारे राजा ने खाई थी।’ हमारा बच्चा बीमार है! क्या इस देश की जनसंख्या कुछ कम है? रोज तो रेल चलती है दो-चार दिन नहीं चलेगी तो क्या...। कमबख्त, भिकमंगे कहीं के! रेल से यात्रा करेगें। चार दिन से रेल की पटरियां जाम है! अभी उच्चाधिकारियों की मीटिंग चल रही है, सभी बड़े मुद्दो पर व्यस्त है। कार्यवाही चल रही है, देखिए क्या नतीजे निकलते है। सब कुछ अपनी गति से हो रहा है, कब तक होगा पता नहीं। हर बड़े काम में समय तो लगता है।

अभी-अभी खबर है कि पटरियों पर पड़ी लाशें एक-एक कर गायब हो रही। विपक्ष का दावा है कि सत्ता वाले ऐसा काम कर रहे है क्योकिं हम लाश पर राजनीति कर रहे थे, वह नहीं कर पा रहे है। इसी जलन के चलते वे ऐसा कर रहे है। अत: हम मांग करते है कि लाशों के गायब होने पर सीबीआई जांच करवाई जाए। अगर ऐसा नहीं हुआ तो हम और लाशें गिरा देगे। तभी एक बच्ची फुसफुसा कर कान में कहती है, ‘एक काला-मोटा, भैंस पर सवार आदमी (यमराज) सभी लाशें ले गया है।’ लगता है उन्होंने अपनाधंधा-पानी बदल लिया है। और बदले भी क्यों न, उनके पेट पर हमने जो लात मार दी है! लाशों के ढेर लगाकर।

(प्रतिभा कुशवाहा ने इस व्यंग्य को भड़ास पर प्रकाशित करने के लिए मेल किया था। उन्हें धन्यवाद।)

4 comments:

  1. यह आप कहाँ की बात कर रही हैं? अगर आप राजस्थान में चल रहे गुर्जर आन्दोलन की बात कर रही हैं तो मीडिया के अनुसार लाशें तो आन्दोलनकारियों के कब्जे में है जो इन्हें पोस्टमारटम के लिए सरकार को नहीं सौंप रहे हैं. यह बहुत ही दुःख की बात है. शवों का इस तरह अपमान नहीं किया जाना चाहिए. जो कोई भी इस के लिए जिम्मेदार है बहुत शर्मनाक काम कर रहे हैं. इस आन्दोलन में इंसान भी मरे और इंसानियत भी.

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  2. pratibhaji vyag me dhar nahin hai, lekin pryas umda hai

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  3. दादा,प्रतिभा बहन की लेखनी का पैनापन बहुत दूर तक चुभन पैदा करने वाला है लेकिन हमारे और आपके लिये उनके लिये नहीं जिनकी चमड़ी गैंडो से भी ज्यादा मोटी है,स्स्साआले डायनासोर और सुअरॊं के वर्णसंकर हैं,पिशाच कहीं के... अरे इन लोगों को हम भड़ासियों की बद्दुआएं लगेंगी तो सालों को पिछाड़ी में चूनूने काटेंगे,एक-एक फ़ुट लम्बे कीड़े पड़ेंगे.....%ऽ*(०=)%ऽ%‍
    जय जय भड़ास

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  4. प्रतिभा जी,

    अच्छा लिखा है, बेहतर है,

    प्रयास जारी रखें।

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