संदर्भः चंबलघाटी कवि सम्मेलन
चंबल के भयंकर डाकुओं ने
यानी स्टेनलेस स्टील के चाकुओं ने
कर दिया मुख्यमंत्री के आगे आत्मसमर्पण
यानी अपनी ही नस्ल के जंतु के आगे अपना तर्पण
प्रश्न ये उठा कि इन्हें क्या सजा दी जाए
किसी ने कहा-
इनसे चक्की चलवाई जाएं
किसी ने कहा-
इनसे भारी-भारी दरियां बुनवाई जाएं
तो हमने कहा-
भैया...
ये आत्समर्पित डाकू हैं
इसलिए न तो इनसे चक्कीयां चलवाई जाएगी
और न ही इनसे भारी-भारी दरियां बुनवाई जाएंगी
इन सब को सजाए बतौर
माइकपकड़ू कवियों की बोर कविताएं सुनवाई जांएगी
डाकू चिल्लाएंगे...
हमें मार डालो या फांसी के फंदे पर लटकाओ
मगर इन बोर कवियों की कविताओं से बचाओ।
पं. सुरेश नीरव
मों.९८१०२४३९६६
( इस से सिद्ध होता है कि कवियों के आगे बेचारा डाकू कितना निरीह होता है? खैर.. मेरी रचना पर भाई यशवंत, डॉ.रूपेश श्रीवास्तव, अनिल भारद्वाज, रजनीश के.झा, वरुण राय, अंकित माथुर और मृगेन्द्र मकबूल ने जो अपनी दिलचस्प टिप्पणियां भेजी हैं,वह मेरी मौलिक कविता से ज्यादा मजेदार हैं, मैं उनकी मजाकिया मर्दानगी को साष्टांग दंडवत करता हूं, और कर भी क्या सकता हूं? हास्यमेव जयते..। )
बहुत खूब गुरुदेव. तुस्सी ग्रेट हो.
ReplyDeleteवरुण राय.
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteअब अगली बारी लश्करे तोयबा और हूजी को कविताएं सुनाई जाएंगी फिर उसके बाद दाउद इब्राहिम और ओसामा बिन लादेन का नंबर आएगा... कविताओं के बाद ये सारे लोग या तो आत्महत्या कर लेंगे या आत्मसमर्पण कर देंगे..
ReplyDeleteपंडित जी प्रणाम.
ReplyDeleteबेहतरीन है, लाजवाब है, शानदार है.
वैसी भडासी के बारे में क्या ख़याल है.
;-)
जय जय भडास
बहुत खूब बडे भईया। बहुत खूब
ReplyDelete