मैं तो रोने लगता हूं। अभी कल की ही तो बात है। बच्चों के साथ गया था भूतनाथ देखने। तीन बार आंखें भर आईं। यह स्थिति तब बनी जब मैं तय करके आया था कि किसी हालत में नहीं रोना है। पिछले बार का अनुभव ठीक नहीं था, इसी से खुद से न रोने का वादा करके और दिल कड़ा करके गया था।
पिछली बार तारे जमीन पर देखने के दौरान कई दफे रोया थ। पत्नी, बच्ची और मैं तीनों रोये थे।
बस, बेटा नहीं रोया। उससे पूछा कि तुझे रूलाई नहीं आई तो बोला कि ये फिल्म सीरियल तो नाटक होते हैं, इन्हें देखकर क्या रोना। उसने उल्टे मुझ पर सवाल खड़ा कर दिया, तुम तो बहुत बहादुर बनते हो, मर्द बनते हो, तो फिर औरतों की तरह रोये क्यों? मैं निरुत्तर था। लगा, चोरी पकड़ी गई। इसी के चलते इस बार दिल कड़ा करके गया था भूतनाथ देखने।
पर उलटी पड़ गईं सब तदबीरें...आंखें भर ही आईं, कुछ बूंद लुढ़क ही गए। सिम्मी दीदी लगातार रुमाल अपने चेहरे पर घुमाए जा रही थीं, मणिमाला मैडम का भी हाथ उनके चेहरे के इर्द गिर्द ही घूमता रहा। पर आयुष दादा तो वाकई दादा निकले। चेहरे पर बिना भाव लाए, पेप्सी गटकते हुए फिल्म देखते रहे।
हे भाई फिल्म वालों, इतनी अच्छी फिल्में भी न बनाओ जिससे देखने जाने के दौरान रास्ते में रुककर कई दर्जन रुमाल खरीदना पड़े। अच्छी फूल्म है भूतनाथ। आप भी जरूर देखें और खासकर बच्चों को भी दिखाएं।
मैं यहां साफ कर दूं कि रुलाई भूत के डर से नहीं बल्कि मानवीय संवेदनाओं के रीयलिस्टिक नरेशन की वजह से आई। वरना क्या पता भाई लोग कहेंगे कि साला फट्टू फिल्म के भूत से डर गया:)
जय भड़ास
यशवंत
फ़िल्म अभी देखी तो नही पर देखना ज़रूर है,थोड़ा और भी अच्छी तरह बता दिया आपने...वैसे आपको नही लगता, कि धीरे धीरे हमारी फिल्में लगे बंधे फार्मूलों से हट कर कुछ अलग कर रही हैं,उम्मीद यही है की बी.आर.फिल्म्स की तरह और लोग भी ऐसे ही दर्शकों को स्वस्थ मनोरंजन देने की कोशिश करेंगे.
ReplyDeleteरोना, हंसना, उदास होना, खिलखिलाना, ठहाके मारना, गुस्साना...जीवन के इकहरे क्षण न नसीब न हों तो आदमी दुनियादारी के पगलापे से असमय खुदकुशी कर ले। ये मनोभाव मन और आचरण दोनों को निर्विकार और तरोताजा बने रहने की बड़ी ताकत देते हैं। इमोशन आदमी की ईमानदारी का सबसे बड़ा सर्टिफिकेट होता है। वैसे तो आजकल तमाम तरह के तिलस्मी भूत बंगलों के अनुभव से गुजर रहा हूं, फिर भी...मैं भी देखूंगा भूतनाथ!
ReplyDeleteमैंने निर्णय कर लिया है कि अब अच्छे काम बंद कर दूंगा वरना अगर मोक्ष मिल गया तो भूत बनने से वंचित रह जाऊंगा। बस चोला छूटने की देर है फिर देखना भड़ास पर मेरे कमाल..... फिल्मी भूतनाथ को क्या सिम्पैथी मिलेगी मेरे साथ तो सिम्पैथी, एलोपैथी और होम्योपैथी भी रहेगी लोगों की। मैं ऐसी फिल्मों से बहुत प्रभावित हो जाता हूं अब बस एक ही लक्ष्य है कि अच्छा भूत कैसे बन सकूं.......
ReplyDeletesahe kaha aapne....par movie ke promotion pe to critics ka hak hota hai khas kar jo stars dete hai!Bhootnath bahut he alag tareke se kahe gaye wahe baate hai.aur sayad andhere mai rona he cinema hall ke khasiyat hai.
ReplyDeletesahe kaha aapne....par movie ke promotion pe to critics ka hak hota hai khas kar jo stars dete hai!Bhootnath bahut he alag tareke se kahe gaye wahe baate hai.aur sayad andhere mai rona he cinema hall ke khasiyat hai.
ReplyDeletesahe kaha aapne....par movie ke promotion pe to critics ka hak hota hai khas kar jo stars dete hai!Bhootnath bahut he alag tareke se kahe gaye parevaric cinema hai.Aur sayad andhere mai rona he cinema hall ke khasiyat hai.
ReplyDeletebahut badhiya aap to meri catogary ke nikale
ReplyDeletebahut badhiya aap to meri catogary ke nikale
ReplyDeleteदद्दा,
ReplyDeleteये जो हंसने और रोने की वास्तविक प्रक्रिया है इसे एक संवेदना से पूर्ण व्यक्ति ही इसमें शामिल हो सकते हैं. कहने को मगरमच्छी रोने वालों की तो तादाद बहुतायत है मगर मानवीय संवेदना .........
हम भडासी हैं क्योँ की रोने और साथ में रोने की संवेदना हममे है. ऐसा मुझे तो लगता है. रही बात डॉक्टर साब की तो ये तो आर टी आई- आर टी आई भूत बनकर भी खेलते रहेंगे.
जय जय भडास