एक आंकडे के मुताबिक भारत मै प्रत्येक २६ मिनट मै एक महिला छेड़छाड़ की शिकार होती है , प्रत्येक ३४ मिनट मै उसके साथ बलात्कार होता है , हर ४३ मिनट मै कोई उसका अपहरण कर लेता है और प्रत्येक ९३ मिनट बाद देश के किसी न किसी हिस्से मै उसकी हत्या कर दी जाती है।
कमला बहन,हम कब तक इस बात का रोना रोएं कि ये बुरा है या वो बुरा है, मैं कहता हूं कि अगर सब कुछ बुरा है तो हम लोग क्या कर रहे हैं? बस निंदा और भर्त्सना करके हम स्वयंभू "भले इंसानो" का दायित्त्व पूरा हो जाता है या कुछ करने का भी जिम्मेदारी है हमारी.....????? अगर कुछ बुरा है तो उसे रोकने का प्रयास करिये और भड़ास के माध्यम से बताइये..... आंकड़ों का खेल तो सरकार के लिये है वर्तमान सरकार के विरोधी यही आंकड़े बता कर सरकार की टांग खींचते हैं और खुद सत्ता में आते ही भूल जाते हैं और महामूर्ख जनता क्या करती है? बस वोट डालती है... अब समय हमें बदलना है.. मेरा देश महान नहीं है इसके लिये मैं जिम्मेदार हूं...
ReplyDeleteबहन जी
ReplyDeleteये आंकड़े सही नहीं हैं क्योंकि इनमें वे अनगिनत मामले शामिल नहीं है जो दर्ज नहीं हो पाए। इससे भी ज्यादा ये कि करीब
डेढ़ अरब, 1,50,00,00,000 की आबादी वाले देश में जिस तरीके से काम होता है ये हैरानी की बात नहीं, बेहद व्यवहारिक तरीके से देखें तो इतने लोगों के प्रबंधन के लिए पुलिसवालों की तादाद कितनी है, प्रशासनिक अधिकारियों की संख्या क्या है और जो हैं वो किन हालातों में काम कर रहे हैं।
तो डेढ अरब लोगों का प्रबंधन उन्हे खुद ही करना पड़ेगा, कभी भीड़ में शामिल हुई होंगी तो आपको पता ही होगा की भीड़ का प्रबंधन करीब करीब नामुमकिन सा काम है, जब तक सब ठीक-ठाक चल रहा है ठीक है, ज्यों कि एक गड़बड़ हुई भीड़ बेकाबू, और भारत में हम भीड़ ही तो हैं, कहां है एक सभ्य समाज, आप किसी भी कतार में खड़ी हो जाएं, सड़क पर चले, ट्रैफिक देखें, वहां हमारा व्यावहार किसी सभ्य समाज के नागरिक की तरह नहीं होता, हम एकदम भीड़ के तौरतरीके अपनाते हैं। तो भीड़ से क्या उम्मीद करती है आप है।
भीड़ से बस है, ना इससे आगे कुछ ना इसके बाद कुछ, और सबसे बड़ी दिक्कत ये है ना का आपलोग बिना कारण हर चीज का वर्गीकरण कर देते हैं, अरे बहना, अपराध तो अपराध है वो किसी लिंग(स्त्री या पुरुष), जाति, धर्म, रंग के खिलाफ नहीं वो उस व्यवस्था के विरुद्ध होता है जिसे हम समाज कहते हैं। जिसकी वजह से हम आज इतना आगे बढ़ कर भड़ास पर चर्चाएं करने के लायक बन पाए है।
अपराध का वर्गीकरण करके आप उसकी जधन्यता कम करते हैं, उसके एक खास दायरे में बांध देते हैं, जबकि सच्चाई में ऐसा है नहीं। अपराध हमेशा एक तंत्र के खिलाफ एक व्यवस्था के खिलाफ होता है। जब भी इसका क्लासीफिकेशन सुनता पढ़ता हूं तो तकलीफ होती है कि आपने उसकी इंटेसिटी कम कर दी, उसके प्रभाव की व्यापकता घटा दी, इस तरीके से आपने उस अपराध के उपजे खतरे को भी बेहद मामूली या कहें लगभग मिटा ही दिया। क्योंकि एक खास वर्ग के खिलाफ हुए अपराध से बाकी बचे वर्ग को कोई असर नहीं पड़ता। लगता है वो तो महफूज हैं उन्हे क्या और असली समस्या यही है कि उन्हें इससे मतलब होना चाहिए क्योंकि ये अपराध उनके खिलाफ भी है।
धन्यवाद
राय बहादुर राजेश्वर प्रताप सिंह
RAI BAHADURJI sahi kaha aapne ki apradh ka koi warg nahi hota par ye bhi ek kadwa sach hai ki jitni apradh ek stri ke saath hote hai kisi aur ke saath nahi .yahi baat le lijiye ki jab hum sadak par chalte hai to hum to kisi ko kuch nahi kahte par par jaane kitne hi log hume comment kar dete hai .1 , 2 maamle hi aapko eshe milenge jaha ladkiyo ne ladko ko cheda par 100 maamle eshe honge jaha ladko ne cheda . to kya ye apraadh nahi hai stri ke prati to kyu na dikhau samaj ko uska asli roop.
ReplyDeleteकमला जी,
ReplyDeleteएक कड़वी बात, स्त्री को स्त्री होने का कितना फायदा मिलता है ये हर एक प्रोफेशनल जानता है. और ये पत्रकारिता के प्रोफेशन में भी लागु होता है. और ये हमारी महिला मित्रगन अपने महिला होने का भरपूर फायदा उठाना जानती हैं और उठाती भी है इस पर क्या कहेंगी.
जय जय भडास
kamlaji, morche par dati rahia. bhart me hi nahen puri dunia me mahilaon ki halat sachmuch bahut kharab hai. bhai rai bahadur ji sach par aankdon ki chadar dal rahe hai. rajnishji ki yah bat sahi hai ki mahilayen khud ke mahila hone ka fayada uthati hai, lekin unka yah sach bhai aadhoora hai. mahilaon se fayada milne ki lalach me purus hi unko fayeda dete hai. is prakar iska dosh bhai kawal purus man sikta par hi hai. fir mahilayen agar mahila hone ka fayada uthati hai, to is bajah se blatkar ko to jayaj nahin mana ja sakta? ha, doctor sahab ki is baat par hame jaroor dyan dena hoga ki kawal baton se kam nahin chalega.
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