5.5.08

लोग कहते हैं

लोग कहते हैं , जमाना बदल गया है
रहा करते थे जहां, वो आशियाना बदल गया है

तोडकर सीमाएं जग की, प्रेम अब स्‍वछंद हुआ
मूक बनकर देखता हूं, अंदाज पुराना बदल गया है

बर्बाद कर दे तो भला, तूफान किसी का घर-बार
तूफां में उजडे घर को, फिर से बसाना बदल गया है

लौट जा रे तू मुसाफिर, वापस अपनी राहों में
आजकल इस शहर में, रस्‍ता बताना बदल गया है

मेरे सुख में हंसता था, मेरे दुख में रोता था
एहसास मुझे अब होता है, बेदर्द जमाना बदल गया है

भागीरथ

4 comments:

  1. भागीरथ जी ,
    अच्छी ग़ज़ल है पर अमिताभ बच्चन के शब्दों में कहूं तो वजन थोड़ा कम है. ग़लत न समझें और पंडित सुरेश नीरव जी से प्रेरणा लेने की कोशिश करें.
    वरुण राय

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  2. भागीरथ जी अपने भागीरथ प्रयास जारी रखें, सुन्दर है लिखते रहिये.

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  3. सुंदर। लगे रहिए।

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  4. चले चलो चले चलो कोई हमसे जीत न पावे चले चलो......
    भाई भागीरथ एक दिन ई रथ बहुत तेज भागी आप इहै तरा लगे रहैं.....
    आप केर आपन निजता है,मौलिकता है...

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