1.6.08

इंडिया गेट की क्या सच्चाई, गुलामी का प्रतीक है भाई!!!.....उर्फ गोपाल राय को आप जानते हैं?


गोपाल रायः ज़िंदगी की दूसरी पारी शुरू
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जंतर-मंतर पर कुछ घंटे

क्या आपको पता है कि इंडिया गेट किसकी याद में बना है? आप कहेंगे कि शहीदों की याद में। पर आपको जब पता चलता है कि यह प्रथम विश्वयुद्ध में अंग्रेज साम्राज्य की रक्षा के लिए मरने वाले सिपाहियों की याद में बना है जिसकी नींव 10 फरवरी 1921 में डाली गई थी और 1931 में जब भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी दी जा रही थी तो इन शहीदों का हत्यारा लार्ड इरविन ने राष्ट्रीय स्मारक घोषित करके इसे भी हमारे मत्थे पर जड़ दिया था। यह कह कर कि यह है भारत की राष्ट्रीय निशानी, साम्राज्य की वफादारी। इंडिया गेट पर खुदे नामों में एक भी नाम हमारे स्वाधीनता आंदोलन के शहीदों का नहीं है।

उपरोक्त अंश उस परचे का है जो तीसरा स्वाधीनता आंदोलन संघर्ष समिति ने छपवाया है और इसी के तहत आज नई दिल्ली के जंतर-मंतर पर देश भर की आम जनता इकट्ठी हुई थी। इस संघर्ष समिति के राष्ट्रीय संगठक गोपाल राय हैं।

गोपाल राय छात्र जीवन से अपने मित्र हैं। स्टूडेंट पालिटिक्स के दिनों में हम दोनों ही साथ-साथ आइसा के बैनर के साथ जुड़े, इसकी विचारधारा को लेकर आगे बढ़े और जरूरत पड़ी तो लड़े-भिड़े भी। बाद में जब मैं बीएचयू हुआ करता था तो गोपाल जी लखनऊ विवि में हुआ करते थे। आगे घटनाक्रम ने कुछ ऐसा मोड़ लिया कि गोपाल जी के बारे में एक दिन खबर मिली कि उन पर लखनऊ के कुछ गुंडों इस कदर हमला किया है कि वे जीवन और मौत से जूझ रहे हैं। एक गोली जो उनकी गर्दन में पीछे की तरफ लगी थी, उसी में रह गई और उनके नर्वस सिस्टम ने काम करना बंद कर दिया। इस मुश्किल दिनों में गोपाल के साथ बस कुछ लोग खड़े हुए। बाकी सभी ने न जाने किन किन विचारों, व्यवहारों, तर्कों के नाम पर उनसे किनारा कर लिया। जीवन मौत से जूझ रहे गोपाल को बस इतना होश था कि वो जिंदा हैं, बाकी नर्वस सिस्टम काम न करने से उनका पूरा शरीर पैरालाइज्ड हो गया था।


कुछ नए-पुराने साथियों और घरवालों ने ने मिलकर गोपाल जी को हर उस जगह दिखवाया जहां उनके ठीक होने की उम्मीद थी पर गोपाल जी सदा बिस्तर पर ही पड़े रहे। बाद में किसी तरह चंदा करके वे केरल गए जहां आयुर्वेदिक लेपन तरीके से उनके शरीर की लगातार मालिश की गई और इलाज किया गया। इससे गोपाल जी के बेजान शरीर में हरकत आ गई और शरीर के आधे हिस्से धीरे धीरे ठीक होने लगे। अब वो लगभग 80 फीसदी सही हैं पर उन दिनों में भी जब उनका शरीर चलने फिरने से इनकार करता था, गोपाल जी से जब फोन पर बात हुआ करती थी तो इस व्यक्ति की आवाज और इच्छाशक्ति उतनी ही बुलंद हुआ करती थी जितनी इससे पहले के अच्छे दिनों में।


मैं लोगों से अक्सर कहता हूं कि गोपाल राय की दशा कुछ उसी तरह की थी जो तेरे नाम फिल्म में सलमान खान की हुई थी। ये बात और है कि सलमान इस फिल्म में किसी लड़की से इकतरफा प्रेम के नाम पर उस हालत को पहुंचे थे और गोपाल राय देश व समाज की बेहतरी के लिए गुंडों से लड़ने-भिड़ने के दौरान। पर दोनों में एक चीज कामन है, इनके शरीर के जख्म। फर्क बस इतना है कि एक के जख्म सेलुलाइड परदे के लिए फिल्माए गए थे और दूसरे का जख्म रीयल लाइफ के जख्म हैं।

कभी आप भी दिल्ली आना तो गोपाल राय से जरूर मिलना। उनसे उनके जीवन की कहानी जरूर सुनना। उनसे उनके अनुभवों को जरूर साझा करना। आप को हर हाल में जीवन की हर स्थिति से लड़ने और आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलेगी। हताशा, अवसाद, अकेलापन, अजनबियत.....ये शब्द क्या हैं, गोपाल जी की डिक्शनरी में तो ये हैं ही नहीं। ऐसे सच्चे लोगों के साथ उठ-बैठकर हिम्मत और जीवटता मिलती है, बढ़े चलो का दर्शन मिलता है।

गोपाल जी से एक बार मैंने पूछा--ये जो दूसरा वाला हाथ है, ये कब तक काम करेगा, इसका भी इलाज करवाइए।

उनका जवाब था--यशवंत भाई, जाने दीजिए। मुझे मेरे शरीर की याद न दिलाइए। जब मैं शरीर के अंदर की दुनिया के बारे में सोचने लगता हूं तो इसके आगे कुछ नहीं सोच पाता और उसी गहराई में ही तड़पने-भिड़ने लगता हूं। जब बाहर की दुनिया के दुख-दर्द के बारे में सोचने लगता हूं तो अपने शरीर के दर्द और दिक्कतों का अहसास ही नहीं होता।

उनका जवाब सुनकर मैं चुप और स्तब्ध था। कितना निर्दोष और सहज व्यक्तित्व है अब भी। हम लोग तो दुनियादारी और नौकरी के चक्कर में न घर के रहे न घाट के।

इन्हीं गोपाल राय ने अब तीसरा स्वाधीनता आंदोलन छेड़ा हुआ है। इस आंदोलन में शहीद भगत सिंह के भाई से लेकर किसान यूनियन तक के नेता शामिल है। कुल मिलाकर यह एक साझा राष्ट्रीय मंच है जो गांवों की जनता को आर्थिक, वैचारिक, सामाजिक आजादी प्रदान करने के लिए कृतसंकल्प है। इसी कड़ी में इंडिया गेट को आधार बनाकर जंग शुरू की गई है, जिसके मुताबिक देश के गांव अब भी गुलाम हैं। अब भी आम जन जीने के लिए जद्दोजहद कर रहा है और सरकारें गुलामी की प्रतीक इंडिया गेट को सलामी देकर अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती हैं।

गोपाल भाई के न्योते पर आज मैं और मनीष राज जंतर मंतर पहुंचे तो वहां गांव के लोगों की अपार भीड़ और मीडिया वालों के कैमरों की भीड़ दिखी। लोग तख्तियां लिए राष्ट्रपति भवन जाने की तैयारी कर रहे थे। महिलाएं, नौजवान, बुजुर्ग सब एक ही नारा लगा रहे थे....इंडिया गेट की क्या सच्चाई, गुलामी की पहचान है भाई। भीड़ में हम भी थे। जोश में न रहा गया, हम लोग भी नारे के जयघोष में अपनी आवाज देने लगे....इंडिया गेट की क्या सच्चाई, गुलामी की पहचान है भाई।

जंतर मंतर भी अजब इलाका है। कभी दिल्ली आएं तो यहां जरूर घूमें। जंतर मंतर तो देखें ही लेकिन यहां धरना देने वाले तरह तरह के लोगों पर भी नजर डालिए। कोई 11 साल से भूख हड़ताल पर बैठा है तो कोई तिब्बत की आजादी के लिए चीन के खिलाफ विरोध दर्शाने हेतु मुंह पर पट्टी बांधे झाड़ू लगा रहा है। कोई भोपाल गैस पीड़ितों के साथ हुए अन्याय की आवाज मुखर कर रहा है तो कोई कांशीराम को न्याय दिलाने के लिए बहन जी के खिलाफ आवाज उठा रहा है। इसी जंतर मंतर पर तीसरा स्वाधीनता आंदोलन संघर्ष समिति द्वारा आयोजित जन संसद भी चल रही थी। ढेर सारी पार्टियों के नेता तीसरा स्वाधीनता आंदोलन के लिए एक मंच पर इकट्ठा थे।

वहां से चलने लगा तो आंदोलन का लिट्रेचर और पर्चे उठा लाया। अभी जब उनको पढ़ रहा था तो लगा कि गोपाल भाई के इस मिशन के साथ भड़ास क्यों नहीं हो सकता। अगर कोई व्यक्ति एक सीधी सी बात पूछ रहा है कि भई, हमारे देश के लाखों वीरों ने आजादी दिलाने के लिए बलिदान दिए, उनकी याद में शहीद स्मारक बनवाने की बजाय अंग्रेजों के साम्राज्य के लिए लड़े सिपाहियों की याद में बने इंडिया गेट पर सलामी क्यों द रहे हो? इस गुलामी के प्रतीक को क्यों नहीं खत्म करते। क्यों नहीं एक राष्ट्रीय शहीद स्मारक बनाते जहां राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से लेकर आम जनता जाकर अपने देश के शहीदों को श्रद्धांजलि दे सके।

आजादी के इतने दिनों बाद भी अगर अपने शहीदों के लिए हम एक राष्ट्रीय स्मारक नहीं बनवा पाए तो हमें लानत है।

तीसरा स्वाधीनता आंदोलन संघर्ष समिति ने जो पर्चे छपवाए हैं, उनके कुछ और अंश इस प्रकार हैं....

याद रहे, 26 जनवरी 1930 को भारत की जनता ने संपूर्ण आजादी हर तरीके से लेने का संकल्प रावी के किनारे पं. नेहरू व महात्मा गांधी के नेतृत्व में लिया था। 1947 के बाद उस संकल्प को भुला कर भारतीय सरकारें आज भी उस साम्राज्यवादी गुलामी के प्रतीक इंडिया गेट को सलाम करते हैं। हमें याद रहे कि पहला विश्व युद्ध अंग्रेजों ने अपनी प्रभुता के लिए और अफगानिस्तान को गुलामी में जकड़ने के लिए लड़ा था। कुछ महान इतिहासकार तो यह भी कहते हैं कि ...यह जंग तो घरेलू जंग थी इंग्लैंड के बादशाह, फ्रांस के बादशाह और जर्मन बादशाह के बीच। ये तीनों नजदीकी रिश्तेदार थे।


हमें यह भी याद रखना चाहिए कि इस जंग में एक तरफ तो भारतीय सिपाहियों को मरवाया गया था और दूसरी तरफ भारतवासियों को ब्रिगेडियर जनरल डायर ने तोहफा दिया था 1919 में जलियांवाला बाग का कत्लेआम करवाकर और पंजाब के शहरों व गुजरात में हवाई जहाज से बम गिराकर। हजारों भारतीयों की लाशों को बिखेरकर उनकी देशभक्ति की भावनाओं को दबाने के लिए अंग्रेजों ने इंडिया गेट के रूप में साम्राज्य के वफादारों की निशानी हमारे सीने पर खड़ी की थी।


दिल्ली पर राज करने वाली सरकारों ने सन 47 के बाद भारतीय सिपाहियों की कुर्बानी का भी मखौल उड़ाया, जब 1971 में भारतीय सिपाहियों की याद में जवान ज्योति को इसी इंडिया गेट की छत्र-छाया में बनाया। क्या आजाद भारत में उनके लिए कोई राष्ट्रीय यादगार बनाने के लिए भी जगह नहीं थी या फंड नहीं था?

अगर आप गोपाल राय को उनके मिशन के लिए साधुवाद कहना चाहें और उनकी जंग में साथ देना चाहें तो उन्हें आप 09818944908 पर फोन कर सकते हैं।

इतना जरूर कहिएगा.... गोपाल भाई, आप अकेले नहीं हो। आप की भावनाओं को दबे छुपे जीने वाले ढेर सारे लोग आपके साथ हैं और वक्त ने साथ दिया तो हम सब आपके साथ सशरीर होंगे।

पक्का मानिए, आपका ये कहना उस आदमी के जीवन संकल्प को और भी ज्यादा ऊर्जा प्रदान करेगा।

फिलहाल तो इतना ही

जय भड़ास

यशवंत

5 comments:

  1. दादा,एक बार फिर लग रहा है कि पुराना यशवंत आपके भीतर अंगडाई ले रहा है, शुभ शकुन है;मैंने अभी-अभी गोपाल भाई से बात करी और लगे हाथ उन्हें महाराष्ट्र आने का न्योता भी दे डाला..... हम सब उनके साथ हैं उनका उद्देश्य भड़ास के दर्शन से अलग तो नहीं है बस वे घोषित भड़ासी नहीं हैं...

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  2. अब लगने लगा है कि हमारे देश में जिन्दा लोगों की भी कुछ संख्या है वरना मैं तो मान रही थी कि सौ करोड़ से ज्यादा लोगों के इस देश में कुछ लोग ही जिन्दा इन्सान हैं बाकी सब तो बस इन्सान जैसे दिखने वाले मुर्दे हैं जो बकवास मुद्दों की जुगाली करके अपना अस्तित्त्व बनाए रहते हैं, गोपाल भाई मैं आपके साथ हूं जैसा कि मेरे भाई डा.रूपेश ने कहा न कि जब आप मुंबई आइये तो मैं भी आपके दर्शन करना और सहकार्य करना चाहूंगी.....

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  3. दादा,
    गोपाल भाई के साथ पूरा भडास परिवार है. उनकी लडाई में अब हम साब भादासी बराबर के साथी हैं.
    जय जय भडास

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  4. केवल इंडिया गेट ही क्यो कुछ और भी निसानी है गुलामी कीः
    1. हमारा राष्ट्र गीत जन गण मन जो कि जार्ज पंचम के लिए 1912 में दिल्ली दरबार के समय गाया गया था।
    2. गैर कांग्रेसी स्वतंत्रता आन्दोलनकारियों के कितने नामों को आज आम भारती जानता है।
    3. पूर्ण स्वराज की मांग कांग्रेस से नहीं सबसे पहले भगत सिंह की हिन्दुस्तान सोसिलिस्टक पार्टी ने उठाई थी।
    क्या इन मुद्दो पर भी कभी आम चर्चा होगी।

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  5. gopalji,
    main bhi apne bal-bachon ke saath apke is andolan main shamil ho gaya hoon. jald hi apse mulakat bhi karna chahoonga.

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