14.5.08

सुबाना का तो मजहब वो नहीं है.


पाणिनी आनंद बी बी सी

संवाददाता, जयपुर से

मुंबई से नाना-नानी के घर आई एक छोटी सी बच्ची सुबाना. साथ में थी माँ और दो मौसियां. स्कूल बंद था सो गर्मी की छुट्टियों के लिए नानी के घर और जयपुर शहर से अच्छा क्या हो सकता था.
पर मंगलवार की शाम आतंक का जो तांडव जयपुर में हुआ उसके बाद सुबाना की दुनिया बदल गई. माँ का आंचल छिन गया, मौसियां सदा के लिए सो गईं.
सुबाना अपनी मां और दोनों मौसियों के साथ नेशनल हैंडलूम से ख़रीदारी करके लौट रही थी. उसे जल्दी थी घर जाने की और नाना-नानी, भाई को ख़रीदारी का सामान दिखाने की.
पर रिक्शा लेते वक्त एक भीषण विस्फोट हुआ जिसमें सुबाना की माँ और दोनों मौसियों की मौत हो गई.
सुबाना बुरी तरह से घायल है. नाना-नानी की हालत अपनी तीन बेटियाँ खोकर ख़राब है और उन्हें अस्पताल में इलाज कराना पड़ रहा है.
कुछेक रिश्तेदार सुबाना के पास पहुंचे हैं। अब्बा मुंबई से रवाना हो चुके हैं पर सुबाना सदमे में है. कुछ नहीं बोल रही. उसे नहीं पता की अम्मी कहाँ हैं, किस हाल में हैं.

सुबाना की नम और सवाल करती आखों में एक ऐसा मंज़र दर्ज हो चुका है जिसके बारे में सोचना बड़े-बड़ों के लिए मुश्किल है।
सुबाना इस ख़रीदारी के लिए इसलिए गई थी क्योंकि उसे चंद दिनों में वापस अपने शहर मुंबई जाना था और वहाँ जाने से पहले अपने दोस्तों को दिखाने के लिए उसे बहुत कुछ ख़ास ख़रीदना था.
पर अब अपनी जिस्म की चोटों से उबरकर जब सुबाना वापस लौटेगी तो उसके पास बताने के लिए शब्द कम और आंसू ज़्यादा होंगे.
अब सुबाना के लिए जयपुर बदल चुका है. नानी के पास अब शायद इस दर्द भरी सच्चाई से उसका ध्यान बंटाने के लिए कोई परियों, जादुगरों वाली कहानी न हो.
पहली क्लास में पढ़नेवाली सुबाना के लिए शायद गर्मी की छुट्टियाँ और जयपुर शहर अब दोनों ही डरावने हो चुके हैं.
आतंकवाद को सियासतदान चाहे जो भी नाम दें या जिस भी मजहब से जोड़ें, पर सुबाना का तो मजहब वो नहीं
है.

sabhar - B.B.C

2 comments:

  1. हरे दादा,
    निरुत्तर हूँ. सच में समझ में नहीं आ रहा की क्या करूं, क्या कहूं,
    बेबस लाचार हूँ

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  2. हरे दादा,
    इन मौत के सौदागरों को ये कौन समझायेगा ? इनका कोई मजहब नहीं कोई ईमान नहीं . गुमराह होती नौजवान पीढी इनके बहकावे में क्यों आ रही है ये समझना भी मुश्किल है. ईश्वर इन्हें सदबुद्धि दे.
    वरुण राय

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