8.5.08

ब्लागवाणी का सर्वनाश हो...

मैंने देखा कि कई भाई लोगों ने डा.रूपेश का पुराना पोस्ट "ब्लागवाणी का सर्वनाश हो" पढ़ना चाहा पर न तो डाक्टर भाई के पास वक्त है और न ही यशवंत दादा के पास तो मैं ही इस नेक काम को करे दे रही हूं ताकि हम सब एक बार फिर से डाक्टर भाई के अंदर की आग की झलक देख सकें...

आज कुछ देर पहले यशवंत दादा ने फोन करके मुबारकबाद दिया कि डा.रूपेश अब आप चले सही रास्ते पर पहले तो बात ही समझ न आयी । आप सब के लिये खुशखबरी है या बुरी खबर ये तो आप लोग जाने पर हमें तो लग रहा है कि जो होता है मेरे ही भले के लिये होता है । अरे भाई लोगों बात ये है कि यशवंत दादा ने ब्लागवाणी (अरुण अरोरा)से बात करी कि आप लोग कुछ भड़ासियों के ब्लाग्स को क्यों नहीं दर्शा रहे हैं तो सीधा आरोप कि बात अश्लीलता की है । आप लोगों की तो इतना सुन कर ही उदास हो गयी ,अरे मेरे प्यारों ये तो जान लीजिये कि ब्लागवाणी में बैठे महानुभावों को तो मेरा ब्लाग आयुषवेद(http://aayushved.blogspot.com) भी अश्लील लगता है । दिल थाम कर बैठिए क्योंकि अब मैं अपना लैंग्वेज साफ़्टवेयर चेन्ज कर रहा हूं वरना ब्लागवाणी के लोग जिस भाषा को समझते हैं वह न बोली तो मेरा बोलना बेकार हो जाएगा । इन लोगों को जब भगवान बना रहा था तो लगता है कि उसने बाकी सारा मसाला खत्म होने पर सिर्फ़ एक ही मैटेरियल लिया और इन्हें बना डाला और वह है "चूतियम सल्फ़ेट" । इन चूतियम सल्फ़ेट(इनकी हड्डियां कैल्शियम से बनी नहीं होती हैं) से निर्मित वणिक वृत्ति के लोगों को लगता है कि जिसका ये नाम नहीं लेंगे उसे कौन जानेगा । अरे ,इनकी सोच का क्या कहना ये साले हगते समय भी सोचते होंगे कि अगर ज्यादा हग दिया तो ज्यादा भोजन करना पड़ेगा इस लिये साले जिन्दगी भर अपनी कृपण प्रवृत्ति के कारण कब्ज से परेशान रहते हैं क्योंकि सोच बदलेगी नहीं और कब्ज जाएगी नहीं । जैसे हर व्यक्ति मानता है कि ईश्वर ने उसे किसी खास उद्देश्य से पैदा किया है तो ये सोचते हैं कि इन्हें भी एक उद्देश्य देकर पैदा किया है कि जाओ और जिन्दगी भर बेंचो ,बेंचो और बेंचते ही रहो । ये साले वही लोग हैं जो युद्ध के समय हथियार,कफ़न और मैय्यत का सामान बेंचते हैं और शान्ति के समय दाल-चावल लेकर बैठ जाते हैं । इन सालों को लगता है कि जब मरेंगे तो सारा पैसे का बैंक ड्राफ़्ट बनवा कर पिछाड़ी के छेद के रास्ते अंदर घुसा लेंगे और साथ ले जाएंगे । इन लोगों के लिये चूतिया शब्द मुझे छोटा जान पड़ता है इन्हें एक मेडिकल एडवाइजरी ब्लाग अश्लील जान पड़्ता है क्योंकि उसमें मां-बहनों की योनि में होने वाले दर्द यानि मक्कल शूल का उल्लेख है । अब ये तो नहीं कह सकता कि इस जमात के लोगों की मां-बहनें इस बीमारी से पीड़ित न होती होंगी पर ये जरूर कह सकता हूं कि ये नीच और पैसे के लोभी उस दर्द और टीस को समझ ही नही सकते क्योंकि उसके लिये चाहिये दर्द समझने वाला दिल जो इन चूतियेस्ट(ये चूतिया की सुपरलेटिव डिग्री है जो सिर्फ़ इन्हीं के लिये इस्तेमाल करी जा सकती है) लोगों के पास होता ही नहीं है । इनकी अश्लीलता की परिभाषा मे योनि और लिंग जैसे शब्द आते हैं तो मेरी भड़ासी डिक्शनरी देख कर तो इनका शेष जीवन टायलेट में ही बीतेगा । अब एक बात मैं जो कहने जा रहा हूं वह ये कि मुझे ऐसा लग रहा है कि एग्रीगेटर्स चलाने वालों को लगता है कि अगर ये किसी नवोदित ब्लागर को बेदखल कर देंगे तो उसका अस्तित्त्व समाप्त हो जाएगा । आप सब भाई-बहनों की राय चाहूंगा कि क्या हम जैसे तिरस्कार ,बहिष्कार करे गये इनकी नजरॊं में गलीज़ लोगों का अपना एग्रीगेटर नहीं हो सकता जिसकी तकनीक और आदर्श ब्लागवाणी या इन जैसे एग्रीगेटर चलाने वालों से कही अधिक उन्न्त और प्रेमपूर्ण हो जो अभी चलना सीखे बच्चों की गांड पर लात मार कर गिरा देने में यकीन न रखता हो बल्कि उसे उंगली पकड़ा कर चलना और दौड़ना सिखाए ,मार्गदर्शन दे ;भड़ास का एग्रीगेटर ऐसा हो जो वहां से शुरू हो जहां इन मक्कार लोगों की सोच ही न जाती हो । मैं यशवंत दादा(जो ब्लागिया मसान के चंड भैरव हैं) का आवाहन करता हूं " ॐ ब्लाग मरघट चंडभैरव भड़ासाय यशवंताय गुणवंताय कीर्तिवंताय ब्लागवाणी कीलय-कीलय ,मर्दय-मर्दय ,स्तंभय-स्तंभय ,उच्चट-उच्चट , मोचय-मोचय सकल समूल नाशय-नाशय हुं हुं फ़ट फ़ट क्रीं क्रीं स्वाहा.....(इस स्वरचित अघोर मंत्र का एक हजार जप कर के दशांश होम और अपने रक्त की आहुति दे रहा हूं) कि अगर तनिक सा भी पौरुष शेष है भड़ासियों में तो ब्लागवाणी और इन जैसी हलकट सोच रखने वाले लोगों के लिये इनके युग की समाप्ति की हुंकार भर कर इनकी गांड में ऐसा चीरा मारें कि देखने वालों को समझ न आए कि मुंह कहां खत्म हो रहा है और गांड कहां शुरू हो रही है। इन चूतियेस्ट लोगों को लगता है कि भड़ासी इनके पास जाकर गिड़गिड़ाएं ,इनके पैर चाटें और कहें कि प्रभु हमें भी दिखा दो वरना हम मर जाएंगे । अरे इन सालों को दिखा दो कि ब्लाग की दुनिया में जन्म हम इन गांडुओं के भरोसे पर नहीं बल्कि अपनी दम पर लिये हैं । हम अपना एग्रीगेटर बनाएंगे और इस इरादे के साथ आज इस बात के क्रियान्वयन की शुरूआत हो गयी है । हमारे साथ हमारे बुलंद इरादे हैं तो जय हमारी ही है हमारे साथ हमारी सोच में बसा भावुक सा परमात्मा है और इनके साथ है इनकी दुर्बुद्धि । अरे स्स्स्स्साले हमे क्यों देखकर जलते हैं हम अपने दिमाग का दही मथ रहे हैं तुम्हारी गांड में भंवर क्यों उठ रहे हैं ,साला तेली का तेल जल रहा है और गांड जल रही है मशालची की........... एक बार फिर दिल से पूरी ताकत और भाव पूर्वक मंत्र का जाप करिए और काम पर लग जाइए......" ॐ ब्लाग मरघट चंडभैरव भड़ासाय यशवंताय गुणवंताय कीर्तिवंताय ब्लागवाणी कीलय-कीलय ,मर्दय-मर्दय ,स्तंभय-स्तंभय ,उच्चट-उच्चट , मोचय-मोचय सकल समूल नाशय-नाशय हुं हुं फ़ट फ़ट क्रीं क्रीं स्वाहा.....जय जय भड़ास

4 comments:

  1. धन्यवाद मनीषा दीदी,
    डाक्टर साहेब का भड़ास पढ़ कर दिल गार्डन-गार्डन हो गया. ऐसे लोगों का सर्वनाश अवश्यम्भावी है. पर अग्रिगेटर वाली सोच लगता है बीच में कहीं अटक गयी . इस पर जल्द से जल्द काम शुरू हों चाहिए. और हाँ , डाक्टर साहेब का भड़ासी शब्दकोष भी देखने की इच्छा है पर व्यक्तिगत रूप से . सार्वजनिक होने पर बहुत लोगों को मूर्छा आ सकती है , ऐसी मेरी आशंका है.
    वरुण राय

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  2. मनीषा जी धन्यवाद.
    इस आवाहन के समय से ही ये "अग्र गटर" का विनाश काल सुरु हो चूका होगा, अब तो ससुरे अपने अंत की और बढते हुए तिलमिलाते से प्रतीत हो रहे हैं. क्योँ की हमारा भडास इन ससुरों पे बीस इक्कीस नहीं सौ के ऊपर चला गया है.
    जय जय भडास.

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  3. वरूण भाई,मैंने मनीषा दीदी को वो शब्दकोष व्यक्तिगत प्रयोग के लिये दिया था पर धन्य हों ये जगदम्बा इन्होंने उसे भड़ास पर लिख मारा एक पोस्ट में;यशवंत दादा ने मुझे फोन पर कहा था कि वे इसे भड़ास पर सबसे ऊपर टांग देंगे ताकि लोग उसे समझें और गंदी(?)भाषा का प्रयोग न करें लेकिन दुर्भाग्यवश उस समय कुछ ऐसा विवाद चल निकला श्लील-अश्लील का कि उसे एडिट करना पड़ा। आप दादा से उसे प्राप्त कर सकते हैं अगर उनके पास हो तो वरना मैं भेज दूंगा क्योंकि ये नाचीज ही था उस दस बारह शब्दों के कोश का लेखक था....

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  4. बहुत खूब। मजा आ गया।

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