क्या भरोसा जीवन का, एक बुलबुला है,
न जाने कब टूट जाये कब तक सलामत है।
यह पंक्तियां कभी किसी साधु महराज के प्रवचन में सुनी थी पर समझ नहीं आयीं. पर शुक्रवार 06.06.2008 की एक घटना ने शायद इसका अर्थ स्वंय ही समझा दिया। मेरे कार्यालय के एक अधिकारी महोदय जो कि कोलकाता से संबधित थे तथा यहाँ कानपुर तैनाथ थे, अपने पुत्र से मिलने कोलकाता जा रहे थे कि कानपुर सेन्ट्रल स्टेशन पर ह्रदयगति रुक जाने से मृत्यु हो गयी। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि एक दम बिल्कुल ठीकठाक लग रहे थे परन्तु एक दम से गिरे और जब तक कुछ समझ पाये तबतक मृत्यु हो चुकी थी।
क्या जिंदगी इतनी अनिश्चित है?
अजीत भाई,
ReplyDeleteये घटना चक्र ही हमे जीवन का दर्शन दे जाती है। हम जिस से जान बुझकर अनजान बन ने कि कोशिश करते हैं वो हमर्रे जीवन का अन्तिम सच होता है।