24.6.08

तो गूंगे भी कोरस में गाने लगेंगे

खुले में कहीं वो नहाने लगेंगे

बदन पर जो साबुन लगाने लगेंगे

कसम से खुदा की मैं कहता हूं यारो

तो गूंगे भी कोरस में गाने लगेंगे

००००

जो बूढ़े भी नजरें लड़ाने लगेंगे

वो मंजर भी कितने सुहाने लगेंगे

किया इश्क का न बुढ़ापे में लफड़ा

तो बच्चों को डैडी जनाने लगेंगे।

-पं. सुरेश नीरव

मो.-९८१०२४३९६६

1 comment:

  1. क्या धांसू धांसू लिखाई हो रएली है बाप लोग.... कविताओं के टैडपोल भड़ास के तालाब के फ़ुदक रएले ऐं....

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