यशवंत जी,
नमस्कार भड़ास का नियमित पाठक हूँ. पढ़कर मन को बहुत तसल्ली मिलती है. कुछ दिन पहले मन मे विचार आया कि चलो एक ब्लॉग हम भी बनाते है सो अपने ज्ञान के आधार पे बनाने कि कोशिश की है. आपके अवलोकनार्थ प्रेषित कर रहा हूँ अगर आपको उचित लगे तो भड़ास पर एक छोटा सा कोना हमारे ब्लॉग को भी प्रदान कीजिएगा.
भड़ास के बारे मे ज्यादा कुछ तो नही कह सकता फिर भी इतना यकीन है कि अपने भड़ास को जन्म देकर उन लोगो का बहुत भला किया है जो न तो अपने मन कि व्यथा न तो घर पर और न ही ऑफिस मे कह पाते है भड़ास एक ऐसा प्लेटफार्म है जहाँ पर लोग अपने मन की व्यथा रूपी रेलगाड़ी को मन माफिक गति से दौड़ सकते है. इतनी बात लिखने क बाद भी अप सोच रहे होंगे कि कौन है ये, सो हमारा नाम सुमित है। कानपुर में मीडिया में हूँ। आपके कानपुर प्रवास के समय आपसे कई बार भेंट भी हुई.
एक बार फिर आपको भड़ास के लिए शुभकामनाये.
अपने ब्लॉग का लिंक प्रेषित है.
http://sumit-eventmanagement.blogspot.com
आपका कनिष्ठ
सुमित
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सुमित के ब्लाग पर पड़ी इकलौती पोस्ट ये है..
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कारपोरेट चालीसा
जब नया नया कोई आता है तो मन ही मन मुस्काता है
कंपनी ये बड़ी भारी है लोग कहते है सरकारी है
ऐश यहाँ पर खुल्ली है, काम बहुत मामूली है
पर जब सच से टकराता है, सर उसका चकराता है जनता
यहाँ निराली है सारे रंगों वाली है
बारह बजे कुछ आते है कुछ ६ बजे ही जाते है
कुछ की लाइफ ऑफिस मे ही कटने वाली है
क्यूंकि न घर है न घर वाली है
यहाँ पांच पॉइंट पर रेटिंग है
कुछ असली है कुछ सेटिंग है
शो ऑफ़ का यहां पर बहुत बड़ा है खेल
थोड़ा सा काम करो और सबको भेजो मेल
प्रोजेक्ट से रोजी रोटी है पर गगरी थोडी छोटी है
प्रोजेक्ट लेने जाते है कुछ मिलते है कुछ रह जाते है
केवल क्लाइंट है जो हमको नचाता है,
उसको खुश करने मे अपने बाप का क्या जाता है.
क्यूंकि केवल क्लाइंट है जो हमारी रोज़ी रोटी चलाता है
पैसा तो मोह माया है, कंही धूप कंही छाया है
काम मी मर्जी दिल की है, तनखा तो चूहे के बिल सी है
कुछ मृग मरीचिका मे फँस जाते हैं, कुछ निकल मोक्ष को पाते हैं
अपने पे आंखे मूँद के दूसरे की गलती देख,
दूसरे की भैस पे जोर से लाठी टेक
दूसरे की गलतियाँ बॉस को बता,
शाबासी के साथ मे इनाम भी शायद पा
कैसे भी उल्लू सीधा कर वीसा लेकर भाग
कब तक सोया रहेगा अब तू मूर्ख जाग
लगा हुआ है यह संपर्को का जाला
सफल वही है जिसने कोई लिंक निकाला
काम का नाटक कर मचा नही कुछ शोर,
तेरे अंधियारे गाव में कभी तो होगी भोर।
माला ये पुरी हुई मनका एक सौ आठ,
मोक्ष को पाए वही नित्य करे जो पाठ।
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-सहयोगी पंकज राजपूत की रचना
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(भाई सुमित, आपने याद दिलाया तो बिलकुल याद आ गया। आपके ब्लाग की इकलौती रचना को भड़ास पर डाल दिया है। शानदार है कारपोरेट चालीसा। इसमें आपने सारे सचों को व्यंग्यात्मक तरीके से कह दिया है। आप अपने ब्लाग पर रेगुलर लिखते रहें। कभी दिल्ली आना हो तो फोनियाइयेगा। .....यशवंत )
दद्दा,
ReplyDeleteसुमित भाई का स्वागत है, भडास पर भी ओर ब्लोग की दुनियां में भी। संग ही इस बेहतरीन कारपोरेट चालिसा के लिये ढेरक बधाई।
जय जय भडास