सुरा को लेकर मैंने जो सुरा के संबंध में टिप्पणी की थी , मेरी उस टिप्पणी पर पी.सी. रामपुरिया, बहन मनीषा, मोहतरमा मुनव्वर सुल्ताना,डॉक्टर रुपेश श्रीवास्तव और भव्य भड़सी यशवंतजी की बेहद मज़ेदार और दिलचस्प टिप्पणियां मेरे खाते में दर्ज हुई हैं । पढ़कर खुमारी और बढ़ गई। हां एक बात समझ में नहीं आई कि जो डाक्टर मरीज को नियमित दवा-दारू लेने की सलाह देते हैं वही डाक्टर सुरा का विरोध कैसे कर सकते हैं? आसव और अरिष्ट भी सुरा के ही रूप हैं। और-तो-और दही भी दूध के फरमेंटेशन से ही बनता है। दूध के (दहःधातु यानी दहन ) जीवाणु दहन से दही का बनना भी वही है, जो मंड या शर्करा के फरमेंटेशन से सुरा का बनना है। इसी दही को अमृत तुल्य मानकर पंचामृत के रूप में भक्तगण पूजा के बाद ग्रहण करते हैं। हां दोष सिर्फ मात्रा का होता है,मजमून का नहीं।
सुरूर शराब का मिकतार पर होता नहीं मौकूफ
शराब कम है तो साकी नजर मिला के पिला
शिकन जबीं पर न डाल शराब देते हुए
ये मुस्कुराती चीज़ है मुस्कुरा के पिला।
और फिर मेरे तजुर्बे के मुताबिक
लोगों ने बहुत गालियां दी हैं शराब को
इसने खिला-खिला दिया झरते गुलाब को
दो दिन जिये या चार चलो पी के तो जिए
वैसे भी ये जगह हमें कब पसंद है
रिंदों में नाम लिख लिया अच्छा ही किया
माथे से लगा बढके तू इस खिताब को
लोगों ने बहुत गालियां दी हैं शराब को।
खैर..इस बहाने एक अच्छी गल्प-गोष्ठी हो गई और इस महफिल में जो भी शामिल हुए सभी का शुक्रीया।
पं. सुरेश नीरव
मो.-९८१०२४३९६६
प्रस्तुतीःमृगेन्द्र मकबूल
"रिंदों में नाम लिख लिया अच्छा ही किया"
ReplyDeleteपंडीत जी , खूब पिलाई आपने .. मजा आ गया ! जाम खाली मत होने देना !
माँ सरस्वती का वरद हस्त है आप पर !
शुभकामनाएँ |