22.6.08
मत बढ़ाओ मक्खन के दाम
भड़ास की जय हो,भाई भड़ासियों की जय हो,भइया यशवंत तुम्हारी जय हो.नाचीज इस लायक नहीं जितना तुमने उसकी प्रशंसा में लिख मारा है.जितना सम्मान उसको दे मारा है.महंगाई से वैसे ही देश त्रस्त है तुम इतना महंगा अमूल्य का मक्खन मेरे जैसे बदकार को लगा कर मक्खन के दाम आसमान पहुंचाने पर क्यों तुले हो.आखिर अट्टालिकाओं में रहने वाली गतयौवनाएं को अपने श्वानों की डबलरोटी पर भी तो मक्खन लगाना है.हालांकि उन्हें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि मक्खन महंगा है या सस्ता.उन्हें जहां-जहां मक्खन लगाना है लगाएंगी ही.और आप बंधु यह याद रखिये कि सम्मान से विप्र प्रसन्न होते हैं,२४ कैरेटिए पंडित नहीं.हमें सम्मान नहीं उत्कृष्ट खान-पान चाहिए.जो तौहीन करने के चलते तुम पर ड्यू है.और अंत में उन सभी भड़ासी भाइयों को पुनःनमन करता हूं,उनके प्रति आभार व्यक्त करता हूं,जिन्होनें मेरी लंतरानियों की सराहना कर सौ फीसदी उल्लूपने वाला काम किया है. जय भड़ास
पंडित जी महाराज,आप इन बातों को लंतरानिया कह कर क्या सिद्ध कर रहे हैं अब ये आत्मालाप नही रह गया अब तो ये भड़ास की संपत्ति हो गया है एक धरोहर के रूप में......
ReplyDeleteजय जय भड़ास
हे विप्र शिरोमणी, दंडवत प्रणाम !
ReplyDeleteआपके कल के मुर्ग भक्शन सलाह के बाद एक मुर्ग सम्मेलन हुवा है । और मुर्गों ने आपके खिलाफ़ उनकी सामुहिक हत्या के लिये उकसाने
का प्रस्ताव पारित किया है । सो आप जानो । आंदोलन भी खडा हो सकता है ।
हे विप्र कुलदीपक , आज आपने सीधी सीधी बात नही की । यशवंत भाई ने तो सहज रूपेण आपका यशो गान किया था । शायद ये उनका सरल स्वभाव होगा । पर आपने, जवाब मे गतयोवनाओं के हाथों
मक्खन को महंगा बताकर खाने से मना किया, उसका क्या मतलब है ?
हे २४ कैरिटिए ब्रह्म शिरोमनी , आप यहां सिर्फ़ (आ) लगाने मे टाइपिंग की भूल कर गये दिखते हैं ! अगर गत के पिछे "आ" लग
गया होता तो आप सारा मक्खन डकार गये होते । क्योंकि मुर्ग को उदरस्थ करने के लिये भी मक्खन चाहिये ।
हे परम श्रेश्ठ , आपकी हर सलाह निराली है ! मैं सब भडासियों से निवेदन करता हूं कि इस साल के " कालीदास सम्मान" के लिये आपका नाम आगे बढाया जाये और जोरदार लाबिंग की जाये ।
आपको पुन: लेटकर प्रणाम