20.6.08

कुबुलनामा

भाई हृदयेंद्र की सिफारिश पर यशवंत भाई ने भड़ासी बनने का न्योता दिया था और सुलतानपुर के इस बदतमीज, बदतहजीब, बदशक्ल , बदअक्ल, बददिमाग, बदमिजाज, बेहया, बेवफा , बेगैरत,बेमुरौव्वत शख्स ने पहली बार ६ मई को भड़ास पर एंट्री मारी थी. हिंदी में नहीं अंग्रेजी में. मेरी पहली चिट्ठी पर जिन तीन भाइयों (वरुण राय,डा.रुपेश श्रीवास्तव व रजनीश के झा)ने स्वागत कर अपनी सकारात्मक टिप्पणी दी थी,उनका मैं शुक्रगुजार हूं .हालांकि तीनों की चिट्ठी से यह साफ था कि उन्हें इस बात का कतई भरोसा नहीं है कि मैं वैसा हूं.यह उनका भोलापन है.शराफत है.चूंकि तीनों अच्छे इनसान हैं .इसलिए उन्हें मेरे जैसा बुरा आदमी भी अच्छा नजर आता है.जहां तक रजनीश के झा की बात है तो वह मेरे ममरे भाई हैं.इसीलिए उन्होंने मेरी भड़ास पर प्रकाशित दोनों गजलों पर भी सकारात्मक टिप्पणी दी.बता दूं कि मैं अवध की संतान हूं और रजनीश मिथिला की.जाहिर है कि हम दोनों ममेरे-फुफेरे भाई हुए.वरुण राय ने कहा था कि अपने विशेषणों में से एकाध की झलक दिखाइए तो डा.रुपेश ने पूछा था कि मेरी खुद के बारे में व्यक्त की गई राय मेरी है या औरों की.तो भाई यह राय मेरी ही है.क्योंकि अपने चरित्र के बारें में मुझसे ज्यादा दूसरा कौन जान सकता है.भाई वरुण मैं वाकई बहुत बदतमीज,बदजुबान हूं. मेरी वाणी में मिठास रहे इसलिए आपकी भौजाई कुछ साल पहले तक मुझे सुबह उठते ही दो चम्मच चीनी खिलाती थीं.एक दिन घर में चीनी खत्म हो गई तो उस दिन मैंने उनकी दो मीठी-मीठी चुम्मी से काम चला लिया.चुम्मी चीनी की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही कारगर साबित हुई तो तब से उसी को नियमित कर दिया.रहा सवाल मेरे भला होने का तो वह तो मैं हो ही नहीं सकता.क्योंकि मैं २४ कैरेट का शुद्ध ब्राह्मण हूं.ब्राह्मण यानि कि भूसुर यानि की पृथ्वी लोक के देवता.शास्त्रों के अनुसार जो सुरा का सेवन करते हैं वे सुर होते हैं और जो सुरा का सेवन नहीं करते वे असुर होते हैं.मेरी बात पर भरोसा न हो तो भइया अशोक पांडे (स्थानीय संपादक,अमर उजाला , लखनऊ )से पूछ लो.तीन साल पहले जब वे हिसार में दैनिक भास्कर के स्थानीय संपादक हुआ करते थे तो भास्कर में अपने एक लेख में उन्होंने इसका उदाहरण सहित जिक्र किया था.सो २४ कैरेट के शुद्ध भूसुर होने के नाते देवसुलभ प्रवृत्ति अर्थात सुरा पान करना,अप्सराओं पर मोहित होना मेरे स्वाभाव में है.हां इतना जरूर है कि सुंदरियों से अभिसार मात्र मानिसक ही होता है.इसके दो कारण हैं. पहला मैं दुनिया के हर दुष्कर्म बेहिचक कर लेता हूं लेकिन किसी के भरोसे को चोट पहुंचाना मेरी फितरत में नहीं है.दूसरा कारण यह भी है कि कहीं इस बात का पता मेरी लैला को चल गया तो वह लैला अली बन जाएंगी और मुझे अस्पताल में भर्ती होना पड़ेगा.सच बताऊं मैं आज तक कभी अस्पताल में नहीं भर्ती हुआ हूं.और रही बात सुरा पान की तो मैं व्हिस्की तभी पीता हूं जब कोई क्षत्रिय साथ में हो.क्योंकि शास्त्रों में लिखा है कि ब्राह्णण रिस्की-आफ्टर व्हिस्की,यह बात आप भाई यशवंत से पूछ सकते हैं.सो मैं बजाए व्हिस्की के वोदका से ही काम चला लेता हूं.रम मुझे पसंद नहीं और वाइन पीने की हैसियत नहीं.

3 comments:

  1. शानदार लिखा है जगदीश भाई। आप तो भड़ासियों के बाप निकले :) अब तक आप जैसा असुर सम्राट, महा भड़ासी, स्पेशल औघड़, सुपर फक्कड़....कहां खो रहा था। अब लगता है भड़ास आपको पाकर और भड़ास को आप पाकर, दोनों ही धन्य धन्य हो रहे हैं।

    मैं अपनी समस्त बुरी आत्माओं, भावनाओं, कुंठाओं, इच्छाओं के साथ आपका स्वागत करता हूं और भड़ास के अन्य असुरों से आह्वान करता हूं कि वे जगदीश जी का भूत नृत्य और सुपर अट्टाहस करते हुए स्वागत करें।
    जय भडास
    यशवंत

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  2. main bhi aapka swagat karata hon. kahan the ab tak aap. aap achhe aadami hain, kam kam se kam mujhse bure to nahin.
    shashibhuddin thanedar

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  3. क्या भिड़ू लोग बुरे बनने का ओलम्पिक-सोलम्पिक चल रएला ऐ?अपुन को रेफ़री रखने का हो तो बताना अपुन मेडल-वेडल बी दें डालेगा; पन काय कूं खाली-पीली फ़ोकट में बुरा कैलाने के पिच्छू भाग रएले बाप??

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