दूसरों के दुखों से आंख फिराकर खुद के लिए अपार सुख तलाशने वाले हम कथित सुसभ्य शहरियों के लिए अमित द्विवेदी की दो पोस्टें आइना दिखाने वाली हैं। इसी दिल्ली - नोएडा में रह रहा एक पत्रकार अमित द्विवेदी किस तरह एक दूसरे शख्स की पीड़ा के साथ खुद को जोड़े हुए है, उसके साथ कंधा से कंधा मिलाकर चल रहा है, लड़ रहा है.....वो जानने के बाद मैं खुद पर शर्मिंदा महसूस कर रहा हूं। कहने को हम सब इतने मीडिया वाले भड़ास पर हैं, ब्लागिंग में हैं, अखबार में हैं पर किसी जेनुइन की मदद करने का माद्दा नहीं जुटा पाते क्योंकि इसमें समय खर्च होगा, पैसा खर्च होगा और मिलेगा कुछ नहीं। हां, कुछ नहीं मिलेगा पर जो लोग जीने का मतलब और मकसद तलाशते हैं उन्हें बहुत कुछ मिलेगा। हम भड़ासियों के लिए यह मुद्दा जीवन मरण का मुद्दा है। कुछ उसी तरह जिस तरह कानपुर के भड़ासी साथी शशिकांत अवस्थी ने एक बिछुड़ी मां को उसके बेटों से मिलवाया और उसके घर पहुंचाया, उसी तरह हम करुणाकर नामक छात्र जो बस्ती के हरैया तहसील के गांव का रहने वाला है और गरीब घर का है लेकिन पढ़ने में बेहद प्रतिभावान है, अपनी जिंदगी के बचे हुए पांच छह महीने जियेगा और उसके बाद यह दुनिया छोड़कर चला जाएगा। दुख तो यह कि इन बचे हुए छह महीनों में डाक्टरों की सलाह के मताबिक उसे मां बाप के साथ रहने का सुख भी नहीं नसीब हो सकेगा क्योंकि उसके पिता को कुछ प्रभावशाली लोगों ने जेल भिजवा रखा है। उसके पिता को और खुद करुणाकर को यह नहीं पता कि करुणाकर की उम्र अब छह महीने है। यह बात केवल अमित द्विवेदी को पता है जो करुणाकर के साथ सिर्फ भावना और मनुष्यता के नाम पर जुडे़ हैं, उनका इलाज कराने में मदद कर रहे हैं, उन्हें आज सुबह एम्स के डाक्टर ने बताया कि इस करुणाकर की उम्र बस छह महीने बची है। इन दिनों को वो अपने परिजनों के संग गुजारे। कुछ नहीं हो सकता अब।
पूरा मामला इस तरह है---
उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के हरैया तहसील के एक गांव के गरीब ब्राह्मण ओंकार का बेटा करुणाकर पढ़ाई में इतना तेज था कि वो हर एक्जाम में ब्रिलियेंट पोजीशन पाता। उसकी रुचि और इच्छा को देखते हुए ओंकार ने बेटे को करुणाकर को पढ़ाने के लिए नोएडा के एक इंजीनियरिंग कालेज में दाखिला दिला दिया। इसके लिए खेत बेचकर पैसे दिए। बेटा जब यहां पढ़ने लगा तो उसे दर्द वगैरह हुआ और कई चरण की जांच पड़ताल के बाद उसके फेफड़े में कैंसर पाया गया। डाक्टरों ने कह दिया है कि वो अब जिंदा नहीं बचेगा, जीवन के जो कुछ दिन शेष हैं, उसे घर में परिजनों के साथ गुजारे।इस मामले में मैं हिंदी दुनिया के सभी साथियों, दोस्तों, दुश्मनों, परिचितों, अपिरिचितों से अपील करूंगा कि वे जो कुछ बन पड़े इस मामले में करने के लिए आगे आए।
उधर, उसके पिता ओंकार मिश्रा इन दिनों जेल में है। उन्होंने अपने गांव में किसी बुजुर्ग की खूब सेवा की और उस बुजुर्ग ने अपने नौ दस बीघे खेत ओंकार के नाम लिख दिए। बुजुर्ग की मृत्यु के बाद उनके कथित चाहने वालों ने पैसे के बल पर ओंकार को जल भिजवा दिया, यह आरोप लगाते हुए कि उन्होंने चार सौ बीसी करके जमीन अपने नाम लिखवा लिया है। इन दिनों वो गोंडा जेल में बंद हैं। पिता को नहीं पता कि उनका लाडला और तेज तर्रार बेटा अब कुछ दिनों का मेहमान है।
जैसे इस परिवार पर आफत का पहाड़ ही टूट पड़ा हो। पिता जेल में, बेटा मृत्यु शैय्या पर। घर में फूटी कौड़ी नहीं। मामला हाइकोर्ट में है। लखनऊ में करुणाकर के एक मामा रहते हैं सोहन तिवारी। वे ओंकार के मामले में पैरवी कर रहे हैं।
कुछ तथ्य यहां और दे रहा हूं....
-करुणाकर ने आरकुट पर अपनी प्रोफाइल भी बना रखी है। उसका लिंक अमित द्विवेदी मुझे मुहैया कराने वाले हैं।
-करुणाकर की तस्वीर और उनके गांव घर के डिटेल अमित द्विवेदी मुझे जल्द ही मेल करने वाले हैं।
-करुणाकर के मामा सोहन तिवारी जो लखनऊ में हैं और करुणाकर के पिता ओंकार के जेल में होने के मामले में छुड़ाने के लिए पैरवी कर रहे हैं, उनका मोबाइल नंबर मेरे पास अमित ने भिजवा दिया है।
-लखनऊ के एक बड़े अखबार के स्थानीय संपादक और एक नेशनल न्यूज चैनल के लखनऊ स्थित मुख्य रिपोर्टर को इस मामले के बारे में मैंने जानकारी दे दी है। दोनों लोगों ने इस मामले को मीडिया में फ्लैश कर इस पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने का वादा किया है। जल्द ही दोनों लोगों तक इस मामले के सारे डिटेल मेल के जरिए पहुंचा दूंगा।
अपील
-अगर आप मीडिया में हैं और इस पोजीशन में हैं कि गोंडा, बस्ती और इलाहाबाद में वकील, अफसर, नेता के जरिए दबाव बनाकर पिता ओंकार को जेल से रिहा करा सकें तो कृपया इस दिशा में पहल करें। मुझे रिंग कर सकते हैं -09999330099 पर। मुझसे डिटेल ले सकते हैं yashwantdelhi@gmail.com पर मेल करके।
-अगर आपके परिवार, दोस्त, जानकारी में कोई इलाहाबाद में ठीकठाक वकील हों, बस्ती और गोंडा में प्रशासनिक अफसर या नेता हों तो उन्हें इस मामले में पहल करने के लिए अनुरोध करें। यह सिर्फ और सिर्फ मनुष्यता का मामला है। घनघोर स्वार्थ के इस दौर में अगर हम थोड़ी सी पहल करके किसी का भला करा सकते हैं तो हमें करना चाहिए।
-अगर आपकी जानकारी में कोई डाक्टर ऐसा हो जो फेफड़े के कैंसर का इलाज करने में सक्षम हो तो ओंकार को दुबारा उन डाक्टरों से दिखवाने की पहल करें।
-प्लीज, करुणाकर हमारी आपकी तरह है। उसके पिता हमारे आपके पिता की तरह हैं। हम अलग अलग शरीर भले ही धारण किए हुए हैं पर हमारे होने की पहचान एक दूसरे को मदद देने, एक दूसरे को बेहतर बनाने से है, इसलिए इस मामले में आगे आइए।
- अगली पोस्ट में भड़ास पर करुणाकर की तस्वीर और उससे जुड़े सारे तथ्य डिटेल में डालूंगा। अमित द्विवेदी से अनुरोध है कि वे शीघ्र सारी जानकारियों को मेल करके मुझ तक पहुंचाएं।
(उपरोक्त जानकारियां अमित द्विवेदी से फोन पर हुई बातचीत पर आधारित है)
भड़ास के सदस्य और पत्रकार साथी अमित द्विवेदी ने इस मामले में जो दो पोस्टें भड़ास पर डाली हैं, उन्हें आप जरूर पढ़िए.... (यह ध्यान रखिए कि अमित अभी हफ्ते भर भी नहीं हुए, भड़ास के मेंबर बने हैं, और आनलाइन हिंदी लिखना सीख रहे हैं, इसके चलते गूगल ट्रांसलेशन वाले सिस्टम से लिखने में कई शब्द अशुद्ध रूप से हिंदी में अनुवादित हुए हैं, इसलिए इन शब्द व व्याकरण के दोषों को नजरअंदाज करके पढ़ें.....)
पहली पोस्ट
एक कहानी जो जारी है
दूसरी पोस्ट
उसकी जिंदगी अंतिम पड़ाव पर आ गई
जय भड़ास
यशवंत
kolkata me ek aadivasi swapn ghodaee kainsar kee dva dete hain free. kripashankar chaubey se sampark kren.
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