31.7.08

दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में 28 और 29 जुलाई को संपन्न हुई सूचना के अधिकार कार्यकर्ताओं की वार्षिक बैठक में केन्द्रीय सूचना आयोग और राज्य सूचना आयोग की कार्यप्रणाली के संबंध में अनेक प्रकार की चिंताएं सामने आईं। देशभर के 21 राज्यों के करीब 150 आरटीआई कार्यकर्ताओं ने अपने-अपने राज्यों के सूचना आयोग की कार्यप्रणाली का जिक्र किया और उन्हें सुधारने के लिए सुझाव दिए। पूरी बैठक में बहस का मुद्दा यह रहा कि क्या आयोग को सुधारने के लिए सीधी कारवाई का वक्त आ गया है? अरविंद केजरीवाल ने बैठक को संबोधित करते हुए कहा कि केन्द्रीय सूचना आयोग के खिलाफ सीधी कारवाई करने का वक्त आ गया क्योंकि आयोग को सुधारने के हमारे सभी प्रयास विफल हुए हैं। उन्होंने बताया कि सूचना आयुक्त पदमा बालासुब्रमण्यन ने अब तक किसी भी दोषी लोक सूचना अधिकारी पर जुर्माना नहीं लगाया है। शैलेश गांधी सहित कुछ कार्यकर्ताओं ने सीधी कारवाई से पहले आयोग को सुधारने के अन्य उपायों पर जोर दिया।अनेक कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाए कि सूचना आयोग ही सूचना के अधिकार के सफल कार्यान्वयन में सबसे बड़ी बाधा बन रहे हैं क्योंकि सूचना आयुक्त की आवेदकों की बजाय प्रशासन और सरकार से सहानुभूति है। छत्तीसगढ़ से आए कार्यकर्ताओं ने आयोग द्वारा लोक सूचना अधिकारी से रिश्वत लेने की बात कह आयोग को कटघरे में खड़ा किया। उन्होंने बताया कि राज्य में आयोग पर राजनैतिक दबाब बहुत अधिक है और वहां प्रथम अपीलीय अधिकारी लगभग नििष्क्रय हो चके हैं। सूचना आयोग की कार्यप्रणाली के संदर्भ में अनेक राज्यों की तरफ से जो आंकड़े उपलब्ध कराए गए वह भी काफी चौंकाने वाले थे और आयोग की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह लगा रहे थे। मध्य प्रदेश के एक आरटीआई कार्यकर्ता ने बताया कि मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग ने तीन सालों में मात्र 4 लोगों को दंडित किया है जिनमें 3 दंड उच्च न्यायालय के दखल के बाद हुए हैं। यह आंकडे मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयोग कार्यप्रणाली बताने के लिए पर्याप्त हैं।केरल से आए एक कार्यकर्ता ने बताया कि केरल सूचना आयोग प्रति माह मात्र 10 मामलों का निपटारा करता है और वहां सेक्शन 4 की कोई व्यवस्था नहीं है। ध्यान देने की बात है कि केरल में यह स्थिति 7 सूचना आयुक्तों के होने के बाद है।बैठक में यह भी महसूस किया गया कि देश की जनता को इस कानून के प्रति जागरूक बनाने की जरूरत है ताकि इस मुद्दे पर जन समर्थन प्राप्त हो सके। साथ ही विभिन्न राज्यों के सूचना आयोग में बढ़ते लंबित मामलों पर भी चिंता व्यक्त की गई। लोगों ने एकमत में यह स्वीकार किया कि आयोग में मामलों का निपटारा अतिशीध्र होना चाहिए और सूचना देने में देरी करने वाले लोक सूचना अधिकारियों का जुर्माना लगना चाहिए ताकि लोगों का इस कानून में भरोसा बना रहे। अरविंद केजरीवाल ने कार्यकर्ताओं से कहा कि वह अगले एक साल में अपने-अपने आयोग को सुधारने में ध्यान केिन्द्रत करें।सभी कार्यकर्ताओं ने एकतम से माना कि देशभर में आरटीआई बचाओ नाम के अभियान की जरूरत है। इस अभियान को सफल बनाने और आयोेग को उत्तरदायी बनाने के लिए कार्यकर्ताओं ने अनेक सुझाव दिए जो निम्नलिखित हैं-
1 अयोग्य सूचना आयुक्तों पर जुर्माना लगना चाहिए

2 आरटीआई को विषय के रूप में छात्रों का पढ़ाया जाना चाहिए

3 सूचनाएं ऑनलाइन हों

4 आरटीआई कार्यकर्ताओं का राष्ट्रीय स्तर का नेटवर्क तैयार हो

5 हस्ताक्षर और एसएमएस अभियान शुरू हो

6 प्रत्येक राज्य में आयोग की कार्यप्रणाली के बारे में अधिक से अधिक चिटि्ठयां राष्ट्रपति को भेजी जाए। पूरे देश में आयोग के गलत निर्णयों के खिलाफ जन सुनवाईयां हों

7 नींद उडाओ अभियान के जरिए लगातार फोन करके आयुक्तों को तंग किया जाए

8 केन्द्रीय समन्वय समिति गठित हो

9 आरटीआई विषय का राजनीतिकरण हो

10 इंगित करो अभियान शुरू हो जिसमें गलत निर्णय देने वाले सूचना आयुक्त को उंगली दिखाई जाए

11 देश के हर जिले में आरटीआई पर कार्यशालाएं और अभियान शुरू हों

12 हर राज्य के राज्यपाल को ज्ञापन भेजा जाए

13 गलत निर्णय देने वाले आयुक्तों को हटाने और अच्छे आयुक्तों को नियुक्त करने का दबाव बनाया जाए

14 घूस को घूंसा अभियान फिर से शुरू हो

15 आयोग के गलत निर्णयों के विरूद्ध ब्लैक फलैग मार्च हो

16 चुनाव घोषणा पत्रों में राजनीतिक दलों को आरटीआई शामिल करने को मजबूर करना चाहिए

17 आरटीआई ग्रीटिंग कार्ड बनें और इन्हें सभी राज्य और केन्द्रीय सूचना आयोग में भेजा जाए

18 राहुल गांधी को वस्तुस्थिति से अवगत कराया जाए

19 आवेदन का शुल्क जमा करने में लचीलापन हो

20 अपीलीय अधिकारी कानून के जानकार हों

21 देश भर में सेक्शन 4 के सम्पूर्ण क्रियान्वयन पर प्रदर्शन हों

22 मीडिया से संबंधित नेशनल बैकअप सपोर्ट विकसित हो

23 हर्जाने की मांग की जानी चाहिए

24 न्यायाधिकरण में भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाया जाए और जन समर्थन तैयार किया जाए


अपना पन्ना की ओर से

2 comments:

  1. भाई,
    बात तो सारी सही है, और हमारे डॉक्टर साब सुचना के अधिकार नामक झुनझुना के पुराने खिलाडी हैं. वैसे एक बात समझ में नहीं आयी कि आप सब लोग राहुल बाबा को क्यों बताना चाहते हैं, अगर मैडम को खुश करने के लिए है तो ठीक नही तो न्यायपालिका को सुचना के अधिकार में लाइए या लाने की बात कीजिये, ये सारे नम्बर तो चुनावी वायदों कि तरह लोक लुभावने लग रहे हैं.
    जय जय भड़ास

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  2. भाई,अगर आपको लगता है कि इस देश में मम्मी गांधी और बेटा गांधी के बिना कुछ हो सकता है तो शायद मेरी तरह आप भी नशे में हैं,इस पूरी दौड़ में शामिल एक बहुत बड़ा नाम "शैलेश गांधी" क्या आपने नहीं देखा? मैं इन्हें निजी तौर पर जानता हूं अब ये गरीब जनता के मुद्दों को छोड़ कर मंत्रियों आदि की चड्ढी के साइज की जानकारी लेने को प्राथमिकता देते हैं.... क्या कहूं ऐसे लोगों को रंगा सियार कहने से सियार नाराज हो जाएंगे... अगर दम है तो जस्टिस आनंद सिंह के मुद्दे की जानकारियां निकालें,उस मुद्दे पर तो सबको सांप सूंघ जाता है....
    जय जय भड़ास

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