यशवंत जी बड़ा दुख हुआ भड़ास के दो सशक्त स्तम्भों के विरत हो जाने की ख़बर से...वैसे लोकतन्त्र में सभी को अधिकार है साथ चलने या अलग होने का ..लेकिन किसी भी भड़ासी के लिए भड़ास का लोकतान्त्रिक होने पर होने वाले गर्व पर आक्षेप है ये..इसलिए मैं आपके माध्यम से दोनों ही वरिष्ठजनों तक अपनी बात पहुचाना चाहता हूं कि ..दोनों को उनके इस कठोर निर्णय के लिए हार्दिक बधाई...वो इसलिए कि देर रात तकरीबन चार बजे के करीब मैने भड़ास पर अपनी पहली पोस्ट डाली थी ..तब तक पं सुरेश नीरव जी अपनी पूरी चमक भड़ास पर बिखेर रहे थे..लेकिन सुबह होते ही उनकी इच्छानुरूप ब्लाग से उनकी हर निशानी को मुक्त कर दिया गया...ये साबित करता है..कि भड़ास पूर्णतया लोकतान्त्रिक है..ये घटना ठीक उसी तरह से है..जैस एक बड़े तूफान के बाद इंसान की ताकत की पहचान होती है...पूरी उम्मीद है भड़ासी साथी भड़ास पर आये इस छोटे से तूफान से, दोनों ही अनन्य साथियों के साथ, भड़ास की किस्ती मझधार से निकाल लायेंगें....क्योकि हमें सच्चाई के मनकों को जोड़ना है..उन्हें तोड़ना नहीं..
ईश्वर सभी को ताकत दे..औऱ स्वतन्त्र अभिव्क्ति की क्षमता भी
महाराज,आपने देखा कि भड़ास की संचालन समिति भी भंग कर दी गई है। इसे मात्र आप सभी लोग एक तात्कालिक परिवर्तन के तौर पर ही मानें अधिक कुछ नहीं.....
ReplyDeleteजय जय भड़ास
डॉक्टर साब,
ReplyDeleteहम सब कुछ नहीं मान रहे हैं क्योँकी ये पल भी निकल जायेगा. मगर प्रश्न तो अनुत्तरित ही रहा ना........
जय जय भड़ास
आखिर कुछ तो वजह रही होगी जिसके कारण दोनो सज्जन इस तरह बिना कुछ बताए चले गए।उन्हे भडासी और भडास पाठक याद करेगें
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