मामला दरअसल सरकार ही नहीं विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का है. परमाणु डील से शुरू हुई लड़ाई अब राजनीतिक स्वार्थ का रूप ले चुकी है. जो जहां अवसर पा रहा है वहीं बिक रहा है. जिसे अवसर मिल रहा है वह खरीद रहा है. खरीदने और बिकने वाले कोई और नहीं लोकतंत्र के वे नुमाइंदे हैं जो हमारी ही गलती से वहां तक पहुंचे हैं जहां पहुंचने का मेरी नजर में कोई हकदार नहीं है. न तो इन्हे लोकतंत्र की मर्यादा का ज्ञान है न ही उन्हें उस मुद्दे की ही जानकारी है जिस पर लड़ाई हो रही है.परमाणु करार से यह नुकसान है ... इस करार से यह फायदा है... दिनभर इसका राग तो वे अलाप रहे हैं लेकिन उन्हें यही जानकारी नहीं है कि परमाणु करार है क्या?
इनसे हालांकि उम्मीद ही नहीं करनी चाहिए लेकिन इनकी हरकते देख
इन्हें टीवी स्क्रीन पर देख कर व अखबारों में पढ़कर तो इनके बारे में घिन आ रही है. एक चैनल का वह प्रश्न जिसमें सांसदों से यह पूछा गया कि एटमी डील क्या है? उनके जवाब सुनकर शायद बुद्धिजीवी तो कुछ कहने की स्थिति में ही नहीं है.
इसलिये सभी से निवेदन है इस मुद्दे पर कुछ न कुछ तो टिप्पणी लिखें. जरूर यह आवाज ज्यादा दूर तक नहीं जाएगी लेकिन जहां भी जाएगी अपनी धमक तो सुना कर ही रहेगी.
जनता के साथ किया गया यह सबसे बड़ा विश्वासघात है. राजनीतिबाजों की सारी जमात इस में शामिल है. जनता के विश्वास पर सौदेवाजी करके इस जमात ने एहसानफ़रामोशी का एक रिकार्ड कायम किया है.
ReplyDeleteअपने आवाज में मेरी आवाज मिलाइए. मेरी पोस्ट पर जाइए:
http://votersforum.blogspot.com/2008/07/blog-post.html
विप्रवर,पहले मेरी चवन्नी दान स्वरूप स्वीकार करें... ये सब कमीनापन तो जनता भी देख रही है न? लेकिन मैं हमेशा कहता आया हूं कि भारत की जनता लोकतंत्र के अनुकूल नहीं है इसलिये इसमें ही मनोरंजन तलाश रही है.... यही वजह है कि पत्थर लेकर सड़को पर बस चूतियापे के लिये उतरती है राष्ट्र की जब नेता लोग बजा रहे हैं तब सब टीवी देख कर मजे ले रहे हैं कोई हाथ पत्थर नहीं उठाएगा और न ही किसी सुअर नेता की कार को आग लगाएगा........
ReplyDeleteअब आप बताइयेगा कि इस चवन्नी ने क्या घंटा धमक पैदा करी... भाई इस देश में धमक होती है फ़िल्म रिलीज होने पर,क्रिकेट मैच होने पर...
डॉ. रूपेश जी आप जैसी ही चवन्नियां मुझे कई और लोगों को देने दीजिए. तब मैं रुप्ए के कागज में भी मैटेलिक साउण्ड सुनाउंगा. लेकिन अब मुझे शर्म आ रही है कि भड़ास जैसे ब्लाग में भी मांगने पर भी टिप्पणी नहीं मिली. इन मुर्दों से आशा भी क्या कर सकते हैं. ये भी वहीं जनता है भाड़ में जाए देश हमें तो अपना काम देखना है.
ReplyDeleteरामा भाई,
ReplyDeleteऐसा नहीं है कि देश की स्थिति पर चिंता करने और कुछ कर गुजरने की तमन्ना रखने के लिए आपके पोस्ट पर टिपण्णी करना जरूरी है. आपके पोस्ट पर टिपण्णी भर नहीं करने से लोग मुर्दे नहीं हो जाते हैं. आपके टिपण्णी मांगने का अंदाज देश से ज्यादा टिपण्णी के लिए आपकी चिंता को दर्शाता प्रतीत होता है. वैसे आपकी चिंता बिल्कुल वाजिब है और आपका पोस्ट रोचक और विचारोत्तेजक है और टिपण्णी देने के लिए उकसाता है. एक नमूना तो मैं ही हूँ. टिपण्णी करने के लिए बाध्य हो गया . सचमुच में स्थिति बेहद चिंताजनक है और हमारे रहनुमाओं ने हमें अपने नीच कृत्यों से दुनिया के सामने हमें शर्मशार किया है . रूपेश भाई बिल्कुल सही हैं कि हम चूतयापे के लिए ही आजकल सड़कों पर उतरते हैं. हम अपनी स्थिति के लिए ख़ुद जिम्मेदार हैं. हमारा देश एक क्रांति मांगता है पर अलख कौन जगायेगा क्यूंकि हमारे जैसे लोग तो एक टिपण्णी डालेंगे और उस पर प्रतिक्रिया का इन्तजार शुरू कर देंगे .
रामा भाई,
ReplyDeleteऐसा नहीं है कि देश की स्थिति पर चिंता करने और कुछ कर गुजरने की तमन्ना रखने के लिए आपके पोस्ट पर टिपण्णी करना जरूरी है. आपके पोस्ट पर टिपण्णी भर नहीं करने से लोग मुर्दे नहीं हो जाते हैं. आपके टिपण्णी मांगने का अंदाज देश से ज्यादा टिपण्णी के लिए आपकी चिंता को दर्शाता प्रतीत होता है. वैसे आपकी चिंता बिल्कुल वाजिब है और आपका पोस्ट रोचक और विचारोत्तेजक है और टिपण्णी देने के लिए उकसाता है. एक नमूना तो मैं ही हूँ. टिपण्णी करने के लिए बाध्य हो गया . सचमुच में स्थिति बेहद चिंताजनक है और हमारे रहनुमाओं ने हमें अपने नीच कृत्यों से दुनिया के सामने हमें शर्मशार किया है . रूपेश भाई बिल्कुल सही हैं कि हम चूतयापे के लिए ही आजकल सड़कों पर उतरते हैं. हम अपनी स्थिति के लिए ख़ुद जिम्मेदार हैं. हमारा देश एक क्रांति मांगता है पर अलख कौन जगायेगा क्यूंकि हमारे जैसे लोग तो एक टिपण्णी डालेंगे और उस पर प्रतिक्रिया का इन्तजार शुरू कर देंगे .
रामा भाई,
ReplyDeleteऐसा नहीं है कि देश की स्थिति पर चिंता करने और कुछ कर गुजरने की तमन्ना रखने के लिए आपके पोस्ट पर टिपण्णी करना जरूरी है. आपके पोस्ट पर टिपण्णी भर नहीं करने से लोग मुर्दे नहीं हो जाते हैं. आपके टिपण्णी मांगने का अंदाज देश से ज्यादा टिपण्णी के लिए आपकी चिंता को दर्शाता प्रतीत होता है. वैसे आपकी चिंता बिल्कुल वाजिब है और आपका पोस्ट रोचक और विचारोत्तेजक है और टिपण्णी देने के लिए उकसाता है. एक नमूना तो मैं ही हूँ. टिपण्णी करने के लिए बाध्य हो गया . सचमुच में स्थिति बेहद चिंताजनक है और हमारे रहनुमाओं ने हमें अपने नीच कृत्यों से दुनिया के सामने हमें शर्मशार किया है . रूपेश भाई बिल्कुल सही हैं कि हम चूतयापे के लिए ही आजकल सड़कों पर उतरते हैं. हम अपनी स्थिति के लिए ख़ुद जिम्मेदार हैं. हमारा देश एक क्रांति मांगता है पर अलख कौन जगायेगा क्यूंकि हमारे जैसे लोग तो एक टिपण्णी डालेंगे और उस पर प्रतिक्रिया का इन्तजार शुरू कर देंगे .
रामा भाई,
ReplyDeleteआपको शर्म आयी मगर कसम भारत माता कि इन नेताओं को कभी भी शर्म नही आने वाली है, ओर हां आप कुछ भी मांगें मत क्योंकी हमारे देश में मांगने से तो भीख भी नही मिलती है तो ये कंजूस बुधीजीवी आपके लिखे पर राय कैसे दे दें ।
जय जय भडास