कल दोपहर को जब मुंबई के सबसे ज्यादा जगमगाते क्षेत्र जुनैद नगर, अंधेरी(पश्चिम) में अपने किसी काम से गया तो नजारा देखा कि युवकों की एक टोली दुकानो में जा-जाकर कुछ पर्चे दे रहे हैं और कुछ ऊंची से आवाज में दुकानदारों को हिदायत(धमकीनुमा) दे रहे हैं। इतना देख कर तो मेरे जैसे प्राणी को कौतूहल स्वाभाविक है कि जान तो लें कि भइए चल क्या रहा है......? दुकानदारों से पूछा तो उन्होंने बताया कि ये पर्चे हुक्म हैं इस बात का कि यदि मुंबई महानगरपालिका के आदेशानुसार दुकानों के नामों मे बोर्ड एक माह के अंदर मराठी में नहीं करे तो अवधि समाप्त होने के बाद दुकानो को तोड़ दिया जाएगा, आग लगा दी जाएगी; ये "राजा साहब" का आदेश है......। अरे स्स्साला... हमारे तो दिमाग में भोलेनाथ तांडव करने लगे कि जल्दी से पता करो कि देश आजाद हुए इतने साल बाद कहीं फिर से लोकतंत्र समाप्त तो नहींथो गया रातोंरात और राजा-महाराजा अस्तित्त्व में आ गए हों। जब मैंने लपक कर उन युवकों को जादू की झप्पी दी और पूछा कि भाई लोग आप क्या मुंबई महानगरपालिका के कर्मचारी हो या राजा साहब के सिपाही तो उन्होंने हिकारत भरी नजरों से मेरी तरफ़ देख कर बताया कि हम लोग राजा साहब के सैनिक हैं इसपर हमने जान की खैर मांगते अगला सवाल पूंछ लिया कि सेनापति जी ये तो बता दीजिये कि अब हम किस राजा साहब की प्रजा हैं। पता चला कि जब बाळ ठाकरे बालासाहब ठाकरे हो सकता है तो राज ठाकरे राजा साहब ठाकरे क्यों नहीं......? मुंबईवासियों को ये भी नहीं पता कि मुंबई में लोकतंत्र तेल लेने जा चुका है अब वहां राजा-महाराजा राज्य करते हैं। अगर आजादी के बाद हमारे वीरों ने शहादतें देकर कुछ सर्वाधिक मूल्यवान कुछ पाया था तो वह था इस देश में अपना कानून,एक लिखित संविधान जिसे बनाने वाले हर धर्म, जाति,रवायतों और भाषा के साथ-साथ क्षेत्र की भी विशेषताओं को समझते हुए उनका सम्मान करते थे लेकिन ऐसे राजाओं ने अपने स्वार्थ के लिये उस संविधान को ऐसा बना दिया है जो कि सिर्फ़ इनके इशारों पर नाचने वाली रंडी है(विद्वानजन इन कठोर शब्दों के लिये क्षमा करें किन्तु मैं आहत हूं)।
डॉक्टर साहब, क्या लेख लिखा है। मुनव्वर राना ने शायद ऐसी परिस्थितियां देखकर ही लिखा है-
ReplyDeleteगुलामी ने हमारे मुल्क का पीछा नहीं छोड़ा,
हमें फिर कैद होना है, ये आजादी बताती है।
जहां पिछले कई वर्षो से काले नाग रहते हैं,
वहां था घोंसला चिड़ियों का ये दादी बताती है।
डॉ. भानु प्रताप सिंह, आगरा।
डॉक्टर साहब,
ReplyDeleteराजा साब हों या प्रजा साहब मगर मुंबई में जिस तरह से गुंडागर्दी है और गुंडा राज के ये नायक ठाकरे बंधू हैं, से सच में विचारनीय तो है ही कि क्या मुंबई कानून से अलग हो गया है या ये लोग ही यहाँ के कानून बन गए हैं. आश्चर्य तो तब होता है जब इनके खोफ का आतंक मुंबई कि पत्रकारिता में भी देखने को मिलता है कि इनके बारे में लिखने का साहस कोई मीडिया हॉउस नहीं दिखा पता है, ग्लैमर के चकाचोंध में उलझी मुंबई कि पत्रकारिता भी राजा साहब के लिए ही दलाली करती सी प्रतीत होती है.
जय जय भड़ास
dr saheb, ye raj thakre usi raste par chal raha hai, jis par kabhi panjab me bhindrawala chalta tha. kandra saekar kab tak tamasa dekhti rahegi?
ReplyDeleteरूपेश जी आपके इस लेख को पढ़कर मुंबई में छाए आतंक की तस्वीर सामने उभर आई बाकई मुंबई में लोकतंत्र तो शहीद हो चुका हैं बचा है तो बस आतंक का कहर और ठाकरे के ईशारों पर चलने वाले चंद कुत्ते जो मुंबई में जहां-तहां लोगों को जाति की परिभाषा समझाते रहते हैं मिडिया की जिस छवि को जिस प्रकार आपने सामने रखा हैं वो सही में विचार करने का विषय हैं...कहने को तो बहुत कुछ हैं बस चंद लाईने याद आ रहीं हैं......
ReplyDelete1..ये सियासत की तव़ायफ़ का दुपट्टा हैं..
जो किसी के आंसुओं से मैला नही होता...
2..कल वो बाज़ार में मिला चीथड़े पहने हुआ
पूछा जो उसका नाम बोला के हिदुस्तान हैं
धन्यवाद