अभी खाली बैठे-बैठे देश-विदेश के हालचाल लेने के लिए टीवी पर समाचार चैनलों को उलट-पलट रहा था कि एन डी टी वी पर आई एक ख़बर ने चौंका दिया. शायद किसी के लिए वो ख़बर बड़ी न हो, मेरे लिए भी नहीं है पर उस ख़बर ने चैनलों की उल्टा-पलती को एक पल को थाम दिया. ख़बर थी मुंबई की निकिता के बच्चे के जन्म को लेकर, उसी बच्चे की ख़बर जिसको लेकर निकिता ने गर्भपात कराने की अनुमति अदालत से मांगी थी और अदालत ने अपने जवाब में मिकिता को बच्चे को जन्म देने का आदेश दिया था या कहें कि गर्भपात करवाने की अनुमति निकिता को नहीं दी थी. ख़बर में बताया गया कि समय से पहले निकिता के उस बच्चे को जन्म दिया जो मृत पैदा हुआ.
हालाँकि सीधे-सीधे हम लोगों का इस केस से किसी भी तरह से जुडाव नहीं था पर पता नहीं क्यों एक पल को गहरा सदमा सा लगा। हो सकता है कि काफी लंबे समय से कन्या भ्रूण ह्त्या निवारण के लिए काम करते-करते इस तरह के केस में ना चाहते हुए भी एक तरह का जुडाव सा हो जाता है. हो सकता है कि किसी भी तरह के क्षणांश दुःख का ये ही कारण हो?
बहरहाल निकिता के द्वंद्व की बड़ी ही दुखद समाप्ति हुई पर उसके अदालत तक पहुंचे केस ने इस तरह के मामलों के लिए बहस जरूर छेड़ दी है। गर्भपात के क़ानून को लेकर कानूनविदों को फ़िर से विचार करना होगा. जहाँ विज्ञान की तकनीकों का उपयोग आने वाली पीढी को गर्भ से ही सुंदर और बुद्धिमान बनाने के लिए किया जा रहा हो (क्लोनिंग को इसी सन्दर्भ में स्थापित किया जा रहा है) तब किसी माँ की अपील पर कानूनी दलीलों से अधिक उसकी भावनाओं को समझना आवश्यक था. फिलहाल बाकी बच्चा दुःख, क्षोभ.......................
डा.सेंगर,निकिता की पीड़ा को समझ सकता हूं और कानून की स्थिति तो ऐसी है कि संसार का सबसे बड़ा लिखित संविधान अपनी ही धाराओं में ऐसा उलझ चुका है कि क्या कहा जाए,कानून से जीवन की उत्पत्ति विषयक मुद्दों को सुलझा पाना नितांत दुष्कर है......
ReplyDeleteसेंगर भाई,
ReplyDeleteनिकिता ने कानून पर बहस नही कराई है अपितु हमारे क़ानून के उलझे पहलुओं को आइना दिखाया है, सच मच क़ानून की इन उलझी धाराओं ने लोगों का जीवन सुलझाने के बजाये जटिल बना दिया है और क़ानून के बड़े बड़े पैबंद इन को और उलझाने से बाज नही आते दुहाई मानवता के मुकाबले कानून की, पता नही कानून मानव के लिए है या मानव कानून के लिए.
जय जय भड़ास