बहुत पहले एक फ़िल्म आई थी, नाम था छोटा चेतन, बच्चे, बड़े और नादान सबने फ़िल्म को जमकर सराहा और वक्त बीतने के साथ चेतन की याद भी कुछ कुछ धुंधली पड़ गई, इधर जिन्दगी की धकापेल में इस शहर से उस शहर और कई दिक्कतों में चेतन दिल और दिमाग से दूर होता गया, इधर दिल्ली आया और पाश सी कही जाने वाली एक कालोनी में एक अदद मकान का जुगाड़ करके दिल्ली को फिर से गले लगाने की कोशिशों में जुटा ही था की एक दिन अनायास 'चेतन' से मुलाक़ात हो गई, 'चेतन' और वो भी छोटा 'चेतन' इस मोड़ पर बेसाख्ता छोटा चेतन से मिलना और रोज मिलना, न सिर्फ़ मिलना बल्कि छोटा चेतन के साथ अक्सर बिस्कुट खाना और कुछ देर खेलना आदत सी बन गई, जाहिर है जिस चेतन की पूरी दुनिया दीवानी है और मेरी कालोनी का हर इंसान तोः चेतन का मुरीद बने बिना रहने की हिमाकत मैं कैसे कर सकता था, दरअसल हुआ यूँ की एक रोज यूँही छुट्टी के दिन पैदल टहलते टहलते किसी दूकान सी कही जाने वाली जगह पर कुछ देर रुका ही था की चेतन साहब टकरा गए, अब इंसान होने के नाते और उम्र में चेतन के बेहद छोटे होने के चलते उनके वाजिब स्नेह को ब्याज समेत लौटाना फर्ज था, कुछ फर्ज की मजबूरी और कुछ चेतन के प्रति प्यार, बस एक ब्रेड का छोटा सा टुकडा क्या ऑफर किया चेतन अपना दोस्त बन बैठा और दोस्त भी ऐसा-वैसा नही, ''ये दोस्ती हम नही तोडेंगे'' टाइप की दोस्ती, अब इस अजनबी शहर मेंबैठे बिठाये एक बेहतरीन दोस्त को कौन खोना चाहेगा, जब कमीनगी लोगों के चेहरे से टपकने के बजाय जज्बातों तक से टपकती हो , तोः साहब अपनी दोस्ती यूँही अनायास शुरू हो गई, रात एक बजे मेरे घर पहुँचने तक चेतन का मेरा इन्तजार करना, दूर से ही मुझे देख भर लेने के बाद अपनी पूरी बच्चा पार्टी के साथ बिना किसी मोल भावः के दोस्ती के नए नए मायने समझाने में चेतन लग गए, हाँ इस दोस्ती में न कोई फरमाइश है न कोई चालाकी और न छुपा हुआ कोई स्वार्थ, बस दो अजनबियों का दिल्ली जैसे बेदिल शहर में एक अनाम रिश्ता, क्यूंकि चेतन मेरी भाषा नही समझता और मैं उसकी, संवाद होता है लेकिन भावों से, अगर भावनाओं की येः कड़ी टूट गई तोः न चेतन मेरा दोस्त रहेगा और न मैं उसका, हम दोनों की बिरादरियों के बीच पहले ही संशय की इस कदर मोटी दीवार खड़ी है की अगर इस रिश्ते से एक दूसरे के बीच स्नेह की इस कड़ी को हटा दें तोः कहने के लिए कुछ भी नही बचता, बहुत लोग चेतन को नही जानते, लेकिन न्यू फ्रेंड्स कालोनी में रहने वाले ज्यादातर लोग न सिर्फ़ चेतन के दोस्त हैं बल्कि ''चेतन'' इस कालोनी का हीरो है, जाहिर है उसके कई सारे प्रशंषकों में मैं भी हूँ और चेतन का दोस्त होने के नाते इस दोस्ती पर गर्व करने की वजह भी मेरे पास दूसरो की ही तरह कई हैं, भले ही चेतन को लोग ''कुत्ता'' कही जाने वाली बिरादरी का एक सदस्य भर मानते हों पर हमारे लिए वोः बेहतरीन दोस्त, यार और भाई है, फर्क सिर्फ़ दो और चार पैरों का है, उम्मीद है ''छोटा चेतन'' को आप सब जान गए होंगे, तोः इस तरह के कई चेतन हमारी आपकी दोस्ती के लिए तैयार हैं बस हाथ तोः बढाइये उनकी तरफ़ दोस्ती का
''हृदयेंद्र''
भाई,हममें से भी कई आपको इसी बिरादरी के तो नहीं पर इतने ही प्रेम और दोस्ती से भरे मिलेंगे उसमे से एक तो मैं ही हूं,जिसे लोगो ने इसी प्रजाति का घोषित कर रखा है:)
ReplyDeleteभाई,
ReplyDeleteडॉक्टर साब ही नहीं हम भी, और इस प्रजाति कि एक खासियत है, परें और दोस्ती का कभी अकाल नहीं पड़ता.
जय जय भड़ास