12.8.08

"कुत्ते से सावधान"

"कुत्ते से सावधान"

दोमुंहे दो बार सोच लें,
द्वार पे दस्तक देने से पहले!

ये तख्ती,
संभ्रांतता का सुबूत देने के लिए पाले गए,
किसी खास नस्ल के पालतू के लिए नहीं है!
ये उस खालिस खडूस के लिए है ....
जो इस दरवाजे के पीछे रहता है!

ख़बरदार!
न सिर्फ भौंकेगा, गुर्रायेगा बल्कि काट भी सकता है,
कमीनेपन के हाथों पे मक्कारी के मखमली दस्ताने चढ़ा जो पीठ पे हाथ फेरा,
या जात, जमात, जकात के जिक्र से अपना कद बढ़ा; इसकी औकात को घेरा!!

और सुनो,
तसल्ली की बासी रोटी पे बेईमानी का बिस्किट फ़ेंक,
ललचाने के लटके आजमाने की गलती मत करना!
वरना
खरोंचें दिखा-दिखा के इसके खिलाफ कीड़ों की कांफ्रेंस करोगे,
और फटे कपड़ों की तोहमत इस बिचारे के सिर धरते फिरोगे!!!

चलो मान लिया......
इकट्ठे हो कर इसको घेर भी लोगे तो क्या!
और घेर घोट के मार भी दोगे तो क्या!!
कीड़ी कुंजर मार के भी चींटी रहेगी और हाथी मर के भी गजधन!
और फिर अट्ठारहवें दिन तो न जयद्रथ बचा था न दुर्योधन!

खैर...
उठाए कष्ट पांडवों ने,
तो मोक्ष भी पाया था!
युधिष्ठिर को लेने स्वर्ग से
रथ धरा पर आया था!!!

और कहते हैं...
साथ गया था एक कुत्ता भी!
इसलिए फिर कहता हूँ सावधान!
"कुत्ते से सावधान"
-कुलदीप

1 comment:

  1. कुलदीप जी,
    शानदार लिखा, लोग भी अब बस भडासी से सावधान हो जाएँ ;-)

    ReplyDelete