अजब इन्सान हूँ मैं ,ज़िन्दगी के गीत गाता हूँ,
भला हो या बुरा मौसम,खुशी के गीत गाता हूँ।
जो मिलता है उसे अपना नसीबा मान लेता हूँ,
जो खोया है उसे मैं भूल के भी गीत गाता हूँ।
मुझे हर साँस में उसकी कमी महसूस होती है,
मैं सब कुछ हार कर भी जीत के ही गीत गाता हूँ।
बुरा महसूस करता हूँ,भला फिर भी मैं करता हूँ,
करम फरमा हरइक लम्हा तुम्हारे गीत गाता हूँ।
ज़मीं हिलती हुई मकबूल अब महसूस होती है,
फलक के चाँद तारो,मैं खुशी के गीत गाता हूँ।
मकबूल.
मकबूल भाई,
ReplyDeleteआप अजब नहीं बल्की गजब इंसान हैं, शानदार लिखा, आपको बधाई.