26.9.08

नेता तो बहाना है....हम भी क्या कम हैं ??


पता नहीं कब और किसका लिखा यह पहाडा बचपन में ही पढ़ा था ,ऐसा दिल में घुसा कि आज तक याद है,आपको बता रहा हूँ गौर करें....नेता एकम नेता !नेता दुनी दगाबाज !नेता तिया तिकडमबाज !नेता चौके चार सौ बीस ! नेता पंजे पुलिस दलाल !नेता छक्के छक्का-हिन्जडा !नेता सत्ते सत्ता-धारी ! नेता अट्ठे अरिन्गाबाज ! नेता नम्मे नमक-हराम ! नेता दस्से सत्यानाश !!इस अनाम कवि को मैं बचपन से ही सलाम करता आया हूँ !!दस छोटी-छोटी पंक्तियों में देश की एक महत्वपूर्ण कौम का समूचा चरित्र बखान कर दिया है ,मगर ये एक कौम तो क्या, शायद कोई भी आदमी कितना भी लांछित क्यों न जाए ,किसी भी कीमत पर देश का सच्चा नागरिक बनने को तैयार नहीं है ,हाँ ;एक-दूसरे को कोसते तो सभी हैं........ट्रैफिक जाम,तू जिम्मेवार.....!!रोड पर कूडा ,तू जिम्मेवार....!!कहीं कुछ भी ग़लत हो जाए
तो मुझे छोड़कर सारे ग़लत !! फरमाया है,.....जहाँ पर मैं रहता था वो वतन कुछ ऐसा था.....हर ओर गंदगी और कूडे का आलम था......मैं जहाँ गया वां पान की पीकों की रूताब थी वाह-वाह!!.....हर दीवार पर थूक की नदियाँ थी वाह-वाह! अन्दर गंदे कागजों का ढेर था वाह-वाह....पेश आते थे सभी बदतमीजी से वाह-वाह ! किसी की कहीं भी उतार देते थे इज्ज़त वाह-वाह!....कोई कहीं भी टट्टी-पेशाब कर सकता था वाह वाह!...सड़कों पर बहती थी नालियां वाह-वाह!..कितना महान था वह लोकतंत्र वाह-वाह!...कोई वतन की इज्ज़त उतार सकता था वाह-वाह!...तिरंगा पैरों-ताले रौंदा जाता था वाह-वाह..नंगी तस्वीरों से पटी पड़ी थीं गलियां वाह-वाह!..सब अपना घर भरने में थे मशगूल वाह-वाह!... बाप बना देश रोता जाता था वाह-वाह...!बहन वेश्याओं की बस्ती में रोती थी.....और भारत-माँ को तो पहले ही बेच दिया था वाह-वाह.!! वहां ऐसी ही धर्मनिरपेक्षता थी वाह-वाह!!...सब एक दूसरे की"......"खींचते थे वाह-वाह!!...गरीबों के दुखों से किसी का कोई वास्ता न था...वां सब सरकार गिरते थे वाह-वाह!...बड़ा ही प्यारा,सबसे न्यारा वतन था वाह-वाह ... बस सब एक दूसरे की "....." मार रहे थे वाह-वाह .....!!निर्दोष तो जेलों में बंद थे वाह-वाह !!अपराधी फोड़ते थे दनादन बम वाह-वाह !!........अब बढ़ाने को तो कुछ भी बढाया जा सकता है,मगर क्या फायदा?इन बातों से लोग बोर ही होते हैं !!सो फिलहाल इतना ही.....अब चलता हूँ ....!!हाय !!
प्रस्तुतकर्ता-- भूतनाथ

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