23.9.08

चार दिन की ज़िंदगी क्या क्या करें

ऐसा करें,वैसा करें,कैसा करें,
चार दिन की ज़िंदगी क्या क्या करें।
बचपने में खेल जो हम कर चुके,
कोई बतलाये नया अब क्या करें।
मन्दिर चलें,मस्जिद चलें या मैकदा,
आप का न साथ हो तो क्या चलें।
पूछिए मत बेखुदी में क्या किया,
होश में हैं अब बता क्या क्या करें।
मकबूल से तन्हाई में उसने कहा,
इन हसीं लम्हों में बोलो क्या करें।
maqbool

No comments:

Post a Comment