28.9.08

ब्लोगर्स के लिए

दुनिया में ऐसे सज्जनों/सज्जनियों की कमी नहीं है जिनकी कोई सुनता नहीं। वे कुछ कहना चाहते हैं लेकिन अफ़सोस कि कोई सुनने वाला होता ही नहीं। अब बात तो कहनी ही है, नहीं कहेंगें तो दिमाग की नसें फटने का डर रहता है। अब ऐसा होने की संभावना कुछ कम इसलिए हो गई क्योंकिं ऐसे लोगों/लुगाइयों को एक माध्यम मिल गया अपनी भड़ास निकालने का। यहाँ भी समस्या कम नहीं है। अब हमने अपनी बात तो लिख दी। अब यह उम्मीद रहती है कि कोई कहे "वह क्या बात है"। "बहुत खूब"। सब ऐसा चाहते हैं। कई तो टिप्पणी के साथ बाकायदा लिखते हैं "आप भी हमारे ब्लॉग पर आना"। "हमने दस्तक दी है, आप भी देना"। एक ने तो साफ साफ लिखा " हमें भी आपकी टिप्पणी का इन्तजार है"। एक का कहना था " मैंने आप के ब्लॉग पर टिप्पणी लिखी है आप भी लिखना"। जब हमारी हालत ये है तो फ़िर ये कहना ठीक रहेगा चुटकी के रूप में --
रे मेरे
सप्पन पाट,
मैं तैने चाटूं
तू मैंने चाट।
आप मेरी जय जय कार करो मैं आपकी।

1 comment:

  1. मेरे पिताजी कहा करते हैं कि एक पृष्ठ लिखने से पहले १०० पृष्ठ का अध्ययन होना चाहिये . पर आज कोई पढ़ना नही चाहता , सब बस पढ़ाना चाहते हैं ...
    यह सब इसीलिये हो रहा है .
    पठनीयता के इस विलोपन पर चिंता करें , कोई हल सोचें !
    विवेक रंजन श्रीवास्तव

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