28.9.08

शालीनता भी हो तो सोने पर सुहागा

ब्लॉग कोई छोटी मोटी बात नहीं है। इसके द्वारा न केवल हम अपने दिल की बात अनगिनत लोगों तक पहुँचा पाते हैं बल्कि इसके साथ साथ दूसरों के पक्ष भी जानने को मिल जाते हैं। इसका कारण है ब्लोगर्स का अनुभव,शिक्षा,अपने सब्जेक्ट की जानकारी। इन सबके चलते जब वह कोई बात लिखता है तो उसमे कुछ न कुछ तो दम होता ही है। कुछ होगा तो उसको बच्चे भी रीड करेंगें,महिलाएं भी और लड़कियां भी। क्योंकि इन्टनेट इनकी पहुँच से दूर नहीं है। लेकिन ये सब क्या अश्लील शब्दों का भेद जानने उनको जीवन में,रोजमर्रा की बातचीत में इस्तेमाल करने के लिए ब्लॉग विजिट करेंगे। किसी ने कहा है --"अपना किया ही उम्र भर पाता है आदमी, फ़िर भी खुदा का नाम उठाता है आदमी।" एक और तो ब्लॉग के माध्यम से हिन्दी का महत्व अधिक करने की बात की जाती है दूसरी तरफ़ अश्लील शब्दों की भरमार रहती है। कोई टिप्पणी में लिखता है, कोई अपने ब्लॉग पर। हिन्दी में शालीन शब्दों की ना तो कोई कमी है और ना ही उन शब्दों का प्रयोग करने से किसी की बात का वजन कम होता है। अगर शब्द गरिमामय होंगें तो उससे ब्लॉग लेखक से अधिक लोग प्रभावित होंगे। अश्लीलता के तलबगार भी अपने ही हैं। मगर ये तय है कि इस बारे में किसी ने कुछ लिखा नहीं होगा। कई तो ऐसे "देवता" हैं जो अश्लील शब्द जरुर लिखेंगें, उन्होंने इन शब्दों को अपनी पहचान बना लिया है। उनके संस्कार ही ऐसे हैं या वो ऐसा जानबूझकर करतें हैं पता नहीं। बहुत से ब्लोगर्स ऐसें भी हैं जो बाकायदा सुझाव,राय देतें हैं मार्गदर्शन करते हैं। एक ने लिखा था कि एक पेज लिखने से पहले १०० पेज रीड करने की बात अनुभवी व्यक्ति किया करते हैं। जबकि आज हालत ये है कि १०० पेज लिखने के लिए तो टाइम है लेकिन एक पेज रीड करने के लिए नहीं। जब स्थिति ये है तो फ़िर जानदार और शानदार शब्दों की उम्मीद की भी कैसे जा सकती है। सच कहा है किसी ने--रास्ता किस जगह नहीं होता,सिर्फ़ हमको पता नहीं होता। बरसों रुत के मिजाज सहता है,पेड़ यूँ ही बड़ा नहीं होता।" जब हमने पेड़ बनना है तो फ़िर थोड़ा सा तो वैसा होना ही पड़ेगा। हो सकता है अधिकतर ब्लोगर्स मेरे इस मत से सहमत नहीं हों,सम्भव है वे अपना मत भी ना प्रकट करें परन्तु मेरी उनसे यही विनती है कि वे अपने लेख और टिप्पणी में शब्दों की गरिमा के साथ साथ ब्लोगर्स की गरिमा भी अपने दिल में रखें।

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