4.10.08

धर्म कर्म के नाम पर

-----चुटकियाँ----
धर्मगुरु के सामने
पकवानों के ढेर
बाप तडफता रोटी को
समय का देखो फेर,
धर्म कर्म के नाम पर
दोनों हाथ लुटाए
दरवाजे पर खड़ा भिखारी
लेकिन भूखा जाए,
कोई कहे कर्मों का
फल है,कोई कहे तकदीर
राजा का बेटा राजा है
फ़कीर का बेटा फ़कीर,
चलती चक्की देखकर
अब रोता नहीं कबीर
दो पाटन के बीच में
अब केवल पिसे गरीब,
लंगर हमने लगा दिए
उसमे जीमे कई हजार
भूखे को रोटी नहीं
ये कैसा धर्माचार।
------गोविन्द गोयल

6 comments:

  1. wah Naradmuniji,
    kya khub haquiqat bayan ki hai aapne chand panktiyon me.
    12 % Inflation ke is daur me aapki poem Sonia Gandhi, Manmohan Singh aur Chidambaram ko samarpit kar dena chahiye.
    Kunwar pritam
    kolkata

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  2. govind goyal ji yeh baat to sahi hai apne baap to ghar mein bhooka betha rehta hai lakin dharm k naame par jo log hote hai unko khila-pilane mei ko hichak nahi rehti
    wese main bhi goyal hoon.

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  3. मुनिवर,
    बहुत खूब लिखा है, ऐसे चुटकियाँ जारी रक्खें,

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  4. dharma karma ke nam par achchi kavita aur vyangya.

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