6.10.08

एक हो जाओ वहुसंख्यकों......

देश के मूल-निवासी हम हैं
लोकतंत्र का मतलव ही बहुसंख्य है तो क्यों वोट बैंक की राजनीति को दोष दिया जा रहा है? एक बहुत ही साधारण सी बात है कि आज जो संकट भारत पर मंडरा रहा है, वह पैदा करने वाले तो देश के चच्चा बने बैठे हैं और चापलूसों की फौज चच्चा के पिल्लों को ढो रही है। मैं किसी का महिमा मर्दन नहीं कर रहा बल्कि एक सच को सबके सामने लाना चाहता हूँ,जो लोग जान कर भी अनजान बने हैं,उन्हे ये बता देना ज्ञरूरी है, कि लोकवादी बने व्यक्तिवादी नहीं देश के बाप,चाचा,मामा नहीं होने चाहिये तभी संप्रभू राष्ट्र हो सकता है। याद रखिये आप इस देश के मूल-निवासी हो तो आपकी ज्ञिम्मेदारी बाकियों से ज्ञ्यादा है। देश के अच्छे-बुरे का हमें ज्ञ्यादा ख्याल रखना है। वहुसंख्य लोकतंत्र की आत्मा है,तब याद रखिये वहुसंख्य आप हैं और सिर्फ आप। अपनी एकता का परिचय दें।

4 comments:

  1. Bahut aacha likha hai. kewal sarkar hi nahin balki media ke bare main bhi likhe. Dhanyawad

    HOMI KOHLI

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  2. main kitne hi dino se aise hi apni bhadaas nikaal raha hun......par log mante hi nhi....agar bahusankhayak fifty percent bhi ek ho jaye to desh ka kalyaan nishchit hai...lage raho.....rajnish

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  3. बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक का राग अलापने वाले मित्र आपके जैसे लोगों के लिए ही मैंने ये पोस्ट डाली है.
    http://bhadas.blogspot.com/2008/10/blog-post_8089.html
    राष्ट्रवादी बने, वैमनस्यता न बोयें
    जय जय भड़ास

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  4. are tu kya ek karega ek toh upar jane ke bad hi ho sakoge tumne abhi alpsakhko ki takat nahi dekhi

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