अगर कोई बात गले में अटक गई हो तो उगल दीजिये, मन हल्का हो जाएगा...
3.10.08
फैशन के अंदाज
---- चुटकी---- फैशन के भी देखो लफ़ड़े कपड़े हैं फ़िर भी बिन कपड़े, चमके फीगर दिखे कटाव ये कैसा फैशन ये क्या चाव, भाई की शर्म न बाप का लिहाज कलयुग में चला ये कैसा रिवाज। ----गोविन्द गोयल
फैषन को लेकर जो कविता लिखी है कि अद्र्धनग्न कपड़े पहन लड़की को इतना भी ध्यान नहीं रहता की हमारा मां-बाप देख रहे है या भाई-बहन या समाज। उसे तो सिर्फ फैषन से मतलब है। आज के फैषन के कपड़ो में शरीर को छुपाने से ज्यादा शरीर को दिखाने का माहौल चल रहा है, जिसे कोई नहीं बदल सकता, अगर फैषन के नाम पर फूहड़ता को बदलना है तो हम सबको कोई न कोई कदम उठाना पड़ेगा।
फैषन को लेकर जो कविता लिखी है कि अद्र्धनग्न कपड़े पहन लड़की को इतना भी ध्यान नहीं रहता की हमारा मां-बाप देख रहे है या भाई-बहन या समाज। उसे तो सिर्फ फैषन से मतलब है। आज के फैषन के कपड़ो में शरीर को छुपाने से ज्यादा शरीर को दिखाने का माहौल चल रहा है, जिसे कोई नहीं बदल सकता, अगर फैषन के नाम पर फूहड़ता को बदलना है तो हम सबको कोई न कोई कदम उठाना पड़ेगा।
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