22.10.08

फिर भी सबको जीना है !!

Tuesday, October 21, 2008

फिर भी सबको जीना है !!

मैंने जो जिन्दगी को देखा है...जब सपने तार-तार हो जाते हैं...जब आंखों को अंधेरे के सिवा कुछ नहीं दिखाई देता....जब तन और मन सबसे आदमी घायल हो जाता है...जब कहीं से कोई आसरा नहीं होता....जब एक भी शब्द कहने को नहीं होता.....जब कुछ भी ऐसा नहीं होता जिसके आसरे पर हम जी सकें...तब भी समूचा -सा रोना नहीं होता..... मतलब आशा की कोई एक किरण की आशा कहीं-न-कहीं मन के किसी कोने में छिपी ही होती है....वही हमको एकदम से टूटने से बचाती है....वही हमें चिंदी-चिंदी होने से बचाती है !!
सपने जब एकदम से मर जाते हैं...या जब उन्हें मरा हुआ मान लिया जाता है...तब भी उनकी राख से नए सपने पैदा हो जाते हैं...और वो सपने तो पिछले सपनों से भी ज्यादा पुरजोश ...पुरनूर ...पुरसकून ...पुरहंसी ...पुरखुशी ....होते हैं !!इसलिए तो सब पागल नहीं होते....और ग़मों से एकदम से मर भी नहीं जाते......!! जिन्दगी का मकसद आदमी को हराना या उसे मात देना थोड़ा ही ना है....जिन्दगी को क्या इन फालतू बातों को सोचने का वक्त भी है ??.....नहीं जिन्दगी का मकसद आदमी को उसके पूरे यौवन के साथ....उसकी पूरी खुशी के साथ.....उसके पूरे जज्बातों के साथ....उसकी सारी संवेदना के साथ...उसको पूरी शक्ति के साथ...और उसको,उसकी पूरी तल्लीनता के साथ उसे ना सिर्फ़ जीने देना है,बल्कि उसके जीने में उसकी मदद भी करनी है......!!
दरअसल जिंदगी किसी को नहीं हराती ..... हम ही हार जाते हैं......दरअसल जिन्दगी किसी को मात नहीं देती....हम ही आपा खो बैठते है....ग़लत चालें चलते हैं...और मात खा जाते हैं.....और क्या......बाकी इश्क...प्यार.....धोखा.....दुःख....सुख...मरना....जीना .......लगा हुआ है....लगा ही रहेगा.....हम तो बस एक दूसरे के काम आ सकें ...यही बहुत है...क्यूँ सच है ना ....!! अगर किसी ने ग़लत किया है...या कर रहा है...ये उपरवाला जाने वही न्याय करे.....मगर ये तो निजी जीवन की बातें हैं.....समाज के सन्दर्भों में तो हमें सबके हित के लिए लड़ना ही होगा......कहा है..."आदमी ,आदमी को क्या देगा.....जो भी देगा वही खुदा देगा....और क्या कहूँ.....बस....!!!

1 comment:

  1. भूतनाथ बाबू बढ़िया लिखा जिंदगी ऐसे ही जी जाती
    नैतिक मूल्यों के पतन से ऐसी स्थिती उत्पन्न होती है
    आप जैसे जब तक ऐसे लिखतें रहेंगे तब तक हम जैसे सुधर सकते hain

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