14.11.08

जो भोंके देख के तोहें पकड़ के मुंह पर मारो जाब उर्फ महान भड़ासी कविताओं की रचना शुरू....

बाटी चोखा लिट्टी रस्सा सान सून के खा चपड़ चप
टक टक खट खट पीट कंपूटरवा भइया दे पटा पट
सुग्गा चिरई चेखुर चनरमा इ सबे हैं चक चका चक
हमहीं तोहीं काहें उदास मन मुरझाइल गइल न आस
नोकरी जिनगी रोटी भात बाकी कब खेलबा तूं तास
उहो मारें इहो भगावें उहो कोहनाएं इहो उंगलियाएं
बारी बारी केके मनइबा चुप बैठा होइबे करी उजास
भागत भूगत हग्गत मूतत सबके चेहरा लगे छिनार
जो न धावे आशीष पावे उ या उड़ी या जाई पहाड़
कहत यशवंत मन की मान आपन अकेले राग तान
बुजरी बिजली कटल ब त का, कब्बो त होई परकाश
खेल कबड्डी मार लंगड़ी पटका पटकी करो बवाल
शांत जल में अगर मगर हैं इनकी खींचो मोटी खाल
चलत चलत जब कांटा घुसे न चिल्लाओ माई बाप
खूंटा लेकर खोजो दुश्मन मिल जाए तो डालो बांस
पल दो पल की जिनगी ससुरी खाओ न सगे का मांस
खेल तमाशा इहें रह जइहें कस के खींचों छोड़ो सांस
मुक्का मुट्ठी झापड़ झंडा इ सब सामान रखो साथ
जो भोंके देख के तोहें पकड़ के मुंह पर मारो जाब
कहें डाग्डर रुपेश सुन लो कलजुग में रखो मुंह बंद
जबरा मारे रोवे भी न दे ऐसे में तुम न होना संट
मार पछेटा उछलकूद कर मौके पर ही करना वार
जीत गए तो शेरशाह हो हार गए तो अपन के यार
सुन उपदेश पुलकित रजनीशा, बोल पड़े वाह वाह
इतना सब सुनके दुश्मन उड़ चले करत कांव कांव


(कई दिनों से सोच रहा था कि भड़ास पर कुछ लिखूं पर हर बार न्यू पोस्ट पर क्लिक करने के बाद जो सफेद बक्सा आगे खुलता उसमें दो चार लाइन लिखकर आगे बढ़ने के बाद कीबोर्ड को बैक स्पेश के जरिए रिवर्स गियर में डाल सरपट सब मिटा डालता। लिखने को इतना सब कुछ है कि समझ में नहीं आता कहां से शुरू करूं। जो शुरू करता वो मन को न भाता। आज ठान लिया। तय किया कि कुछ न कुछ जरूर लिखूंगा। चूतियापापूर्ण लेखन की परंपरा जो जमाने बंद है, उसकी पद्य से शुरुआत की जाए। तो भड़ासी भाइयों, एक कोशिश करी है कुछ पेलने की। ठीक न लगे तो वापस मेरी तरफ ठेलने में हिचकियेगा नहीं। उम्मीद है इस तरह की महान भड़ासी कविताएं रचने के लिए आप मेरी पीठ ठोंकेंगे :) क्योंकि आजकल लोग मुझे कुछ ज्यादा ही महान बनाए दे रहे हैं सो सोचा है कि फिर कुछ कर कराके अपनी असली औकात में आ जाउं...क्यों गुरु....तो हो जाएं शुरू.......जय भड़ास...यशवंत)

3 comments:

  1. श्री राम...श्री राम.... चरण कमल वंदऊ यशवंता

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  2. jiya ho bhayya..jila hila dela

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  3. वाह वाह,
    गुरुवार आपके चरण किधर हैं.
    आनादित हुआ, अरे कहाँ छुपा के रखे थे इतना बड़ा भड़ास.
    जब आइये गए हैं तो वापस काहे की
    ठेलम ठेल काहे की. बस लगिए पेलम पेल में.
    जय जय भड़ास

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