28.11.08
रामकृष्ण परमहंस
विनय बिहारी सिंह
रामकृष्ण परमहंस कहते थे- जैसे पांकाल मछली कीचड़ में ही रहती है फिर भी कीचड़ उसके शरीर से दूर रहता है वैसे ही मनुष्य को संसार में रह कर भी सांसारिक तनावों, झमेलों या वासनाओं का गुलाम नहीं बनना चाहिए। वे एक कहानी सुनाते थे। एक आदमी अपनी स्त्री को बहुत प्यार करता था। उसके बिना वह जी नहीं सकता था। एक दिन उसके गुरु ने एक दवा दी। कहा कि इसके खाते ही तुम्हारा शरीर कुछ देर के लिए मृत जैसा हो जाएगा। लेकिन तुम मरोगे नहीं। तुम्हें होश रहेगा। तुम सबकी बातें सुन सकोगे। फिर उन्होंने वैद्य को सिखाया कि तुम जाकर झूठमूठ यह कह दो कि इसे जिंदा करने के लिए किसी को अपनी जान देनी पड़ेगी। फिर देखो तुम्हारी पत्नी तुम्हें कितना प्यार करती है। तुम तो उसके बिना जी नहीं सकते। वही हुआ। दवा खा कर वह मृत जैसा हो गया। घर में रोना- पीटना मच गया। तब वैद्य आया और बोला कि यह तो जिंदा हो जाएगा लेकिन इसके बदले किसी को जान देनी पड़ेगी। उसकी पत्नी से पूछा गया कि क्या वह अपनी जान देने को तैयार है? पत्नी ने साफ इंकार कर दिया और कहा कि यह तो मर ही गए। मैं मर जाऊंगी तो इन छोटे- छोटे बच्चों को कौन देखेगा? वे कहते थे कि संसार में सब काम करो लेकिन यह जान लो कि असली घर ईश्वर के पास है। वह सब देख रहा है। मनुष्य को उसने इच्छा शक्ति दे कर छोड़ दिया है। ईश्वर देखते रहते हैं कि मनुष्य अपनी इच्छा शक्ति का इस्तेमाल कैसे करता है। रामकृष्ण परमहंस की बातें इतनी सरल होती थीं कि अनपढ़ व्यक्ति के दिल में भी वे उतर जाती थीं। वे कहते थे कि सब रुपए पैसे, परिजन और सांसारिक सुख के लिए रोते हैं। ईश्वर के लिए कौन रोता है। ईश्वर के लिए रोइए तब तो वह मिलेगा। रामकृष्ण परमहंस कहते थे- मनुष्य का जन्म सिर्फ ईश्वर को प्राप्त करने के लिए हुआ है। लगातार प्रार्थना करिए-- हे भगवान, हे भगवान क्या आप दर्शन नहीं देंगे? मैं आपके लिए व्याकुल हूं। लगातार प्रार्थना से उनका दिल पिघल जाता है।
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