3.11.08

पुरस्कारों का ज़खीरा, सोयी मीडिया सोया सरकार.

क्या कभी इतने शील्ड एक साथ देखे हैं?

मैडल ही मैडल, पदक ही पदक, शील्ड ही शील्ड। ये नजारा और कहीं नही विलासपुर में सर्दियों में आयोजित होने वाली ग्रामीण सांस्कृतिक महोत्सव का है। अपने आप में अनूठा ये ग्रामीण सांस्कृतिक पर्व पुरे देश के लिए प्रेरणा है। मगर नही है ये प्रेरणा क्यौंकी दुनिया से अनजान जो है, जब मैं बिलासपुर पहुँचा तो इस पर्व में सम्मिलित होने का मौका मिला और देख कर हैरान रह गया की हमारी सांस्कृतिक धनाड्यता और नजरों में नही, ना ही मीडिया की नजर और ना ही स्थानीय सरकार की। सैकडो गावं यहाँ सांस्कृतिक प्रतिस्पर्धा में भाग लेते हैं, और प्रदर्शन के आधार पर पुरस्कार के हक़दार होते हैं, संग ही मेला के बहाने तमाम गाव आपस में मिलते हैं और अपनी संस्कृति के साथ समस्याओं पर चर्चा कर उसका निदान भी निकालते हैं।
क्या इस संस्कृति को पुरे देश में प्रसारित नही होना चाहिए ? मगर जब स्थानीय सरकार ही उदासीन हो, मीडिया के मुलाजिम लाला जी के लिए पत्रकारिता कर रहे हों वहां हमारी सभ्यता की विशेषताओं को किसने देखा है, स्थानीय सरकार की अपनी ढोल है जो उसकी पोल भी खोलती है और मीडिया का राज ठाकरे से लेकर क्रिकेटर पर चर्चा के अतिरिक्त समय कहाँ जो हमारे जड़ में जाए।
ब्लॉग समुगाय के लिए सिर्फ़ जानकारी भर क्यूंकि ब्लोगिंग भी पन्ने पर उड़लती चंद बूंद स्याही से ज्यादा जो नही दिख रही।

2 comments:

  1. bahut acchi aur bahut gahri soch rajnish ji....aapke lekhan me such ek ajab sa jadoo hai !!
    hum khush naseeb hai jo aapki soch padne ko mil rahi hai
    dhaynwaad..............

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  2. media ko jadu-tone aur bhhton se hi foorsat hoti to aapke blog par yeh jaankari dene ki jahmat hi kyon uthani padti!

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